प्रदेश की जनता का ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी नौकरशाही और मंत्रिमंडल का भी भरोसा जीतने में सफल नहीं हो पा रहे है. यही वजह है कि प्रदेश में सरकार बदलने के बाद जिस तरह से हालात बदलने चाहिये थे वह नहीं हो पा रहा है.

ऐसे में योगी आदित्यनाथ मीडिया के ऐसे समूह के बीच भी फंस गये है जो समाजवादी पार्टी की सरकार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चमक दमक दिखा रही थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों पर भरोसा नहीं कर पा रहे है. मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों के बीच तालमेल का पूरा अभाव दिखता है. केवल मंत्रिमंडल ही नहीं नौकरशाही भी समझ नहीं पा रही कि वह किस तरह से काम करे.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुर्सी संभालने के बाद बहुत हद तक सरकारी व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव के लिये तबादले कर दिये हैं. इसके बाद भी शासनतंत्र पर उनकी पकड़ मजबूती से नहीं दिख रही है. अपराध के हालात खराब हुये तो मुख्यमंत्री के सलाहकारों को लगा कि मीडिया मैनेज कर के नाकारात्मक प्रभाव को रोका जा सकता है. यही काम कभी अखिलेश यादव ने किया था.

सहारनपुर की घटना का प्रभाव पूरे प्रदेश में है. जातीय संतुलन में सरकार ही नहीं भाजपा भी फेल हो गई है. जानकार कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ को जिस तरह से भाजपा के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिलना चाहिये वह नहीं मिला.

योगी आदित्यनाथ भले ही जाति से खुद को दूर रखते हों पर उनके खिलाफ काम करने वाले लोगों ने उनको जातियता फैलाने का आरोप लगाकर प्रचारित कर दिया. इसके साथ ही साथ यह बात भी फैलाई गई कि योगी आदित्यनाथ की हिन्दु युवा वाहिनी प्रदेश में लोकल स्तर पर समान्तर सरकार चला रही है. इस तरह के प्रचार का प्रभाव योगी की छवि को धूमिल कर रहा है. जिसकी वजह से सरकार सही तरह से अपना काम नहीं कर पा रही है. जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री के साथ 2 उप मुख्यमंत्री बनाने से तकनीकि रूप से परेशानियां सामने आ रही है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...