West Bengal : कईयों के कंधों पर बूढ़े मांबाप की देखभाल और सेवा शुमार की भी जिम्मेदारी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 3 अप्रैल के एक क्रूर और निर्मम फैसले ने इन का सबकुछ छीन लिया है.

यह फैसला क्या है और क्यों विधिक क्रूरता का पर्याय होने के साथसाथ अव्यवहारिक भी है यह समझने से पहले थोड़े से में यह समझना जरुरी है कि मामला क्या है जिस में पीड़ितों को ही गुनाहगार मानते सजा दे दी गई है और असल मुजरिमों में से अधिकतर के कहीं अतेपते नहीं हैं. एक तरह से उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया है.

साल 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग यानी WBSSC ने शिक्षक और गैर शिक्षण (नान टीचिंग) कर्मचारी पदों के लिए रिक्तियां निकाली थीं. इस परीक्षा के तहत 25753 उम्मीदवारों का चयन किया गया. जैसा कि आमतौर पर पूरे देशभर में होता है वह पश्चिम बंगाल में भी हुआ कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही परीक्षा में भ्रष्टाचार के आरोप लगना शुरू हो गए.

कई उम्मीदवारों ने यह दावा किया कि उन्हें काबिल होते हुए भी नौकरी नहीं मिली और उन से कम काबिल उम्मीदवारों का चयन हो गया. 5 से ले कर 15 लाख प्रति पद की घूसखोरी और राजनातिक संरक्षण के भी आरोप लगे.

हल्ला मचा तो इस गड़बड़झाले की जांच हुई जिस से पता चला कि आरोप गलत नहीं हैं और कई नियुक्तियां गैरकानूनी तरीकों से की गईं. मसलन, उम्मीदवारों ने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया और बड़े पैमाने पर ओएमआर शीट्स में हेराफेरी हुई. सीबीआई और ईडी की जांच में कई अधिकारीयों और सत्तारूढ़ टीएमसी नेताओं सहित कुछ भाजपा नेताओं के नाम सामने आए.

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