प्रमुख समाजवादी नेता डाक्टर राम मनोहर लोहिया का धर्म की राजनीति के बारे में कहना यह था कि राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है. समाजवादियों ने तो इस फिलौसफी या थ्योरी के माने कभी समझे नहीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 18 जून को एक बार फिर से काशी में देख कर लगा कि लोहिया गलत नहीं कह गए थे . उन के सच्चे अनुयायी तो अब दक्षिणपंथी हो चले हैं जिन्होंने धर्म और राजनीति में फर्क ही खत्म कर रखा है.

4 जून को आमचुनाव के नतीजे देख सकपका नरेंद्र मोदी भी गए थे कि हे राम, यह क्या हो गया. इसी सदमे में उन्होंने बेखयाली में शपथ वाले दिन संविधान को माथे से लगा भी लिया था जोकि अल्पकालिक धर्म था. फिर 13 दिनों के मंथन के बाद वे दीर्घकालिक राजनीति वाले फार्मूले पर आ गए. इसी बीच गम कम करने की गरज से उन्होंने एक चक्कर विदेश का भी लगा लिया. जिस के बारे में एक दक्षिण भारतीय वामपंथी अभिनेता प्रकाश राज के नाम से किसी शरारती तत्त्व ने सटीक टिप्पणी यह वायरल कर दी कि 70 सालों में पहली बार कोई प्रधानमंत्री मात्र एक सैल्फी लेने के लिए विदेश गया.

इटली में आयोजित जी7 सम्मेलन में भारत की मौजूदगी औफिशियल नहीं थी लेकिन मोदीजी को शायद देश में पीएम होने जैसी फीलिंग पूरी तरह नहीं आ रही थी, इसलिए इटली जा कर उन्होंने अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त किया. वहां वे जार्जिया, सुनक, मैंक्रो जेलेंसकी और ट्रूडो वगैरह से मिले और उन्हें बताया कि दुनिया के सब से बड़े लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लेने के बाद इस सम्मेलन का हिस्सा बनना बहुत संतुष्टि की बात है. मेरा सौभाग्य है कि जनता ने मुझे तीसरी बार देश की सेवा करने का अवसर दिया है.

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