अपनी पार्टी और परिवार के बीच उलझे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हर चाल को मात दे कर अपने को मजबूत खिलाड़ी साबित किया. राजनीति में कल तक जो लोग अखिलेश यादव को अनाड़ी समझ रहे थे, वह भी दबी जुबान से अखिलेश को मझा हुआ खिलाड़ी मान रहे हैं.
परिवार के इस विवाद में सबसे पहले मुख्यमंत्री ने पूरे मसले को मुलायम के उत्तराधिकार विवाद से दूर रखा. मुलायम के दूसरे पुत्र और पत्नी का मसला बाहर न आये इसलिये अमर सिंह का नाम चर्चा में रखा. परिवार के इस विवाद में वह बार बार यह साबित करते रहे कि पिता के रूप में मुलायम सिंह यादव की हर बात मानते हैं. जबकि अखिलेश के उलट मुलायम यह कहते रहे कि ‘जो अपने बाप का नहीं हुआ वह अपनी बात का क्या होगा?’
सबके सामने अखिलेश यादव चाचा शिवपाल सिंह यादव की हर बात को समर्थन करते रहे. शिवपाल की आलोचना करने की जगह पर वह बार बार बीच में अमर सिंह को लाते रहे. जबकि शिवपाल यादव के हर फैसले को वह उलटते रहे. शिवपाल के मुकाबले अपने दूसरे चाचा प्रोफेसर राम गोपाल यादव को अपने करीब करते गये. एक तरफ शिवपाल यादव के बड़े भाई मुलायम सिह यादव के साथ खड़े नजर आये. तो दूसरी ओर अखिलेश यादव और राम गोपाल यादव खड़े हो गये. एक गुट से दूसरे गुट पर चले ‘लेटर बम’ में रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव के बीच मुकाबला बना रहा.
अखिलेश और शिवपाल के बीच विधायकों को लेकर शक्ति परीक्षण का दौर चला तो अखिलेश ने सबसे पहले विधायको की मीटिंग बुलाई. वहां 180 से अधिक विधायकों के पंहुचने से साफ हो गया कि विधायकों के शक्ति परीक्षण में अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव को मात दी. शिवपाल के पक्ष में 40 के करीब ही विधायक खडे दिखाई दिये. एक तरफ शिवपाल पार्टी में अखिलेश समर्थको को बाहर करते रहे तो जबाव में अखिलेश अपने मंत्रिमंडल से शिवपाल समर्थकों को बाहर करते रहे.