आम आदमी पार्टी की दिल्ली में 28 सीटों पर जीत भारतीय लोकतंत्र की बेहद रोचक, ऐतिहासिक और क्रांतिकारी घटना है. अरसे बाद नेता जनता से खौफ खाते दिख रहे हैं. आम आदमियों के जन आंदोलन से राजनीतिक पार्टी के गठन और फिर चुनाव तक के सफर के नतीजे में जहां दिल्ली की सत्ता पलटी वहीं आम आदमी को अपनी घुटी और खोई आवाज वापस मिली. साल के आखिर में ‘आप’ और ‘आम’ खास बन कर राजनीति के पन्नों पर नया अध्याय लिख रहे हैं, पढि़ए जगदीश पंवार का यह विशेष लेख.

पिछले एक सप्ताह से कोहरे से ढका दिल्ली का आसमान एकाएक 28 दिसंबर की सुबह एकदम  साफ दिखाई देने लगा. सूरज की रोशनी में नई रवानी थी. दिल्ली की जनता में नया जोश, नया उत्साह, नई उत्सुकता थी. दिल्ली में लोकतंत्र का नया सूर्योदय हुआ है. सही माने में जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार बनी है. आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और उन के 6 मंत्रियों ने सेवा की शपथ ली तो लगा दिल्ली के जंतरमंतर से उठी जनक्रांति रंग ले आई.

28 दिसंबर, 2013 का दिन 16 अगस्त, 1947 की सुबह से कुछ अलग नजर आया. वह विदेशियों से मुक्ति से खुशी का दिन था और यह अपने ही शासकों की बेईमानी, भ्रष्टाचार, निकम्मेपन और तानाशाही के खिलाफ संघर्ष की सफलता के जश्न का दिन था. दिल्ली के 7वें और सब से युवा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए समूचे देश की निगाहें इस अनूठे नेता पर थीं.

वीआईपी संस्कृति खत्म करने का वादा कर चुके अरविंद केजरीवाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में कौशांबी स्थित अपने घर से दिल्ली के बाराखंबा रोड तक अपने मंत्रियों, विधायकों सहित आम जनता की तरह मैट्रो में सवार हो कर गए. इन मैट्रो स्टेशनों पर जनसैलाब उमड़ पड़ा. मीडिया और समर्थकों के बीच 6 कोच वाली मैट्रो ट्रेन छोटी पड़ गई. सुरक्षा का कोई तामझाम नहीं. मैट्रो में घुसने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अपनी जेब से खरीदे स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल किया. हां, मैट्रो स्टेशनों में सीआईएसएफ के जवान, डीएमआरसी, पुलिस और कुछ वौलंटियर्स व्यवस्था को संभालने की कोशिश जरूर कर रहे थे पर भला जनता सुनने वाली कहां थी. कमोबेश यही हाल नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन में भी दिखा. उस के बाद वे अपनी छोटी गाड़ी से रामलीला मैदान पहुंचे जहां दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई. शपथ लेने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया.

‘‘आज यह शपथ मैं ने और मेरे मंत्रियों ने नहीं ली है, आम आदमी ने शपथ ली है. हम पैसा कमाने नहीं आए हैं, अपना कामधंधा छोड़ कर आए हैं. हम सेवा करने आए हैं.’’ अपने भाषण में जब केजरीवाल ने यह बात कही तो मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि ऐसी बातें आजादी के बाद शायद ही किसी नेता ने कही हों.

यह सत्ता की शुरुआत का एक अनूठा समारोह था. दिल्ली के रामलीला मैदान में सुबह 9 बजे से ही लोगों का आना शुरू हो गया था. जंतरमंतर की तरह यहां भी बिना बुलाए चारों ओर से लोगों का हुजूम उमड़ा. हालांकि केजरीवाल 2 दिन पहले से दिल्ली की जनता को शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचने का न्योता मीडिया के माध्यम से दे रहे थे लेकिन दूसरी राजनीतिक रैलियों की तरह जनता बसों में भरभर कर नहीं लाई गई थी बल्कि अपनेआप पब्लिक ट्रांसपोर्ट, निजी वाहनों से राजधानी ही नहीं, आसपास के राज्यों से भी इस परिवर्तन की गवाह बनने पहुंची थी.

बड़ेबूढे़, बच्चे, महिलाएं, युवा हर वर्ग के लोगों से रामलीला मैदान का कोनाकोना भर गया. आसफ अली रोड, जवाहर लाल नेहरू रोड, सिविक सैंटर, अजमेरी गेट की सड़कों और भवनों पर उम्मीदों से भरी आंखें केजरीवाल को देखने, उन का उद्बोधन सुनने को बेताब दिखाई पड़ रही थीं. नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी को इतनी भीड़ के लिए सैकड़ों बसों का इंतजाम करना पड़ता है. यहां दूरदूर तक कोई बस नजर नहीं आई.

‘‘सचाई का रास्ता आसान नहीं होता, कांटों भरा होता है. जैसे आज तक हम सभी चुनौतियों का सामना करते हैं, उसी तरह दिल्ली की जनता मिल कर आने वाली सभी चुनौतियों का सामना करेगी. अन्नाजी मुझ से कहते थे कि राजनीति कीचड़ है लेकिन मैं ने उन से कहा कि इस कीचड़ में घुस कर ही इस गंदगी को साफ करना होगा. हमारे पास सारी समस्याओं का समाधान नहीं है पर पूरा यकीन है कि दिल्ली के अगर डेढ़ करोड़ लोग मिल जाएं तो हर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं. हम मिल कर सरकार बनाएंगे और सरकार चलाएंगे.’’

पहली बार किसी ने सत्ता में आम जनता को शामिल करने वाली बात कही तो मौजूद चेहरे दमक उठे. दरअसल, 2 साल पहले भ्रष्ट, नकारा और ढीठ राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ  उठे बवंडर के परिणामस्वरूप अब देश की राजनीतिक फिजा बदलती दिखने लगी है. बदलाव की सुहानी, शीतल बयार बह चली है. इस परिवर्तन से लोकतंत्र में तानाशाही जैसी घुटन महसूस कर रही जनता उत्साहित है, रोमांचित है. दिल्ली में जंतरमंतर पर उमड़े जनाक्रोश का ही नतीजा है, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है. भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे आंदोलन और उस से उपजी आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ का सब से ज्यादा विरोध करने वाली कांग्रेस, बिना मांगे उसे समर्थन दे रही है.

भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस को रौंदा पर दिल्ली में भाजपा के कट्टर हिंदूवादी रथ को ‘आप’ के अरविंद केजरीवाल ने रोक दिया. भाजपा के नरेंद्र मोदी अभियान की चमक फीकी पड़ गईर् है. दिल्ली के बाद अब बदलाव की यह सुखद बयार समूचे देश में बहने को आतुर है.

परिवर्तन की आंधी

त्रिशंकु विधानसभा के मद्देनजर दोबारा चुनाव के नाम से सब से ज्यादा कांग्रेस डर गई थी. समझदारी दिखाते हुए उस ने अपने 8 विधायकों का सब से पहले बिना मांगे, बिना शर्त ‘आप’ को समर्थन देने का पत्र उपराज्यपाल को भेज दिया. 32 विधायकों वाली भाजपा पीछे रह गई. किसी भी दल से समर्थन न लेने और न देने की बात कह चुके आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को अपने 28 विधायकों और कांग्रेस को मिला कर गठबंधन सरकार बनाने के लिए रायशुमारी लेनी पड़ी. ज्यादातर लोगों ने सरकार बनाने के पक्ष में मत जाहिर किया.

जनता के बीच जाने की इस लोकतांत्रिक कवायद को हालांकि कुछ ने ड्रामा करार दिया. परिवर्तन की हवा से अरसे से स्थापित भ्रष्ट, तानाशाह राजनीतिक दल और नेता दहशत में आ गए हैं. जो अहंकारी राजनीति इस जनाक्रोश को हलके में ले रही थी, हवा का रुख भांप कर हवा की ओर बह निकली है. घबराहट में चाल, चरित्र बदलने पर गंभीर मंथन शुरू हो गया है. रीतिनीतियों में बदलाव आने लगा है. जो दल और उन के घमंडी नेता कहते थे कि चंद लोगों और भीड़ के आंदोलन से कानून नहीं बनाए जा सकते, दिल्ली में ‘आप’ की जीत के बाद वही दल बिना किसी चींचपड़ के संसद में लोकपाल बिल पास कराने में उतावले नजर आ रहे थे. 36 साल से पड़ा लोकपाल बिल पास हो गया.

मिल गया सबक

सभी पार्टियां जनता से डरने लगी हैं. कांग्रेस और भाजपा आम आदमी पार्टी की भाषा बोलने लगी हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कहने लगे हैं कि उन्हें आम आदमी पार्टी से सीखना पड़ेगा. यानी 100 साल पुरानी पार्टी 1 साल पहले बनी पार्टी से सीखना चाह रही है. पूरे भ्रष्टाचार आंदोलन के दौरान मौन साधे रहे राहुल गांधी अब भ्रष्टाचार पर मुखर हो उठे हैं. अब जा कर उन्हें पता चला है कि भ्रष्टाचार आम जनता का खून चूस रहा है.

दोनों पार्टियों को ‘आप’ ने सबक सिखा दिया है. सरकार बनाने के लिए भाजपा ने पहली बार जोड़तोड़ नहीं की. उस ने ‘आप’ की तर्ज पर ‘वन वोट वन नोट’ की बात करनी शुरू कर दी है. 10 करोड़ घरों से चंदा उगाहने का निश्चय किया जा रहा है. ‘वोट फौर हिंदुत्व’ का नारा अब ‘वोट फौर इंडिया’ में तबदील हो गया है. धर्म, जातियां, वर्ग की बातें हाशिये पर की जा रही हैं.

देखा, लोकतंत्र का कमाल. जो लोग तानाशाही की बोली बोल रहे थे वे खामोश हैं या विनम्र हो गए हैं, जनताजनार्दन के पैरों को धो कर पीने का प्रण कर रहे हैं. सत्ता प्राप्ति के बाद जो जनता को भूल जाने की बीमारी से पीडि़त थे, उन्होंने अपना इलाज करा लिया है और हरदम जनता को हृदय में धारण

करने का संकल्प ले लिया है.

कांग्रेस ने भाजपा को ‘सांप्रदायिक’ और भाजपा ने कांग्रेस को ‘छद्म धर्मनिरपेक्ष’ की गाली देना बंद कर दिया है. काफीकुछ बदल रहा है. ‘आप’ की बढ़त से कांग्रेस और भाजपा की मुसीबतें बढ़ गई हैं. ‘आप’ नेताओं ने वादा किया है कि वे लुटियंस जोन के बड़े बंगलों में नहीं रहेंगे और न ही लालबत्ती की गाड़ी में घूमेंगे. सुरक्षा का तामझाम नहीं लेंगे. इन बातों से उन रुतबेबाज नेताओं को सीख मिल सकेगी जो जनता की गाढ़ी कमाई को दिखावे और फुजूलखर्ची में उड़ा देते हैं.

कर के दिखाया

दिल्ली की सत्ता में अनूठे बदलाव से सदियों से बेचारी, लाचार दिखने वाली, हुक्मरानों को माईबाप मानती आईर् जनता अब खुद को शक्तिशाली मानने लगी है. जनता का आक्रोश व्यवस्था के खिलाफ था. राजनीतिबाज उस गुस्से का मतलब अब समझ रहे हैं और आम आदमी पार्टी की भाषा बोलने लगे हैं. दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दोबारा चुनाव नहीं चाहतीं क्योंकि उन्हें और भी बुरी गत होने का भय है. अपने चुनावी अभियान के दौरान ‘आप’ ने जो कहा था वह कर दिखाया है.

शिकंजे में कांग्रेस

कांग्रेस को उम्मीद है कि ‘आप’ पानी, बिजली के वादों को पूरा नहीं कर पाएगी. समर्थन दे कर वह ‘आप’ को घेरना चाहती थी मगर पासा उलटा पड़ गया. ‘आप’ ने स्पष्ट कर दिया कि सरकार आते ही भ्रष्टाचारियों को जेल भेजा जाएगा. ऐसे में कांग्रेस की हालत सांपछछूंदर की हो गई है. वह ‘आप’ की बंधक बन गई है. कांग्रेस को अपने 8 विधायकों की चिंता है क्योंकि अगर अभी दिल्ली में दोबारा चुनाव होंगे तो क्या कांग्रेस के ये विधायक भी बच पाएंगे? न लोकसभा में कोईर् आ पाएगा और न ही राज्यसभा में. मजबूरी में उस ने बिना शर्त और बिना मांगे समर्थन का पत्र उपराज्यपाल को सौंपा है. इसी तरह भाजपा को भी अपने 32 विधायकों को बचा पाने का डर सताने लगा है.

हाशिये पर भाजपा

‘आप’ ने सरकार बना कर कांग्रेस और भाजपा की रणनीति और राजनीति को बिगाड़ने का काम किया है. भाजपा की खुशफहमी दूर हो गई है. झाड़ू ने भाजपा के परंपरागत वोटों को भी हिला दिया है. लोकसभा में अगर यही वोटर भाजपा से दूर रहा तो नतीजे चौंकाने वाले होंगे. सब से खास बात तो यह हुई कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैलियां अब मीडिया में हाशिये पर चली गई हैं. उन के सुर भी धीमे पड़ गए हैं. उन्हें अब साफ लग रहा है कि अब तक राहुल गांधी ही उन के सामने एकमात्र प्रतिद्वंद्वी थे, अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली की तरह केंद्र में भी उन की पार्टी की राह में आड़े आ सकते हैं.

‘आप’ ने हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए भी कमर कस ली है.   

दिल्ली में ‘आप’ की सरकार भारतीय लोकतंत्र की एक अनूठी ऐतिहासिक घटना है. यह किसी विचारधारा, जातिगत, धार्मिक समीकरण या क्षेत्रीय भावना के चलते नहीं बनी है जैसी आमतौर पर देश की पार्टियां हैं. यह भ्रष्टाचार के विरोध में हुए आंदोलन से पैदा हुईर् है. इस से जनता को पहली बार राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद जगी है.

पूरे करने होंगे वादे

आम आदमी पार्टी को अपने वादे पूरे करने होंगे. सरकार बनने के 3 दिन बाद ही पानी के वादे को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों को मुफ्त पानी देने का अपना  पहला वादा कुछ शर्तों के साथ निभा दिया. बिजली की दरों में कमी कर दी. अब बाकी चुनावी वादों को पूरा करना होगा. साथ ही उन्हें अपने प्रमुख मुद्दे ‘भ्रष्टाचार उन्मूलन’ की दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे. हालांकि, शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना, उस से सैटिंग कर लेना फिर हमें फोन कर देना. हम उसे रंगेहाथ पकड़ेंगे. लेकिन सरकारी दफ्तरों में हजारों नियमकायदे ऐसे हैं जो भ्रष्टाचार की खान साबित हो रहे हैं. लगता है कि ये नियमकायदे घूसखोरी के लिए ही बनाए गए हैं.

केजरीवाल नियमों को बदलने की बात कह रहे हैं. भ्रष्टाचार के लिए नियमकानून जिम्मेदार हैं. अगर सीधे, सरल नियम बनाए जाएं तो रिश्वतखोरी के रास्ते बंद होंगे. कानून आज आम आदमी के उत्पीड़न के हथियार बने हुए हैं. जनता इन कानूनों को कोसती देखी जा सकती है, इसलिए वह हर समस्या पर भीतरी बदलाव चाहती है.

आम आदमी के जीवन को सरकारी कानूनों ने बुरी तरह जकड़ रखा है. वे जीवन को आसान नहीं, बल्कि उलझाते हैं. इन नियमकायदों में आम आदमी को हर काम के लिए सरकारी मंदिरों में बेमतलब के चक्कर लगवाने और वहां बैठे सरकारी देवताओं को चढ़ावा चढ़वाने की मंशा निहित है. दिल्ली में एक छोटा सा कारोबार शुरू करने के लिए एक दर्जन से ज्यादा विभागों से मंजूरी लेनी पड़ती है और तरहतरह के कागजात पेश करने पड़ते हैं जिन में अधिकतर बेमतलब के ही होते हैं. अगर इन में से कहीं भी कमी रह जाए तो कोई बात नहीं, तमाम कागजों की पूर्ति कागज के हरेहरे नोट कर ही देंगे.

राजनीतिक सत्ता बदलने के बाद भी व्यवस्था नहीं बदलती. इस की मुख्य वजह हमारी पूरी राजनीतिक, प्रशासनिक व्यवस्था का भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा होना है.

फैक्टरी लाइसैंस और घूस

मिसाल के तौर पर दिल्ली में फैक्टरी लाइसैंस के लिए फैक्टरी विभाग में कोई आवेदन करता है तो उसे आवेदनपत्र के साथ इन दस्तावेजों को संलग्न करना पड़ेगा:

द्य      साइट प्लान और की प्लान की एकएक प्रति.

द्य      प्रस्तावित मशीनरी इंस्टौलेशन का एक रफ स्कैच, पावर लोड रेटिंग सहित मशीनों की सूची.

द्य      फर्म के कौंस्टिट्यूशन की एक प्रति.

द्य      किराया प्राप्ति की प्रति, लाइसैंस डीड और रैंट ऐग्रीमैंट.

द्य      आवेदित व्यापार के लिए उत्पादकता प्रक्रिया की प्रति.

द्य      प्रस्तावित क्षेत्र को मार्क करते हुए वर्तमान/संशोधित एरिया के साइट प्लान की मूल प्रति/माप सहित और दोनों पार्टियों द्वारा पूर्णतया हस्ताक्षरित.

द्य      निर्धारित प्रोफार्मा में एफिडेविट.

द्य      निर्धारित प्रोफार्मा में अंडरटेकिंग.

द्य      भूस्वामी/मालिक द्वारा एनओसी.

द्य      मालिकाना, किराएदारी/कानूनी कब्जा का प्रमाण.

द्य      आवेदित उद्योग के लिए पौल्यूशन कंट्रोल कमेटी द्वारा स्वीकृतिपत्र.

ये 11 दस्तातेज तैयार करने के लिए किसी को भी अपना धंधा शुरू करने के लिए हर जगह घूस देनी पड़ेगी.

जन्म प्रमाणपत्र

इसी तरह एक मामूली सा जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए कितनी लंबीचौड़ी कवायद करनी होती है, देखिए :

द्य     जन्म/मृत्यु जब घर में हुई, घर के मुखिया या नजदीकी रिश्तेदार के हस्ताक्षर.

द्य      जब जन्म/मृत्यु घर के बाहर हुई, प्रमाण दीजिए.

द्य      अस्पताल/स्वास्थ्य केंद्र, मैटरनिटी होम  या ऐसी अन्य संस्था के मैडिकल इंचार्ज या अन्य इंचार्ज के हस्ताक्षर.

द्य      जेल में जेल इंचाज के हस्ताक्षर.

द्य      अस्पताल, धर्मशाला, बोर्डिंग हाउस आदि प्रभारी व्यक्ति के हस्ताक्षर.

द्य      चलते वाहन में (वाहन इंचार्ज).

द्य      सार्वजनिक जगह पर मिलने पर ग्रामसेवक, मुखिया, स्थानीय पुलिस स्टेशन के इंचार्ज.

इन के अलावा ये कागजात भी चाहिए:

द्य      आवेदन फौर्म.

द्य      जन्म/मृत्यु के प्रमाण, जिस का जन्म/मृत्यु हुई हो.

द्य      एफिडेविट-स्थान, तारीख और समय सहित.

द्य      राशनकार्ड की प्रति.

द्य      स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट, जिस में जन्मतिथि दर्शाई गई हो.

द्य      ये सभी दस्तावेज किसी गजटेड अधिकारी द्वारा सत्यापित कराए गए हों.

व्यर्थ की भागदौड़

दिल्ली में बढ़ती आबादी और कम पड़ती जगह के बीच कई नियमकायदे सरकारी विभागों के लिए रिश्वत पाने का जरिया बने हुए हैं. दिल्ली विकास प्राधिकरण 23 मंजिला भवन बना सकता है, एमसीडी 28 मंजिला बना सकता है पर आम जनता अपनी मरजी से एक कमरा तो दूर, दीवार भी नहीं बना सकती. पुलिस, एमसीडी, डीडीए के कर्मचारी आ कर खड़े हो जाएंगे. यानी हालात कुछ ऐसे हैं कि एक कील ठोकने के लिए भी कई सारे विभागों से मंजूरी लेने के लिए चक्कर लगाने होंगे.

स्कूल, कालेज खोलने के लिए उच्च शिक्षा निदेशालय के दिशानिर्देशों के अलावा डीडीए और एमसीडी विभागों के कई कायदे अलग से हैं.

यह तो एक बानगी है. हर विभाग में आम आदमी के काम को ले कर अनगिनत अडं़गे हैं. ड्राइविंग लाइसैंस, गाड़ी ट्रांसफर, हैल्थ टे्रड लाइसैंस, वैटनरी लाइसैंस, ट्रेड/स्टोरेज लाइसैंस, कन्वर्जन ऐंड पार्किंग, फार्म हाउस फंक्शन, प्रौपर्टी टैक्स, टै्रफिक ऐक्ट, भूमि और संपत्ति संबंधी कानून, बिजली, पानी कनैक्शन से ले कर पुलिस महकमे में शिकायत करने तक हर जगह बिना पैसा दिए काम नहीं होते. यह रिश्वत जायज काम के लिए दी जाती है. लिहाजा, भ्रष्टाचार के लिए नियमकानून जिम्मेदार हैं. यहां तक कि समाचारपत्र निकालने के लिए कानून से बाहर की औपचारिकताएं लाद दी गई हैं जिन के बहाने खूब वसूली की जाती है. प्रकाशक को पहला पाठ घूस देने का सीखना पड़ता है.

भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए भी कानून हैं. किसी भ्रष्ट बाबू के खिलाफ कार्यवाही करने से पहले स्वीकृति जरूरी है. सीबीआई 36 उच्च रैंक के भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की इजाजत का इंतजार कर रही है मगर उन्हें मौजूदा ऐक्ट बचा रहा है.

कानून के व्यवहार का जो भ्रष्ट रूप है उसे बदलना सब से बड़ी जरूरत है.

जनाक्रोश जरूरी

जनता का आक्रोश इसी व्यवस्था के खिलाफ है. यह आक्रोश समूचे देश में व्याप्त है. कांग्रेस को अभी 4 राज्यों में यही गुस्सा ले डूबा. यह भाजपा के खिलाफ भी उतना ही है. दिल्ली में ‘आप’ ने हाथ आती सत्ता को भाजपा से दूर कर दिया. यह इसी आक्रोश का नतीजा है. इसे कांग्रेस और भाजपा दोनों साफ समझ चुकी हैं.

दिल्ली में ‘आप’ की सरकार से लोगों को उम्मीद जगी है. गंदी हो चुकी राजनीति के प्रति आक्रोश हर जन के भीतर है. यह आक्रोश बना रहना जरूरी है. लोकसभा चुनावों में भी इस का असर जरूर दिखाई देगा. ‘आप’ ने भ्रष्ट दलों के सामने कई लकीरें खींच दी हैं.

‘आप’ ने साबित कर दिया है कि राजनीतिक दलों के लिए कम पैसे में भी चुनाव जीतना संभव है. अगर दल खुद ‘आप’ से सबक नहीं लेंगे तो उन्हें जनता सिखा देगी. क्रांति की लौ जनता को जला कर रखनी होगी. अगर राजनीतिक पार्टियां भ्रष्ट हुई हैं और घोटाले हो रहे हैं तो यह जनता के सोए रहने का नतीजा है.

बहरहाल, 2014 के लोकसभा चुनावों तक राजनीतिक पार्टियों के नारे बदलेंगे, नीतियां बदलेंगी. अब वे जनता और सिर्फ जनता की ही माला जपती दिखाई पडें़गी. यह इस देश के लिए अच्छी बात होगी.                           

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