भारत की सीमाओं के अंदर गोया एक अलग ही संसार है पूर्वोत्तर. चीन की संस्कृति से प्रभावित, लेकिन रहन सहन भारतीयता से परिपूर्ण और बदला-बदला सा खानपान इस बात का अहसास कराता है. प्राकृतिक विविधताओं के बीच नदी में लिपटा संसार का सबसे लंबा द्वीप, कंचनजंघा की बर्फीली पहाड़ियों पर सर्पीले रास्ते, दुनिया का सबसे नम स्थान, घने मनोहारी जंगल, मूसलधार बारिश, चाय के बाग, सौंदर्य बिखेरते परंपरागत आवास और जंगलों में गैंडे व याक का वास. यही है सेवन सिस्टर्स यानी पूर्वोत्तर की पहचान.

प्रकृति ने पूर्वोत्तर को हर तरह की सौगात दी. लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इसका समुचित दोहन होना अब भी बाकी है. इन आठ राज्यों में असम, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम व सिक्किम में उग्रवाद व अलगाववादी ताकतें विकास की हवा पहुंचने नहीं दे रही हैं. पहाड़ी राज्यों में ट्रेन रूट व सड़कों का अभाव विकास को भी आगे नहीं बढ़ने दे रहा है. कई राज्यों में तो एक किमी भी रेल पटरी नहीं बिछी. समूचे पूर्वोत्तर के बाशिंदे मुख्यत: सड़क परिवहन पर ही निर्भर हैं.

अरुणाचल से लेकर सिक्किम तक पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में स्वाधीनता और स्वायत्तता का जुनून छा रहा है. इन राज्यों में सीमा विवाद भी चरम पर है. बांग्लादेशी घुसपैठ खत्म नहीं हो रही तो चीन की अरुणाचल पर गिद्धदृष्टि है. वोट की राजनीति के चलते उग्रवादी तत्वों को हवा मिल रही है. राज्य सरकारें केंद्र से आतंकवाद से जूझने के लिए मिलने वाली राशि के लालच में उग्रवादी तत्वों के साथ नूराकुश्ती खेल रही हैं. यहां सिक्किम ही इकलौता राज्य है, जो तीन तरफ विदेशी सीमाओं से घिरे होने के बावजूद शांति का टापू बना हुआ है. बांग्लादेशी घुसपैठ से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं है. इसके प्रमाण कोलकाता स्थित रेडलाइट एरिया समेत जेलों में बंद बांग्लादेशी कैदियों से मिलते हैं.

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