छुआछूत के मुद्दे पर दलित अलग थलग पड़ते थे, तो राष्ट्रवाद के नाम पर मुसलिम. अब भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह समझ आ रहा है. वह दलित और मुसलिमों को लेकर नई सोच बना रहे हैं, जो देश और समाज के हित में है. परेशानी की बात यह है कि उनकी बात खुद उनके संगठन और उससे जुड़े संगठनों को कितना समझ में आयेगी. पाकिस्तान के साथ गरम माहौल के बीच केरल के कोझीकोड में भाजपा की नेशनल काउंसिल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ‘मुसलिमों को अपना समझे. इनको वोट बैंक का माल नहीं समझा जाना चाहिये.’
प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय के कथन को सामने रखते हुए कहा ‘मुसलमानो को न पुरस्कृत किया जाये और न फटकारा जाये, बल्कि उन्हे अपने पांव पर खड़ा करके मजबूत बनाया जाये. उन्हे अपना समझा जाये. न कि वोट बैंक की वस्तु या फिर नफरत का सामान.’ प्रधानमंत्री मोदी यही नहीं रुकते हैं, वह आगे वह कहते हैं ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मुसलमानो को करीब आने और उनकी तरक्की के लिये यह मंत्र 50 साल पहले दिया था. कुछ लोगों ने पहले जनसंघ और बाद में भाजपा को समझने में गलती की. कुछ जानबूझ कर अब भी ऐसा कर रहे है‘.
असल में नरेन्द्र मोदी को मुसलिम और दलित प्रेम यूं ही नहीं जन्मा है. गोरक्षा के नाम पर पहले मुसलिमों और बाद में दलितों के साथ भेदभाव भरा व्यवहार किया गया. इसमें राष्ट्रवादी कहे जाने वाले संगठनों का बहुत बड़ा हाथ था. गोमांस के नाम पर कई हिंसक कांड हुये, जिसमें भाजपा ने चुप्पी साध ली थी. जब यह मसले आगे बढ़े तो प्रधानमंत्री ने 80 फीसदी गोरक्षा संगठनों को फर्जी बता दिया. अब दलितों के बाद मुसलिमों की बारी आई. पाकिस्तान के साथ तनाव भरे माहौल में भाजपा पर नैतिक दबाव आने लगा. उस पर मुसलिम विरोध का पुराना लेबल लगा है. ऐसे में माहौल को हल्का करने के लिये प्रधानमंत्री मोदी ने अपना मुसलिम राग छेड़ दिया.