लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही नीतीश कुमार को फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की याद आई है और इस के लिए उन्होंने केंद्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. 29 मई, 2018 को उन्होंने 15वें वित्त आयोग को इस मसले को ले कर चिट्ठी भेजी थी. जानकारों का मानना है कि विशेष राज्य के दर्जे की मांग करना कोरा राजनीतिक स्टंट है. बिहार विशेष राज्य का दर्जा पाने के नियमों पर खरा ही नहीं उतरता है तो किस मुंह से इस की मांग कर के जनता को बरगलाया जा रहा है?

केंद्र सरकार कई दफा इस मांग को खारिज करती रही है. नीतीश कुमार ही नहीं, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति जैसी पार्टियां भी अपनी सहूलियत और सियासी मतलब के हिसाब से यह मांग उठाती रही हैं. बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल कहते हैं कि उन की पार्टी बिहार को स्पैशल स्टेटस दिलाने का समर्थन करती रही है. इस के लिए पार्टी मुहिम चलाने की तैयारी भी कर चुकी है.

लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान कहते हैं कि बिहार पिछड़ा राज्य है और इसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए. गौरतलब है कि बिहार के अलावा झारखंड, ओडिशा और राजस्थान में भी विशेष राज्य का दर्जा की मांग उठती रही है. केंद्र सरकार इस मसले को छेड़ने से परहेज करती रही है. बिहार को स्पैशल स्टेटस मिलने के बाद बाकी तीनों राज्य भी उस के पीछे हाथ धो कर पड़ सकते हैं.

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा ने 4 अप्रैल, 2006 को ही राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग का प्रस्ताव पास कर दिया था और इस बारे में मुख्यमंत्री ने 3 जून, 2006 को प्रधानमंत्री को जानकारी दी थी. 31 मई, 2010 को बिहार विधानपरिषद ने भी इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी और 10 जून, 2010को मुख्यमंत्री ने फिर प्रधानमंत्री को चिट्ठी के जरीए यह जानकारी दी थी.

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