प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को देश की राजधानी दिल्ली से ले कर हर राज्य और शहर में भाजपा द्वारा एक इवेंट बना दिया गया.

दरअसल, नरेंद्र मोदी का जैसा बौडी लैंग्वेज है, जैसा विचार वे व्यक्त करते हैं उसे देखा जाए तो कहा जा सकता है कि मोदी की संवेदनशीलता यह होती कि अगर वे कश्मीर में हुई मुठभेड़ के बाद वीर शहीदों के सम्मान में अपने जन्मदिन को मनाने के बजाय इस इवेंट को स्थगित कर देते तो देश में एक बड़ा सकारात्मक संदेश जाता.

मगर प्रधानमंत्री 5 राज्यों के चुनाव और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस से कोताही कर गए. सवाल यह है कि शहादत को नमन जरूरी है, देश जरूरी है या फिर सत्ता? इस का जवाब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास जरूर होगा या फिर विक्रमादित्य की सिंहासन बत्तीसी में. यही कारण है कि देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस की जम कर आलोचना की है.

कांग्रेस पार्टी के जायज सवाल

देश के प्रमुख विपक्षी दल अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिस से नरेंद्र मोदी सब से ज्यादा भयभीत दिखाई देते हैं और जिन के नेताओं पर सब से ज्यादा प्रहार करते हैं, ने 'पीएम विश्वकर्मा' योजना को 'चुनावी जुमला' करार दिया है. कांग्रेस ने कहा कि आगामी चुनाव को देखते हुए ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी जातिगत जनगणना पर कुछ नहीं बोल रहे.

पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा,"जनता दोबारा 'बेवकूफ' नहीं बनेगी और प्रधानमंत्री की सेवानिवृत्ति का समय आ गया है."

जयराम रमेश ने 'ऐक्स' पर लिखा,"नोटबंदी, जीएसटी और उस के बाद कोरोनाकाल में अचानक लगाए गए बंद से भारत में लघु उद्यमों के लिए सब से ज्यादा विनाशकारी रहा. इन में से अधिकांश छोटे व्यवसाय उन लोगों द्वारा चलाए जाते हैं जो अपने हाथों से काम करते हैं. इन में कपड़ा, चमड़ा, धातु, एवं लकड़ी आदि के काम शामिल हैं."

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