देश बिजली, पानी, सड़क और भ्रष्टाचार से त्रस्त है और हमारे तथाकथित जनसेवक नेता इन पर गौर फरमाने के बजाय घोटाले करने व मूर्तियों पर जनता का पैसा उड़ाने में मसरूफ हैं. वे विकास के नाम पर औद्योगिक घरानों, नौकरशाहों और दलालों के गठजोड़ बना कर जनता को ठगने में जुटे हैं. राजनेताओं के पास जनता की तरक्की का कोई फार्मूला नहीं है. उन्होंने देश को क्या दिया, क्या देंगे, क्या दे सकते हैं, पेश है इस पर विश्लेषणपरक लेख.
गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुजरात में सरदार सरोवर तट पर बन रही सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा की स्थापना पर बड़ा गर्व करते नजर आते हैं. 2,500 करोड़ रुपए की लागत से बन रही इस प्रतिमा को विश्व की सब से ऊंची प्रतिमा बताया जा रहा है. गांधीनगर में विधानसभा, राजभवन तक जाने वाली सड़कें चमक रही हैं. अहमदाबाद, सूरत के मौल गुलजार नजर आ रहे हैं. नदियों, सरोवरों पर बांध बनाए गए. पर्यटन विकास के लिए ऐतिहासिक जगहों पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए. पर्यटकों के लिए एअरकंडीशंड बसें चलाई जा रही हैं. क्या इसे ही विकास कहेंगे? इस तरह का विकास किस के लिए है?
विकास नहीं आलोचना
नरेंद्र मोदी जहां कहीं भी भाषण देते हैं वे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी संप्रग सरकार व सोनिया गांधी और राहुल गांधी की आलोचनाओं से भरे होते हैं. मोदी और दूसरे भाजपा नेता गुजरात को विकास का मौडल साबित करने पर तुले हैं. मोदी ने पिछले 10 सालों में गुजरात का कैसा विकास किया? गुजरात के लाखों लोगों के सिर पर छत नहीं है, वहां के हर 10 बच्चों में 4 कुपोषण के शिकार हैं. रोजगार के लिए लोगों को दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ रहा है. गांव, कसबों और शहरों में पीने के पानी की किल्लत बनी हुई है. मोदी को आडवाणी, टाटा, अंबानी की कंपनियों को जमीनें, कर्ज, इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने की चिंता लगी रहती है. किसान आत्महत्या करते हैं तो कोई बात नहीं. गरीब कर्ज से परेशान हो कर मरता है तो फिक्र नहीं. गांवों, गरीबों के लिए बुनियादी सुविधाएं पहुंच रही हैं या नहीं, मोदी सरकार को इस से सरोकार नहीं.
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