आजादी के बाद देश में 1952 से चुनाव हो रहे हैं. सभी राजनीतिक दल अपनेअपने घोषणापत्रों के माध्यम से अपनी विचारधाराओं, नीतियों व कार्यक्रमों को मतदाताओं के सामने पेश करते चले आ रहे हैं. इस के लिए कोई खास आयोजन नहीं होता था. पार्टी की एक मीटिंग में चुनावी प्रस्ताव पेश किया जाता था, जिसे ले कर दल में चर्चा होती थी.

उदाहरण के लिए जब भाजपा ने राम मंदिर को अपने एजेंडे में शामिल किया तो पहली बार कोई घोषणापत्र नहीं बनाया था. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर नामक जगह है. साल 1989 में 9, 10 और 11 जून को भाजपा का अधिवेशन वहां हुआ था. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की अगुआई में हुई. उस में अटल बिहारी वाजपेयी से ले कर विजयाराजे सिंधिया और शांता कुमार समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता मौजूद थे.

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उस बैठक में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पास हुआ, जिसे पालमपुर प्रस्ताव के नाम से भी जानते हैं. बैठक के बाद 11 जून, 1989 को पालमपुर में एक जनसभा हुई जिस का मंच संचालन बीजेपी के पूर्व विधायक राधारमण शास्त्री कर रहे थे. वे हिमांचल प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री और पूर्व विधानसभा स्पीकर रहे हैं. भाजपा ही नहीं, कांग्रेस और दूसरे दल भी अपने घोषणापत्र बेहद सरल तरह से कम शब्दों में तैयार करते थे. ये किसी इवैंट की तरह से जनता के सामने पेश नहीं किए जाते थे.
1995 के बाद जब देश में गठबंधन की सरकारों का दौर शुरू हुआ, तब से घोषणापत्र बनने लगे थे. उस में भी गठबंधन में शामिल सभी दल अपनीअपनी नीतियों वाले घोषणापत्र बनाने लगे, साथ ही, घटक दलों का एक कौमन एजेंडा वाला प्रोग्राम भी बनने लगा जिस में विवादित मुददों को छोड़ना पड़ता था. जैसे 1999 में जब भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी राजग यानी एनडीए गठबंधन से प्रधानमंत्री बने तो राम मंदिर जैसे विवादित मुददे को दूर रखा था.

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