Voter List Controversy : बिहार विधानसभा चुनाव में वोटर लिस्ट विवाद के बाद यह बात साफ नजर आ रही है कि हिंदू राष्ट्र में आधार निराधार हो कर रह जाएगा.

चुनाव आयोग ने कहा है कि वोटर लिस्ट में कोई गैर भारतीय नहीं रहेगा. वोटर लिस्ट की जांच का जो मौडल बिहार विधान सभा में लागू किया गया है वह दूसरे राज्यों में भी लागू होगा. जैसेजैसे वहां पर विधानसभा चुनाव होंगे, वैसेवैसे वोटर उस राज्य में लिस्ट की जांच होगी. इस तरह से समझें तो अगला नम्बर असम और बंगाल का है. इस के बाद उत्तर प्रदेश की भी बारी है. 2026 में जिन राज्यों में चुनाव होंगे वहां यह जांच होगी. जिस में केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी भी शामिल होंगे.

असल में यह एक पौराणिक साजिश है कि जिस के तहत बड़ी जनसंख्या को नागरिकता ही न देने का काम किया जा रहा है. जिस हिंदू राष्ट्र की बात हो रही है वह पौराणिक व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है. जिस के अनुसार सिर्फ सवर्णों को ही पूजा पाठ, धन, मकान, सत्ता का हक है. बाकी सब तो दस्यु या पशु हैं. राम रावण युद्ध में दर्शाया गया है कि जब युद्व खत्म हो गया तो राम तो राजा बन गए उन के साथ युद्ध करने वालों को वापस जंगलों और पहाड़ों पर भेज दिया गया. बिहार में वोटर लिस्ट में सुधार के नाम पर पौराणिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नागरिकता को वर्ण से जोड़ने की साजिश की जा रही है.

देश में संविधान लागू होने से पहले किस तरह से चुनाव होते थे, किन को वोट देने का अधिकार था. अगर इस को देखें तो साफ पता चलता है कि वोट देने का अधिकार सब को नहीं था. 1857 के बाद अंगरेजों ने लोकल सेल्फ गवर्नमेंट पौलिसी कानून बनाया था. जो 1884 में पूरी तरह से लागू हो गया. 1909 में इलैक्शन एक्ट पारित हुआ उस के बाद इलैक्शन शुरू हुआ. उस समय वोटर लिस्ट में केवल 50 लोगों के नाम होते थे. यह वह लोग थे जो इलाके के मुखिया, जमीदार, बड़े साहूकार, बड़े काश्तकार यानी कि उस वक्त जो टैक्स के रूप में लगान जमा करते थे वही लोग चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने के हकदार थे. वे ही लोग वोटर हुआ करते थे और उन्हीं लोगों में से चुनाव लड़ने वाले होते थे. उन्हीं में से लोग चुनाव जीत कर इलाके के विकास के लिए कार्य करते थे.

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