उत्तर प्रदेश में लोकसभा के 4 चरण का चुनाव पूरा हो चुका है. 3 चरण का चुनाव अभी बाकी है. पहले 4 चरण के चुनाव में औसत मतदान 60 फीसदी ही हो पाया है. बाकी 3 चरण के चुनाव में गर्मी का प्रकोप पहले से अधिक होगा. ऐसे में चिंता इस बात की है कि मतदान का प्रतिशत और भी कम ना हो जाये. प्रशासन कम मतदान की वजह बढ़ती गर्मी को मान रहा है.

देश के दूसरे हिस्सों की बात करें तो ज्यादा गर्मी के बाद भी वहां मतदान अधिक हुआ है. अधिक मतदान के लिये सामाजिक संगठनों से लेकर सरकार तक तमाम लोगों ने बहुत सारे प्रयास किये है. ऐसे में अब यह बात भी नहीं कही जा सकती कि मतदान जागरूकता में कमी है. कम मतदान की सबसे बडी वजह जनता के बीच ‘राजनीतिक उदासीनता’ है.

नेताओं के बिगड़े बोल कह दी गंदी बात

सत्ता के पक्ष और विपक्ष दोनो में ही कोई लहर नहीं चल रही है. अगर पार्टी कार्यकर्ताओं की बात छोड़ दें तो जनता चुनाव में किसी भी तरह से सक्रिय नहीं है. नेताओं के भाषण सुनने पहुंचने वाले लोग भी वहां पर एकत्र किये जा रहे है. अपने से चल कर वहां जाने वाले लोंगों की संख्या कम है. सत्ता पक्ष ने अपने प्रचार अभियान में हर तरह से प्रचार प्रसार का काम पहले से अधिक सुव्यस्थित तरह से किया है.

पार्टी के लोग ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिल रहे है. इसके अलावा दूसरे दलों का प्रचार तंत्र बहुत कमजोर है. वह सत्ता के विरोध में कोई हवा नहीं बना पा रहा है. जनता के सरकार के काम काज को लेकर निराशा है पर उसे लगता है कि कोई विकल्प भी नहीं है. ऐसे में उसे चुनाव से कुछ हासिल होता नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि मतदान कम हो रहा है. गांव के मुकाबले शहरों में मतदान कम हो रहा है. जबकि शहरी लोग मतदान को लेकर ज्यादा जागरूक है.

डरती है भाजपा कन्हैया से

शांति फाउडेंशन के चीफ ट्रस्टी तन्मय प्रदीप कहते हैं ‘जनता जागरूक है. उसे वोट देने के लिये घर से निकालने के लिये प्लान बनाने चाहिये. केवल मतदान के जागरूकता अभियान चलाने से काम पूरा नहीं होगा. लोगों को मतदान के दिन घरों से बाहर निकालना होगा. वे भले ही ‘नोटा‘ का प्रयोग करें पर मतदान जरूर करें. जनता में चुनाव के प्रति उदासीनता को नहीं फैलना चाहिये. चुनाव के प्रति उदासीनता से लोकतंत्र का मकसद ही खत्म हो जायेगा.’

पूर्वांचल में मोदी मैजिक के बजाय निरहुआ इफेक्ट का सहारा

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रदेश है. यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. पिछले चुनाव में 73 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिली थी. ऐसे में हर दल उत्तर प्रदेश को सामने रखकर अपनी योजना बना रहा है. इसके बाद भी मतदान का प्रतिशत हीं बढ़ रहा है. जिससे जीत और हार का अंतर कम रह जाता है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के गठबंधन से साथ कांग्रेस और बीजेपी में त्रिकोणी लड़ाई है. सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई कम है. इसके बाद भी दोनो दल मिलकर भाजपा को ठीक से घेर नहीं पा रहे हैं. जनता को यह लग रहा कि सरकार कोई भी बनाये पर जनता हमेशा परेशान होगी. इस वजह से उसे वोट में ही अब दिलचस्पी नहीं रह गई है.

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