फौरीतौर पर देखें तो लगता है कि लालबत्ती उतर जाने से वीआईपी कल्चर खत्म हो जायेगा. थोड़ा गहराई में जाये तो दिखता है कि लालबत्ती वीआईपी कल्चर को हाशिये पर ले जाने की पहली सीढ़ी है. हवाई जहाज के सफर से लेकर ट्रेन के सफर तक इसकी छाया का प्रभाव दिखता है. बड़े अफसर और नेता ही नहीं सत्ता पक्ष के पार्टी कार्यकर्ता तक प्रभावी होते हैं. वह भी वीआईपी कल्चर का एक हिस्सा होते हैं. बुंदेलखंड में पार्टी को संबोधित करते खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘विकास कामों में हड़बड़ी होने से बीजेपी कार्यकर्ता कानून हाथ में न ले. वे गलत काम की शिकायत अपने जनप्रतिनिधि और पदाधिकारियों से करें. विपक्ष में थे तो धरना प्रदर्शन सब चलता था. अब धरना प्रदर्शन पार्टी कार्यकर्ताओं का काम नहीं है.’
असल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत ही सरल तरह से बात को समझाने का प्रयास किया है. बहुमत की सरकार बनने के बाद भाजपा के नेताओं से अधिक भाजपा के साथ शामिल किये गये नेता और कार्यकर्ता सत्ता की हनक दिखा कर ठेका, रिश्वत, जमीनों मकानों के कब्जे के लिये झगड़ों को सुलझाने की आड़ में अफसरों से साठगांठ करने लगे हैं. यह दुखद हालात बन रहे हैं. जिस तरह का आरोप समाजवादी पाटी के कार्यकर्ताओं पर लग रहा था अब भाजपा में शामिल हुये कार्यकर्ता करने लगे हैं. भाजपा विधायक महेन्द्र सिंह यादव का टोल कर्मचारियों से मारपीट करना छोटा उदाहरण भर है. सरकार बनने के बाद कुछ लोग सरकार की छवि को दागदार बना रहे हैं. असल में इस वीवीआईपी कल्चर पर रोक जरूरी है.