चुनाव परिणाम के एक सप्ताह बाद तक भाजपा उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के नाम का खुलासा नहीं कर पाई है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को सबसे बड़ी जीत दिलाने वाले उत्तर प्रदेश का नम्बर सबसे बाद में रखा गया. जिन राज्यों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला वहां मुख्यमंत्री का नाम तय करके सबसे पहले सरकार बना दी गई. विरोधी दल इसे उत्तर प्रदेश की उपेक्षा के रूप में देख रहे हैं. भाजपा के मुख्यमंत्री पद को लेकर बने उहापोह के बीच जो नाम सबसे अधिक चर्चा में है वह सभी केन्द्रीय मंत्री ‘मनोज सिन्हा’ का है. इसके बाद कई और नाम भी सामने आ रहे हैं जो लोकसभा के सदस्य हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के 325 विधायक चुनाव जीत कर आये हैं.
अगर भाजपा इनमें से मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं करती और लोकसभा के सदस्यों में से किसी को मुख्यमंत्री बनाती है तो दो बातें साफ है कि भाजपा को विधायकों की क्षमता पर भरोसा नहीं है. इसलिये उनमें से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. दूसरी बात लोकसभा सदस्य को मुख्यमंत्री बनाये जाने का जो कारण दिखाई दे रहा है वह यह कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली को समझता है. प्रधानमंत्री जैसा कहेंगे वैसा वह करेगा. जिस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दखल विधायकों के नाम चुनने से लेकर चुनाव प्रचार करने में रहा है उससे साफ है कि जो भी मुख्यमंत्री होगा वह प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में ही काम करेगा.
भाजपा में अब तक जो भी मुख्यमंत्री रहे हैं वह किसी नेता के प्रतिनिधि के रूप में काम नहीं करते हैं. उनका अपना वजूद रहा है. ऐसे मुख्यमंत्रियों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम प्रमुख है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद युवाओं को प्रदेश की कमान देने के नाम पर ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाने का सिलसिला शुरू हुआ जो केन्द्र सरकार के रिमोट की तरह काम कर सकें. गुजरात में पहले आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया जब वह सफल नहीं हुई तो विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाना गया. हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर भी नये नाम की तरह सामने आये और मुख्यमंत्री बने.
गोवा में भाजपा को पूरा बहुमत नहीं मिला तो वहां रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को भेजा गया क्योंकि वह पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उत्तराखंड में भाजपा को कोई खतरा नहीं था तो पहले के तमाम मुख्यमंत्रियों को दरकिनार कर त्रिवेन्द्र सिंह रावत को कुर्सी सौंपी गई. जो भाजपा में उत्तराखंड के लिये नया नाम था. जानकार मानते है कि जहां भाजपा को बहुमत हासिल हुआ है वहां वह रिमोट कंट्रोल मुख्यमंत्री पसंद करती है. भाजपा केन्द्र से कई अफसरों को भी उत्तर प्रदेश भेजने जा रही है, जो प्रधानमंत्री की योजनाओं को अमल में लायेंगे.
कमजोर मुख्यमंत्री बनाने का काम कांग्रेस भी करती रही है. जब कांग्रेस की कमान इंदिरा गांधी ने संभाली तब वह पार्टी की सबसे मजबूत मेंमबर थी. इंदिरा गांधी अपने पंसद का मुख्यमंत्री ही चुनती थी. उसी नाम पर विधायक और पर्यवेक्षक मुहर लगाते थे. पर भविष्य के लिहाज से यह नीति पार्टी के लिये सही नहीं साबित हुई. आज कांग्रेस को कई प्रदेशों में जनाधार वाले नेता नहीं मिल रहे. अगर पार्टियां ऐसे ही अपनी पसंद के नेता का नाम चुनती रही तो प्रदेश स्तर के जमीनी नेताओं का विकास रूक जायेगा. कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह ही कई बार विशाल बहुमत हासिल किया था. कांग्रेस के हश्र को देख समझ कर भाजपा को उस तरह के फैसलों से दूर रहना चाहिये जिसके चलते कांग्रेस का यह हश्र हुआ है.