वर्ष 2014 के आम चुनाव में बहुमत से जीती भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई. अब वर्ष 2019 आ गया. पिछले चुनावी मैनिफैस्टो में भाजपा ने जो वादे किए थे, सरकार बनाने के बाद उन की अनदेखी की जाती रही. कुछ राज्यों, जिन में 3 भाजपाशासित प्रदेश भी शामिल हैं, की विधानसभाओं के लिए हुए हालिया चुनावों में भाजपा को मिली करारी हार से तो यही लगता है कि मतदाताओं का मूड 2014 जैसा नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार में बीते 5 वर्षों में जनता के हित में क्या हुआ और क्या नहीं, इस की पड़ताल करती ‘सरिता’ की मुहिम जारी है. पिछले अंक में आप ने देश में भुखमरी से हुई मौतें, देश में बढ़ते कुपोषण के आंकड़े, जर्जर स्वास्थ्य सेवाओं वाला बीमार भारत देखा. इस अंक में हम मोदी राज में बेहाल शिक्षा व्यवस्था, खस्ताहाल सार्वजनिक परिवहन, खटारा सड़कों की वजह से दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी और रेल हादसों से रूबरू होंगे.

जर्जर प्राथमिक शिक्षा

कुछ महीने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राथमिक शिक्षा से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक फैसला दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश के राजनेताओं, सरकारी अफसरों, कर्मचारियों और जजों को अपने बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाना होगा.

हाईकोर्ट ने ऐसा फैसला देश की जर्जर हो चुकी प्राथमिक शिक्षा को देखते हुए दिया था. उन स्कूलों की दुर्दशा को देखते हुए दिया था जहां देश के 70 फीसदी गरीब बच्चे पढ़ते हैं. वे वहां क्या पढ़ते हैं, कैसे पढ़ते हैं, पढ़ते हैं कि नहीं पढ़ते, ये बातें जब अदालत के संज्ञान में आईं, तब उस ने यह फैसला दिया कि अमीर और रसूखदार लोग अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने के बजाय देश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं.

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