मध्य प्रदेश एक शांत प्रदेश रहा है, समाज हिंदूमुसलिम के बीच कभी बंटा हुआ नहीं दिखा. यही वजह रही है कि मुसलमानों की कम आबादी होने के बावजूद भी मुसलिम जनप्रतिनिधि अपनी आबादी अनुपात के हिसाब से विधानसभा पहुंचते रहे हैं. यहां तक वह बहुसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों का भी प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. लेकिन हाल के कुछ वर्षों में ऐसा सामाजिक धुर्वीकरण किया गया कि मुसलिम बाहुल्य सीटों से भी मुसलमानों का चुनाव जीतना मुश्किल हो गया, जिसके चलते राजनीतिक दल उनको टिकट देने से भी परहेज करने लगे.

यही वजह रही कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में राज्य के एक बड़े वर्ग यानी मुसलमानों में कतई उत्साह नहीं दिखा. पिछले ढाई दशक में मध्य प्रदेश में मुसलिम राजनीति हाशिए पर चली गई है. अपने को अल्पसंख्यक परस्त कहने वाली कांग्रेस ने साल 2014 के बाद राज्य में मुसलमानों से राजनीतिक किनारा करने की कोशिश की है. इस समय राज्य में कोई ऐसा नाम नहीं है जिसे प्रदेश स्तर पर राजनीतिक पहचान मिली हो.

चुनाव 2023 में सियासी तपिश के साथ ही कांग्रेस की मुसलिमपौलिटिक्स पूरी तरह से बदली हुई नजर आई है. एक मुसलिम नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में ओवैसी के उभार से भी अन्य दलों में मुसलमानों को राजनीतिक नुकसान पहुंचा है. ओवैसी मुसलिम बाहुल्य सीटों पर अपने मुसलिम उम्मीदवार मैदान में उतार देते हैंजिससे धर्मनिरपेक्ष दलों के मुसलिम उम्मीदवारों के मुसलिम वोट बंट जाते हैं,तो भाजपा की राह आसान हो जाती है.मुसलिम बाहुल्य सीटों पर हिंदू उम्मीदवार ज्यादा सफल रहते हैं.

मध्य प्रदेश में अनदेखी

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