उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण तथा मातृ एवं शिशु कल्याण राज्यमंत्री शंखलाल माझी लखनऊ के होटल गोमती में महिला किसानों के कार्यक्रम में हिस्सा लेने आये थे. जब कार्यक्रम खत्म हो गया और चाय पीने का दौर चला, तो गोरखपुर जिले की कई महिलाओं ने मंत्री शंखलाल माझी को घेर लिया. सभी महिलाओं का एक ही कथन था कि शराब बंद होनी चाहिये. शंखलाल माझी ने किसी तरह से महिलाओं को समझाया और अपना पल्ला सा झाड लिया. मंत्री शंखलाल माझी के जाने के बाद महिलाओं ने शराब से बरबाद हो रहे घरों की कहानी बतानी शुरू की. इससे पता चलता है कि प्रदेश में शराब को लेकर हालात बिगड रहे है. बिहार के विधानसभा चुनावों में शराबबंदी एक बडा मुद्दा बन गया था. जिसके चलते नीतीश सरकार ने 1 अप्रैल 2016 से बिहार में देशी शराब के बिकने और बनने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है.
उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीतिक और सामाजिक हालात एक जैसे ही है. उत्तर प्रदेश में हर साल देशी शराब से सैंकडों लोगों की मौत होती है. शराब के नशे में लोग हत्या, आत्महत्या, लडाई, झगडा और घर जमीन को बेचने जैसे तमाम काम करते है. शराब का नशा घरेलू झगडों को बढा रहा है. इससे परेशान महिलायें चाहती है कि शराब बंद हो. अगर जातीय आधर पर देखें तो दलित और पिछडी जातियों में इसका ज्यादा असर हो रहा है. प्रदेश के इतिहास में पहली बार समाजवादी पार्टी की सरकार ने शराब के दामों में कमी की है. समाजवादी सरकार को शराब लाबी का पक्षधर माना जाता है. इस फैसले से यह बात भी साबित होती है. 1 अप्रैल से उत्तर प्रदेश में शराब पीने वालों के अच्छे दिन आ रहे है. शराब की बोतल 250 रूपये तक सस्ती होने जा रही है. सरकार का तर्क है कि सस्ती शराब के चक्कर में लोग जहरीली शराब पीकर जान जोखिम में डालते है. ऐसे में अंग्रेजी शराब सस्ती होगी तो लोग जहरीली शराब नहीं पियेगे.
सरकार के फैसले से ही उसकी नीयत झलकती है. सरकार ने देशी शराब की कीमत बहुत कम बढाई है. 64 रूपये में 180 मिलीलीटर मिलने वाली शराब अब 65 रूपये में मिलेगी. बीयर पीने से शहरों में युवाओं में नशे की शुरूआत होती है सरकार ने बीयर को केवल 5 रूपये कैन की दर से बढाया है. यह सच बात है कि आज के समय में विरोधी दलों के लिये यह मुद्दा नहीं है पर जनता नशे से परेशान है. नशे के खिलाफ समाज में एक अलग माहौल बन रहा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में अखिलेश सरकार का फैसला भारी पड सकता है. शराब समाज को तमाम तरह से खराब कर रही है. समय रहते सचेत होने की जरूरत है. शराब से जितना पैसा राजस्व के रूप में मिलता है उससे ज्यादा पैसा अस्पतालों में शराब से होने वाली बीमारियों के निदान पर खर्च हो जाता है.