आयकर विभाग और सीबीआई की सक्रियता बढ़ गयी है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के पी चिदंबरम के बेटे के खिलाफ छापेमारी चल रही है. खुलासे हो रहे हैं. खुलासे होंगे. कहा जा रहा है कि सरकार भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चला रही है. ‘‘भ्रष्टाचारियों को हिसाब-किताब देने का दिन आ गया है.‘‘ …‘‘लोगों को उनकी करतूतों के लिये जिम्मेदार ठहराया जायेगा.‘‘
अच्छी बात है. आरोप के अलग-अलग दायरे में सोनिया गांधी, राहुल गांधी हैं. कई कांग्रेसी हैं. ‘आम आदमी पार्टी’ के अरविंद केजरीवाल हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती हैं. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव हैं. तृणमूल कांग्रेस को ढ़ीले-ढ़ाले आरोप के दायरे में रखा गया है. कह सकते हैं, कि जिनकी भी राजनीतिक चुनौती भाजपा को मिल सकती है, वो तमाम राजनीतिक दल और उनके सबसे बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपी हैं.
विपक्ष का कहना है, ‘‘यह राजनीति से प्रेरित है.” हम यह नहीं कह सकते कि ‘ऐसा नहीं है.” हम यह भी नहीं कह सकते कि ‘‘आरोपों में कोई दम नहीं.” हम यह जरूर कह सकते हैं कि भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्ट सरकार भ्रष्ट राजनीतिक दलों को ही जन्म देती है. भाजपा और मोदी की सरकार भ्रष्ट व्यवस्था की ही कड़ी है. उसी का विस्तार और उसी का राष्ट्रवादी संस्करण है, जहां आर्थिक एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार की लम्बी परम्परा है. इस परम्परा से बाहर कोई नहीं है.
आजादी के बाद आर्थिक विकास की दिशा और सरकारों पर नजरें टिकायें तो यह नजारा साफ नजर आयेगा कि अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे निजी कम्पनियों की भूमिका बढ़ती गयी है, देश में आर्थिक एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार का आंकड़ा भी बढ़ता गया है. जिसका सीधा सा मतलब निकलता है कि निजी सम्पत्ति और निजी कम्पनियां ही भ्रष्टाचार के मूल में हैं. जिसके खिलाफ न तो कांग्रेस की सरकार ने, ना ही भाजपा की मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया है. उन्हें तो भ्रष्टाचार की परिधि से बाहर रखा गया. इन ताकतों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले यदि सामने आये भी तो, वो लम्बित ही रहे. कुमार मंगलम बिड़ला पर सीधा आरोप आया तो मनमोहन सरकार ही बदल गयी. मोदी जिन ताकतों को खुली छूट देने का करार हैं, वह करार अपने आप में अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार है.