आम आदमी पार्टी की दिल्ली में 28 सीटों पर जीत भारतीय लोकतंत्र की बेहद रोचक, ऐतिहासिक और क्रांतिकारी घटना है. अरसे बाद नेता जनता से खौफ खाते दिख रहे हैं. आम आदमियों के जन आंदोलन से राजनीतिक पार्टी के गठन और फिर चुनाव तक के सफर के नतीजे में जहां दिल्ली की सत्ता पलटी वहीं आम आदमी को अपनी घुटी और खोई आवाज वापस मिली. साल के आखिर में ‘आप’ और ‘आम’ खास बन कर राजनीति के पन्नों पर नया अध्याय लिख रहे हैं, पढि़ए जगदीश पंवार का यह विशेष लेख.
पिछले एक सप्ताह से कोहरे से ढका दिल्ली का आसमान एकाएक 28 दिसंबर की सुबह एकदम साफ दिखाई देने लगा. सूरज की रोशनी में नई रवानी थी. दिल्ली की जनता में नया जोश, नया उत्साह, नई उत्सुकता थी. दिल्ली में लोकतंत्र का नया सूर्योदय हुआ है. सही माने में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार बनी है. आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और उन के 6 मंत्रियों ने सेवा की शपथ ली तो लगा दिल्ली के जंतरमंतर से उठी जनक्रांति रंग ले आई.
28 दिसंबर, 2013 का दिन 16 अगस्त, 1947 की सुबह से कुछ अलग नजर आया. वह विदेशियों से मुक्ति से खुशी का दिन था और यह अपने ही शासकों की बेईमानी, भ्रष्टाचार, निकम्मेपन और तानाशाही के खिलाफ संघर्ष की सफलता के जश्न का दिन था. दिल्ली के 7वें और सब से युवा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए समूचे देश की निगाहें इस अनूठे नेता पर थीं.
वीआईपी संस्कृति खत्म करने का वादा कर चुके अरविंद केजरीवाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में कौशांबी स्थित अपने घर से दिल्ली के बाराखंबा रोड तक अपने मंत्रियों, विधायकों सहित आम जनता की तरह मैट्रो में सवार हो कर गए. इन मैट्रो स्टेशनों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा. मीडिया और समर्थकों के बीच 6 कोच वाली मैट्रो ट्रेन छोटी पड़ गई. सुरक्षा का कोई तामझाम नहीं. मैट्रो में घुसने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अपनी जेब से खरीदे स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल किया. हां, मैट्रो स्टेशनों में सीआईएसएफ के जवान, डीएमआरसी, पुलिस और कुछ वौलंटियर्स व्यवस्था को संभालने की कोशिश जरूर कर रहे थे पर भला जनता सुनने वाली कहां थी. कमोबेश यही हाल नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन में भी दिखा. उस के बाद वे अपनी छोटी गाड़ी से रामलीला मैदान पहुंचे जहां दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई. शपथ लेने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया.
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