तीन हिंदी भाषी राज्यों की हार से सकते और सदमे में आ गए नरेंद्र मोदी और अमित शाह के जले पर नमक छिड़क रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आखिरकार क्या चाहते हैं यह अंदाजा लगाना आसान काम नहीं. महाराष्ट्र और खासतौर से विदर्भ की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले इस कद्दावर मराठी नेता के पांच दिन में दिये गए चार बयान बेमानी और बेमतलब तो कतई नहीं कहे जा सकते, लेकिन गडकरी की मंशा क्या है, क्या वे केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं या फिर उनकी चिंता भी 2019 का लोकसभा चुनाव है जिसमें भाजपा की दुर्दशा अभी से दिखने लगी है. तमाम विश्लेषक और समीक्षक यह मानकर चल रहे हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा अपने अकेले के दम पर कुछ खास नहीं कर पाएगी. बढ़त के लिए उसे शिवसेना का साथ तो चाहिए ही रहेगा.

उलट इसके शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुद्दत से भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं चूक रहे. वे राम मंदिर निर्माण को लेकर भी भाजपा पर तंज कसते हैं और बिहार में नितीश कुमार और रामविलास पासवान के सामने अमित शाह के घुटने टेकने पर भी उन्हें बख्शते नहीं. शिवसेना भाजपा की खटास अगर वक्त रहते दूर नहीं हुई तो तय है महाराष्ट्र में एनसीपी कांग्रेस गठबंधन को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी.

ऐसी कई वजहों के चलते नितिन गडकरी का बौखलाने की हद तक चिंतित होना हैरानी की बात नहीं है लेकिन जिस ढंग से वे अपनी पीड़ा, व्यथा और दुख व्यक्त कर रहे हैं वह जरूर चर्चा का विषय बना हुआ है जिससे साफ लगता है कि उनके और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है. हालांकि गडकरी के ताजे बयानों के पहले से ही अफवाहों का बाजार गर्म था. कोई 2 महीने पहले उन्होंने एक मराठी चैनल को दिये गए बेबाक इंटरव्यू में अच्छे दिनों के बारे में कहा था कि, 2014 में हवा हमारे (भाजपा) माफिक थी लेकिन इतने भारी भरकम की उम्मीद हमें नहीं थी इसलिए हम प्रचार के दौरान ऐसे वादे भी कर बैठे जिनका पूरा होना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था. हर एक के खाते में 15 लाख रुपये आने की बात इनमें से एक थी.

देखा जाये तो नितिन गडकरी एक तरह से स्पष्टीकरण ही दे रहे थे जो शाह मोदी को रास नहीं आया तो अचानक ही खटपट की खबरें आने लगीं मगर इनकी तल्ख तसल्ली गडकरी के इन हालिया बयानों से होती है –

1 – तीन राज्यों की अप्रत्याशित हार पर 24 दिसंबर को नितिन गडकरी ने साफ साफ कहा कि, यदि मैं पार्टी अध्यक्ष हूं और मेरे सांसद और विधायक अच्छा नहीं करते हैं तो कौन जिम्मेदार होगा?

बड़बोले अमित शाह को कटघरे में उन्होंने खड़ा कर कोई संगीन गुनाह नहीं कर दिया है जो गुरूर में डूबे जाने किस बिना पर यह दावा करते रहते थे कि अभी तो हम 50 साल और राज करेंगे.

बात को विस्तार देते उन्होंने दार्शनिकों की सी भाषा में यह भी कहा कि सफलता के कई दावेदार होते हैं लेकिन विफलता में कोई साथ नहीं होता सब दूसरे की तरफ उंगली उठाते रहते हैं.

2 – एक मीटिंग में उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की तारीफ करने का गुनाह यह कहते किया कि उन्हें नेहरू का वह भाषण पसंद है जिसमें उन्होंने कहा था कि, सिस्टम को सुधारने को दूसरे की तरफ उंगली क्यों करते हो अपनी तरफ क्यों नहीं करते, जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि इंडिया इस नौट ए नेशन , इट इज ए पापुलेशन. इस देश का हर व्यक्ति देश के लिए प्रश्न है, समस्या है. तो मैं इतना तो कर सकता हूं कि मैं देश के सामने समस्या नहीं बनूंगा.

इशारा सीधे नरेंद्र मोदी की तरफ था जो बात बात में नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस के 60 साल के राज को भी पानी पी पी कर कोसते रहते हैं. नरेंद्र मोदी को अपने गिरहबान में झांकने की विनम्र और निहायत ही शिष्ट सलाह देने के जुर्म पर भाजपा क्या करेगी यह देखना बेहद दिलचस्पी की बात होगी क्योंकि नितिन गडकरी कोई यशवंत या शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बड़बोले नेता नहीं हैं जो उन्हें नजरंदाज कर काम चल जाये इसका नोटिस तो भाजपा आलाकमान को आज नहीं तो कल लेना ही पड़ेगा.

3 – पीएम पद की दौड़ में शामिल होने न होने को लेकर भी उन्होंने साफ कहा कि वे जहां हैं खुश हैं और उन्हें गंगा प्रोजेक्ट पूरा करना है, हाइवे बनाना है और महत्वाकांक्षी चार धाम प्रोजेक्ट पूरा करना है.

इस बयान के निहितार्थ ये भी निकाले जा रहे हैं कि उन्होंने सीधे यह नहीं कहा कि वे पीएम पद के रेस में नहीं हैं और जो काम उन्हें करना है वे कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो पूरे होने से रहे .

4 – कुछ लोगों के मुंह में कपड़ा डाल कर मुंह बंद करने की जरूरत है, जैसे ही नितिन गडकरी ने यह कहा तो लोगों का ध्यान सीधे योगी आदित्य नाथ के हनुमान को दलित बताने बाले बयान पर गया जिसे लेकर भाजपा की खासी किरकिरी हो रही है और हनुमान जी मजाक के पात्र बन गए हैं कोई उन्हें दलित कोई आदिवासी कोई ब्राह्मण कोई राजपूत कोई जाट कोई मुसलमान बताने लग गया है और तो और अब उन्हें चीनी तक कहा जाने लगा है.

मगर जैसा कि अंदाजा लगाया जा रहा है कि गडकरी का इशारा अगर आदित्यनाथ की तरफ ही है तो शायद ही कोई उनके मुंह में कपड़ा ठूंस पाये.

नितिन गडकरी के ऐसे कई बयान भाजपा के गले की हड्डी बनते जा रहे हैं. साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब देश के लोगों को कई उम्मीदें सरकार से थीं जिनकी एक बड़ी वजह भाजपा की दूसरी पंक्ति के तजुर्बेकार नेता भी थे जिनमें राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, वैंकेया नायडू, सुषमा स्वराज और उमा भारती वगैरह के नाम शुमार थे.

साल 2018 के उत्तरार्द्ध तक स्पष्ट हो गया है कि भाजपा का मतलब मोदी शाह होता है बाकी सब मिथ्या है जिसका नतीजा पार्टी भुगत भी रही है. सब खामोशी से डूबते सूरज को सन सेट पौइंट से देख रहे हैं लेकिन नितिन गडकरी कोई बगावत नहीं कर रहे, बल्कि यह इशारा कर रहे हैं कि सावधान हो जाओ नहीं तो, बुरे दिन आने वाले हैं.

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