नई सरकार बनने के बाद से पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों, मुंबई और दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में अवैध रूप से बस चुके बंगलादेशियों का मुद्दा गरमा रहा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बंगलादेशियों का मुद्दा सामाजिक के बजाय कहीं अधिक राजनीतिक है. इस के पीछे वोटबैंक की राजनीति काम करती है. प्रधानमंत्री बनने से पहले चुनाव प्रचार के दौरान पहले हैदराबाद, फिर पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर और कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला दे कर इस मसले पर अपनी राय जाहिर करते हुए साफ कर दिया था कि केंद्र में उन की सरकार बनने पर अवैध रूप से सीमा पार कर भारत में बस जाने वाले तमाम बंगलादेशियों को उन के देश वापस भेजा जाएगा.

इस को ले कर ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच जबानी जंग और कड़वाहट ने शालीनता की तमाम हदें पार कर दी थीं. दिलचस्प बात यह है कि यही ममता बनर्जी कभी वाममोरचे पर घुसपैठियों को ले कर वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया करती थीं. वर्ष 2005 में ममता बनर्जी ने बड़े जोरशोर से इन घुसपैठियों का मामला संसद में भी उठाया था.

अवैध रूप से सीमा पार कर के बहुत सारे बंगलादेशी पश्चिम बंगाल में चले आ रहे हैं. भारतीय सांख्यिकी संस्थान से जुड़े समीर गुहा के अनुसार, 1971 में बंगलादेश मुक्ति युद्ध के समर्थन में भारतपाकिस्तान लड़ाई के बाद 1981 से ले कर 1991 तक हजारों बंगलादेशी भारत आए और यहां बस गए. इस के अलावा आएदिन सीमा पार कर के बंगलादेशी यहां रोजीरोजगार की जुगाड़ में आते ही रहते हैं.

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