कांग्रेस मुक्त भारत के अपने अभियान में सफल होने के लिये भारतीय जनता पार्टी ने जो हथकंडे खेले अब उसकी साख पर ही बट्टा लगा रहे हैं. उत्तराखंड और अरूणाचल प्रदेश में चुनी हुई कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने का जो काम केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने किया अदालत ने उसको सही नहीं माना और वहां कांग्रेस की सरकारों को बहाल कर दिया.
केन्द्र सरकार के फैसले पर अदालत का निर्णय एक सबक जैसा है. देश के संविधान के हिसाब से काम न करने से सरकार केन्द्र सरकार अलोचना से घिर गई है.राजनीतिक रूप से उत्तराखंड और अरूणाचल बहुत महत्वपूर्ण भले न हो पर यहां मिली सफलता ने कांग्रेस को उठ खड़े होने की ताकत दे दी है.वह केन्द्र सरकार के विरोधी दलों के प्रति सौतेलेपन को मुद्दा बनाकर विपक्ष की लड़ाई का केन्द्र बिन्दू बन सकती है.
विपक्ष में रहते भाजपा जिस नैतिकता की बात करती थी सरकार में आते ही उसे तार-तार करके रख दिया है. 2 साल में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिया गया यह तीसरा बड़ा झटका है.
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र द्वारा नियुक्त राज्यपालों की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि ‘राज्यपाल का कंडक्ट न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिये बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिये. उनको राजनीतिक दलों की लड़ाई से दूर रहना चाहिये.’
प्रदेशो में जबजब विरोधी दल की सरकार होती है राज्यपाल की भूमिका और कामकाज पर सवाल उठते हैं. उत्तर प्रदेश में राज्यपाल को लेकर सत्तापक्ष समाजवादी पार्टी के कुछ नेता नाराज रहते हैं. कई बार राज्यपाल पर आरएसएस का आदमी होने को आरोप तक लगाया जाता है. जब भाजपा सत्ता में थी तब वह दूसरे दलों पर ऐसे आरोप लगाती थी. सत्ता मे आकर वह भाजपा वही काम कर रही है जिसके लिये कभी वह कांग्रेस को कोसा करती थी.
अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने दिल्ली में अरूणाचल भवन में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. अरूणाचल प्रदेश की ही तरह यह उत्तराखंड में पहले ही हो चुका है.
उत्तराखंड में भी मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सत्ता को दोबारा हासिल करने में सफलता पाई थी. इन फैसलों का प्रभाव भाजपा की इमेज पर पड़ा है. भाजपा इस बात को जानती समझती है.
पूरे देश में यह संदेश गया है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने संविधान के खिलाफ काम किया है.अदालत के फैसले के बाद केन्द्र सरकार पूरी तरह से बेनकाब हो गई है.संविधान के मुददे पर पार्टी इस तरह को जोखिम नहीं लेना चाहती थी.इसके बाद भी ऐसा हो गया जिससे केन्द्र सरकार को बचना चाहिये था.
मोदी सरकार के रणनीतिकार द्वारा संवैधानिकता और राजनीतिक मर्यादा को ताक पर रखकर की जाने वाली इन योजनाओं के फेल होने पर सरकार पर सवालिया निशान लगने लगे हैं.
भाजपा संविधान की रक्षा की दुहाई देती थी पर सत्ता में आकर वह बदल चुकी है. केन्द्र और राज्य सरकार के बीच संबंधों को संविधान में पूरी तरह से समझाया गया है.केन्द्र सरकार अपने अधिकार का दुरूपयोग करके राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करती है. इससे तानाशाही की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है.