47 वर्षीय राहुल गांधी निर्विरोध रूप से कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुन लिए गए. वह अब 132 साल पुरानी कांग्रेस का नेतृत्व करेंगे. राहुल गांधी को यह पद संघर्ष से नहीं मिला. अब तक के उन के पार्टी उपाध्यक्ष और सांसद के तौर पर किए गए कार्यों को उल्लेखनीय नहीं माना गया. उन की अंग्रजीदां अभिजात्य छवि बनी रही है. राहुल गांधी भी पार्टी की हिंदूवादी छवि पेश करते दिखाई दिए हैं.

गुजरात चुनावों में वह मंदिरों की परिक्रमा करते दिखाई दिए. स्वयं को जनेऊधारी हिंदू प्रचारित करते रहे. ऐसा कर के वह समूचे देश  के नेता के तौर पर नहीं, खुद को महज हिंदुओं का नेता साबित कर रहे थे. उधर भाजपा ‘हिंदुत्व’ को अपनी मिल्कियत समझती रही है. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली कह चुके हैं कि कांग्रेस के पास तो हिदुत्व का क्लोन है. यानी असली माल उन के पास है. भाजपा एक तरह से कह रही है कि हिंदुत्व पर उन का कौपीराइट है. कांग्रेस तो नक्काल है. इस से लगता है कि कांग्रेस आज भी हिंदुत्व की पिछलग्गू दिखाई देती है. इस तरह तो कांग्रेस हिंदुत्व की बी नहीं, ए टीम दिखाई दी है.

यह सच है कि कांग्रेस आजादी के समय हिंदूवादी पार्टी थी. मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस को हिंदू पार्टी कहते थे. तब के बड़े नेता तनमन से हिंदूवादी थे. कुछ तो वर्णव्यवस्था को ईश्वरीय देन मानने वाले थे. नेहरू थोड़े उदारवादी थे पर वह पार्टी के तिलक, जनेऊधारियों की सलाह के खिलाफ जाने का साहस नहीं दिखा पाते थे. न ही जगजीवन राम जैसे दलित और सरदार पटेल जैसे पिछड़े वर्ग के नेताओं की सलाह हिंदुत्व के विपरीत मानने की हिम्मत करते थे.

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