सरकार किस की और अधिकारी किस के, यह सवाल अपने आप में जवाब लिए हुए है कि जिस की सरकार, उस के ही अधिकारी. लेकिन दिल्ली सरकार के साथ ऐसा नहीं है. लोकतंत्र में सरकार के मुखिया जनहित का सारा सरकारी काम अधिकारियों के जरिए ही करते/करवाते हैं.
देशवासियों के लिए यह ताज्जुब की बात होगी कि दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री का अपने अधिकारियों पर कंट्रोल करने का अधिकार नहीं है. ऐसे में स्वाभाविक है कि अधिकारीगण अपने मुख्यमंत्री की सुनेंगे तो, लेकिन करेंगे नहीं. वे करेंगे वही जो उन को अपने बौस की तरफ से निर्देश मिलेंगे.
सवाल यह है कि ऐसा क्यों है? इस का जवाब यह है कि संविधान के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को मिले अधिकारों की व्याख्या स्पष्ट नहीं है. इस बाबत मामला कोर्ट में चल रहा है.
फिलहाल केंद्र में सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि दिल्ली सरकार में तैनात अधिकारी उस के नियंत्रण और निगरानी में हैं, इस शक्ति का इस्तेमाल राष्ट्रपति की ओर से दी गई शक्तियों के तहत उपराज्यपाल यानी एलजी करते हैं.
दिल्ली में तैनात ब्यूरोक्रेट्स के ट्रांसफर और कंट्रोल को ले कर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच कन्फ्यूजन है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंडपीठ ने पहले के फैसले में कहा था कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं, बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है, जो खुद में एक वर्ग है. कोर्ट का यह भी कहना था कि उपराज्यपाल को दिल्ली की मंत्रिपरिषद की सहायता और सुझाव के साथ कार्य करना होगा.
दरअसल, भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार नहीं चाहती कि आम आदमी पार्टी व उस के मुखिया व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जनप्रिय बने रहें. वह उन की लोकप्रियता को खत्म कर देना चाहती है. सो, केंद्र सरकार अपने मंत्रालयों के जरिए दिल्ली सरकार के जनहित के कामों में अडंगा लगाती रहती है.
यह खुला सच है कि नरेंद्र मोदी के देश की सत्ता हासिल करने के बाद दिल्ली विधानसभा में हुए चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने मोदी व उन के मंत्रिमंडल को असहनीय चोट दी थी. उक्त चुनाव में मोदी सहित उन का मंत्रिमंडल जुटा था लेकिन फिर भी मोदी की पार्टी यानी भाजपा मात्र 3 सीटों पर ही विजय पा सकी थी जबकि केजरीवाल की आप 67 सीटों पर विजयी हुई थी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी तक की दयनीय हार का बदला केजरीवाल से ले रहे हैं, जिसे दिल्लीवासियों को भुगतना पड़ रहा है.