उत्तर प्रदेश की सियासत फिर से मजहबी रंग लेती नजर आई जब ‘चौरासीकोसी परिक्रमा’ को ले कर विश्व हिंदू परिषद और राज्य सरकार बागी तेवरों के साथ आमनेसामने अड़े. देशभर में खबरों का बाजार गरम दिखा. कोई इसे विहिप की जनसंपर्क यात्रा कह रहा है तो कोई इसे राज्य सरकार की वोटबैंक नीति. क्या है पूरा मामला, बता रहे हैं शैलेंद्र सिंह.

‘काठ की हांडी बारबार नहीं चढ़ती’, यह कहावत भले ही पुरानी हो पर विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित अयोध्या की चौरासीकोसी परिक्रमा पर पूरी तरह से खरी उतरती है. सामान्यतौर पर चौरासीकोसी परिक्रमा हर साल बैसाख कृष्ण प्रतिपदा को बस्ती जिले के मखौड़ाधाम से निकलती है. मखौड़ा बस्ती जिला मुख्यालय से 38 किल?ोमीटर दूर स्थित है.  परिक्रमा का समापन बैसाख शुक्ल नवमी यानी जानकी नवमी को अयोध्या के सीताकुंड में होता है.

अप्रैलमई माह में निकलने वाली इस परिक्रमा में मुश्किल से 100 लोग शामिल होते हैं. इस यात्रा में अयोध्या की सरयू से जल ले कर बस्ती जिले के मखौड़ा नामक जगह तक जाया जाता है. यह यात्रा अयोध्या, फैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा, बस्ती और अंबेडकरनगर जिलों की सीमा से हो कर गुजरती है. साल 2013 में यह चौरासीकोसी परिक्रमा शांतिपूर्वक निकल चुकी थी.

परिक्रमा नहीं संत पदयात्रा

विश्व हिंदू परिषद द्वारा 25 अगस्त से 13 सितंबर के बीच आयोजित चौरासीकोसी परिक्रमा अपनेआप में पूरी तरह से अनोखी थी. विश्व हिंदू परिषद अपनी जिस यात्रा को लोगों के बीच चौरासीकोसी परिक्रमा के नाम से प्रचारित करती आ रही है दरअसल वह ‘चौरासीकोसी संत पदयात्रा’ थी. रामलला मंदिर के मुख्य आचार्य सत्येंद्रदास का कहना है, ‘‘विहिप के द्वारा निकाली जाने वाली चौरासीकोसी पदयात्रा धार्मिक नहीं बल्कि जनसंपर्क का कार्यक्रम है.’’

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