भारतीय जनता पार्टी में अरसे से ‘लौह पुरुष’ की तथाकथित छवि के भ्रम में पीएम पद का सपना संजोए लालकृष्ण आडवाणी को आज एहसास हो रहा होगा कि उन के लौह पुरुष के ढांचे में सिर्फ बुरादा भरा था. मोह, ममता और महत्त्वाकांक्षा के भंवरजाल में फंसे आडवाणी को आखिर अब किस फजीहत का इंतजार है? पढि़ए राजकिशोर का लेख.

अपनी ही पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी की हालत जैसी हो गई है, उसे देख कर किस की आंखें नहीं भीग जाएंगी. मिर्जा गालिब ने एक जबरदस्त शेर कहा है, ‘‘निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बड़े बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले.’’ इस से संकेत मिलता है कि आडवाणी के साथ जो हो रहा है वह कोई पहली बार नहीं हो रहा है. शायद दुनिया की यही रीति है. एक समय जो लालकृष्ण आडवाणी बाबरी मसजिद को गिराने निकले थे, वे अब महसूस कर रहे होंगे कि गिरना क्या होता है. लेकिन उन्हें इसलिए दंडित नहीं किया गया है कि उन्होंने बाबरी मसजिद क्यों गिराई, बल्कि इस की सजा दी जा रही है कि उस के बाद उन्होंने कुछ और क्यों नहीं गिराया?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक ऐसा व्यक्तित्व मिल गया है जो उस के सपनों को साकार कर सकता है. इसलिए आडवाणी 80 वर्ष के हो गए हों या 85 वर्ष के, संघ उन की ओर मुड़ कर देखना नहीं चाहता. संघ ने अपना दांव मोदी पर लगा दिया है. अब आडवाणी संघ या भारतीय जनता पार्टी से चिपके रहने की कोशिश कर सकते हैं, किंतु उन का अंग नहीं बन सकते.

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