Bihar Assembly Elections : वक्फ विधेयक बिहार की राजनीति में एक नए और महत्वपूर्ण टकराव का बिंदु बन गया है. इस कानून को ले कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच तीखी बयानबाजी और आरोपप्रत्यारोप का दौर जारी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस टकराव का बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है.

भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी के प्रमुख नीतीश कुमार के साथसाथ राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी जयंत सिंह की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, पार्टी में विरोध मुखर होता चला जा रहा है. इस आंधीतूफान में कितने नेता धराशाई हो जाएंगे यह तो समय बताएगा मगर बिहार की राजनीति में इन दिनों वक्फ (संशोधन) विधेयक, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया है, एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है.

इस कानून को ले कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच तीखी बयानबाजी और आरोपप्रत्यारोप का दौर जारी है. राजद के प्रमुख नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जिस दृढ़ता के साथ इस विधेयक को निरस्त कराने का संकल्प लिया है, उस ने राज्य के राजनीतिक तापमान को एकाएक बढ़ा दिया है. उन की पार्टी ने न केवल बिहार में सत्ता में आने पर इस कानून को पलटने की घोषणा की है, बल्कि इसे चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है.

यह घटनाक्रम बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए और संभावित रूप से बड़े टकराव का संकेत देता है. तेजस्वी यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) पर जम कर निशाना साधा.

उन्होंने आरोप लगाया, जद(यू) यह साबित करने की नाकाम कोशिश कर रही है कि यह विधेयक मुसलमानों के हितों की रक्षा करता है. राजद नेता ने जद(यू) द्वारा हाल ही में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन का उल्लेख करते हुए कटाक्ष किया, जिस में पार्टी के कई मुसलिम नेताओं को शामिल किया गया था.

तेजस्वी यादव ने सवाल उठाया कि यदि जद(यू) वास्तव में इस विधेयक को मुसलमानों के लिए फायदेमंद मानती है, तो पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने स्वयं मीडिया को संबोधित क्यों नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा, “प्रेसवार्ता समाप्त होने के तुरंत बाद सभी नेता पत्रकारों के सवालों से बचते हुए चले गए, जो दर्शाता है कि पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर गहरी असहजता और संभवतः मतभेद मौजूद हैं.”

राजद का मुख्य तर्क यह है वक्फ (संशोधन) विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है.

तेजस्वी यादव ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन की पार्टी के सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में इस विधेयक का पुरजोर विरोध किया था, क्योंकि उन का मानना है कि यह कानून धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर अतिक्रमण करता है.

सर्वोच्च न्यायालय में इस विधेयक को चुनौती देने का राजद का निर्णय इस मुद्दे को केवल राजनीतिक दायरे से बाहर निकाल कर कानूनी लड़ाई के मैदान में ले जाता है. अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि देश की शीर्ष अदालत इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह विधेयक संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप पाया जाता है.

यह घटनाक्रम जद(यू) के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर रहा है. एक तरफ, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के रुख का समर्थन करना पड़ रहा है, जिस ने इस विधेयक को पारित कराया है. वहीं, दूसरी तरफ उन्हें बिहार में अपने अल्पसंख्यक समुदाय के वोट बैंक को भी साध कर रखना है, जो इस कानून को ले कर आशंकाएं व्यक्त कर रहा है. जद(यू) के मुस्लिम नेताओं की असहजता और वरिष्ठ नेताओं का मीडिया से दूरी बनाए रखना इस दुविधा को स्पष्ट रूप से दर्शाता है.

तेजस्वी यादव ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में यह तक कह दिया, “ऐसा प्रतीत होता है कि जद(यू) के कार्यालयों में जल्द ही नीतीश कुमार की तस्वीरों की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें लग जाएंगी.” उन का यह बयान जद(यू) पर भाजपा के बढ़ते प्रभाव और राज्य की राजनीति में संभावित ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है.

तेजस्वी यादव ने यह भविष्यवाणी भी की है कि चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह एक बच्चा भी जानता है. यह बयान न केवल जद(यू) पर दबाव बनाने की रणनीति है, बल्कि यह बिहार की बदलती राजनीतिक समीकरणों और राजद की बढ़ती हुई आत्मविश्वास को भी दर्शाता है. पिछले कुछ समय से राजद ने लगातार विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की है और वक्फ विधेयक का मुद्दा उन्हें एक और महत्वपूर्ण हथियार मिल गया है.

वक्फ विधेयक वास्तव में है क्या? मोटे तौर पर, यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन से संबंधित नियमों में कुछ बदलाव करता है. सरकार का तर्क है, इन संशोधनों से वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा और उन में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम किया जा सकेगा. हालांकि, विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को वक्फ बोर्डों के कामकाज में अनुचित हस्तक्षेप करने की शक्ति प्रदान करता है और यह अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण है.

बिहार की राजनीति में वक्फ बोर्ड हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और उन का उपयोग अकसर विवादों में घिरा रहता है. ऐसे में, इस नए कानून को ले कर राजनीतिक दलों का अलगअलग रुख स्वाभाविक है. राजद इस मुद्दे को उठा कर न केवल अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, बल्कि वह जद(यू) को भी एक मुश्किल स्थिति में धकेलना चाहता है.

आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जद(यू) इस चुनौती का किस प्रकार सामना करती है. क्या पार्टी अपने अल्पसंख्यक नेताओं को विश्वास में ले कर कोई प्रभावी रणनीति बना पाती है? या फिर राजद इस मुद्दे को और जोरशोर से उठा कर राजनीतिक माहौल को अपने पक्ष में करने में सफल होता है? सर्वोच्च न्यायालय का इस मामले पर क्या फैसला आता है, यह भी बिहार की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है.

कुल जमा वक्फ विधेयक बिहार की राजनीति में एक नए और महत्वपूर्ण टकराव का बिंदु बन गया है, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद का इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोलना और इसे कानूनी चुनौती देना राज्य के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है.

यह देखना दिलचस्प होगा कि इस टकराव का बिहार की राजनीति पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और क्या वास्तव में यह मुद्दा आगामी चुनावों में एक निर्णायक भूमिका निभाता है. यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिन काफी गहमागहमी भरे रहने वाले हैं.

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