लगता है पश्चिम बंगाल में मोहम्मद बिन तुगलक का शासन लौट आया है. गुलाबी शहर जयपुर और नीले शहर जोधपुर की तर्ज पर कोलकाता का भी रंगरोगन कर उसे अलग पहचान देने की एक बार फिर से कवायद शुरू हो गई है. इस बार कोलकाता नगर निगम मैदान में उतरा है. आने वाले समय में हो सकता है पूरा कोलकाता आसमानी नीले और सफेद रंगों या इन रंगों की धारियों में रंगा हुआ नजर आए.

गौरतलब है कि कोलकाता नगर निगम ने हाल ही में यह घोषणा की है कि नगर निगम क्षेत्र में अगर मकान मालिक अपने मकानों को आसमानी नीले और सफेद रंग में रंग लेते हैं तो उन्हें निगम कर में छूट मिलेगी. बस फिर क्या था, इस घोषणा के साथ ही राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया. एक तरफ राज्य की वामपंथी पार्टियां और भाजपा ने इस फैसले की नैतिकता पर सवाल उठाया है तो दूसरी ओर कोलकाता के 100 साल पुराने मकानों के मालिकों ने भी इस फैसले का विरोध किया है. इस के अलावा कुछ समय पहले हुई नीले व सफेद रंग से सरकारी संपत्तियों की रंगाईपुताई पर कैग यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी सवाल उठा दिया है. कैग ने निगम को पत्र लिख कर इस मद में अब तक हुए खर्च का ब्योरा मांगने के साथ जनता के पैसों को किस तरह खर्च किया गया है, इस बारे में जवाब तलब किया है.

चमक लौटाने की कोशिश

सवाल यह है कि महानगर के सौंदर्यीकरण के लिए सरकारी तौर पर नीली व सफेद धारियों को क्यों चुना गया है? इस के जवाब में राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम का कहना है कि वाम शासन के दौरान कोलकाता का नूर खो गया था. इस की चमक को लौटाने की जरूरत को देखते हुए यह फैसला किया गया है.

बहरहाल, विपक्ष के साथ ही साथ कैग को निगम के इस फैसले में भ्रष्टाचार की बू आ रही है. यही कारण है कि कैग ने निगम से जानना चाहा है कि महानगर के जिन ब्रिज, ओवरब्रिज को नीले व सफेद रंगों में रंगा गया है, क्या वे कोलकाता नगर निगम के अधीन हैं? या उन के रखरखाव का दायित्व उसे दिया गया है? और अगर ऐसा है तो निगम के किन नियमों के तहत ऐसा किया गया है? कैग ने इस संबंध में निगम को जारी की गई कानूनी नोटिफिकेशन की भी प्रति दिखाने को कहा है.

कोलकाता नगर निगम क्षेत्र में बहुत सारे ऐसे ब्रिज और ओवरब्रिज हैं जिन का मालिकाना हक राज्य सरकार के अधीन किसी सरकारी संस्थान के पास है. इन के रखरखाव के लिए बाकायदा सरकारी बजट में हर साल एक रकम मंजूर की जाती है. ऐेसे में सवाल उठना लाजिमी है कि इन ब्रिज, ओवरब्रिज की रंगाईपुताई का खर्च कोलकाता नगर निगम क्यों उठा रहा है?

वहीं, निगम के इस तुगलकी फैसले का वामपंथी पार्टियों के साथ प्रदेश भाजपा भी कड़ा विरोध कर रही है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद प्रदेश भाजपा कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गई है. भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राहुल सिन्हा के अनुसार, पार्टी अपने लीगल सैल से इस बारे में सलाहमशविरा कर रही है. पार्टी निगम के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी भी कर रही है. वामपंथी पार्टियों ने नैतिकता का सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर लोगों को अपने मकान के लिए रंग चुनने का भी अधिकार नहीं है तो यह कैसा लोकतंत्र है? माकपा ने आरोप लगाया है कि कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार और कोलकाता नगर निगम ने यह कवायद शुरू की है.

हालांकि कुछ मामलों में कोलकाता नगर निगम का यह फैसला किसी हद तक खुद इस नियम के खिलाफ है. कैसे? निगम के नियमानुसार कोलकाता के ‘ग्रेड वन’ हैरिटेज बिल्ंिडग में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता. न तो इन की बनावट और न ही रंग में. डेढ़दो सौ साल पुराने कुछ राजबाड़ी भी हैरिटेज की श्रेणी में आते हैं. वहीं कोलकाता में कुछ जमींदार बाड़ी भी हैं. मसलन, यहां का लाहा परिवार कभी बड़ा जमींदार हुआ करता था. डेढ़दो सौ साल पुराने इन के ज्यादातर मकान पारंपरिक तौर पर सुर्ख लाल रंग के हुआ करते हैं. लाहा परिवार निगम के इस फैसले के खिलाफ है.

उत्तर कोलकाता के लाहाबाड़ी के एक सदस्य विश्वजीत लाहा के विशाल पैतृक मकान का सालाना कर लगभग 20 हजार रुपए है. लेकिन इस मकान को रंग करवाने का खर्च लगभग तीनगुना होगा. जाहिर है यह फैसला लाहा परिवार को मंजूर नहीं.

पसोपेश में लोग

बहरहाल, कोलकाता के 150-200 साल पुराने दूसरे मकानों के मालिकों का भी यही कहना है कि इस महंगाई में बैठेबिठाए इतना बड़ा खर्च भला वे क्यों वहन करें? मकानमालिकों को आशंका है कि 1 साल के कर में जितनी छूट मिलेगी, रंग करवाने में उस से कहीं अधिक खर्च होगा. वहीं, कोलकाता में मकानमालिक किराएदार कानून में गड़बड़ी के चलते पुराने किराएदारों को हटाना लगभग नामुमकिन है. बहुत सारे मकानों में आज भी किराएदार मकानमालिक को किराया नहीं देते. 20-25 साल से मामले अदालत में लंबित हैं. दोनों पक्ष पीढ़ी दर पीढ़ी अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं. जाहिर है ऐसे मकानों के मकान मालिक इन की मरम्मत से भी हाथ पीछे खींच चुके हैं. मकान की हालत जर्जर है. कभी भी ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढेर हो सकते हैं. मकानमालिक किसी तरह साल में कर चुकाते हैं. ऐसे में उन के मकान, उन पर किसी बोझ से कम नहीं हैं. स्वाभाविक है कि कर में छूट के लिए वे रंग करवाने से रहे.

सत्ता पर काबिज होते ही ममता बनर्जी ने जब महानगर की विभिन्न सड़कों की रेलिंगों, टै्रफिक आईलैंड, सड़कों के बीच डिवाइडरों, फ्लाईओवर, ब्रिजों, फुटब्रिजों और टै्रफिक पुलिस पोस्ट को नीले व सफेद रंग की धारियों में रंगवाया, तब से अर्जेंटाइना के सौकर खिलाड़ी के नाम पर मारादोना मार्का आसमानी नीले व सफेद रंग की धारियों पर ‘सरकारी रंग’ की मुहर लग गई है. यहां तक कि कोलकाता की सड़कों पर चलने वाली ‘कैब कारें’ भी नीले व सफेद रंग में रंग चुकी हैं और अब धीरेधीरे पूरे महानगर में जबरन ‘कलर कोड’ थोपा जा रहा है. जबकि फौरी नजर में इस कवायद से किसी को फायदा होने नहीं जा रहा. पहले से ही आर्थिक संकट झेल रही राज्य सरकार को निगम द्वारा दी जाने वाली कर छूट से राजस्व का भी बड़ा नुकसान होगा.

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