राजनीति मुद्दों को सफलता की सीढ़ी बनाकर कुर्सी हासिल करती है और फिर मुद्दों को वहीं छोड़ देती है. उत्तर प्रदेश की अयोध्या इसकी सबसे बड़ी मिसाल है.

पिछले 30 सालों में उत्तर प्रदेश का कोई भी चुनाव अयोध्या पर बयान के बिना पूरा नहीं हुआ. केवल भाजपा ही नहीं सपा और दूसरे दल भी अयोध्या के वोटबैंक का लाभ लेने में चूकते नहीं.

अब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार के समय अयोध्या गोलीकांड को सही ठहराकर मुद्दे को हवा देने की शुरूआत की है. आज मुलायम सिंह को इस बात का भी मलाल है कि अयोध्या के नायक कल्याण सिंह को सपा में शामिल करने की गलती की थी.

मुलायम ने अयोध्या का जिक्र यूंही नहीं किया है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में वोटो के धार्मिक ध्रुवीकरण के लिये यह कवायद की है. मुलायम सिंह यह भूल गये हैं कि वोटो का धार्मिक ध्रुवीकरण कई बार बैक फायर कर जाता है.

लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने हैं. मुलायम का ‘अयोध्या प्रलाप’ अखिलेश यादव के विकास के मुददे को प्रभावित कर सकता है.   

अयोध्या में राममंदिर के समर्थन और विरोध की राजनीति करने वाले सभी दलों ने उसे वोट बैंक बनाकर सत्ता की कुर्सी हासिल की, पर अयोध्या की सुध लेने वाला कोई नहीं हुआ.

अयोध्या के राममंदिर विवाद के बाद वहां के हालात दिन-ब-दिन लगातार खराब ही होते गये हैं. पहले जहां अयोध्या के हर मंदिर में रौनक रहती थी इनमें अब ज्यादातर मंदिर सूने दिखते है. ज्यादातर मंदिरों में संपत्ति और जायदाद को लेकर झगड़े हो रहे हैं. कई मंदिरों में यह झगड़े हत्या तक पहुंच गये हैं. राम मंदिर आन्दोलन के बाद हुये विवाद के चलते अयोध्या की रौनक खो गई है.

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