मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी दिग्गज कमलनाथ के भी भाजपा में जाने न जाने के ड्रामे से अब परदा लगभग गिर गया है. कहा जा रहा है कि कमलनाथ खुद भाजपा में नहीं जाएंगे बल्कि अपने बेटे नकुलनाथ और बहू प्रियनाथ को सनातन धर्म की दीक्षा दिलाने मोदी-शाह की शरण में भेज देंगे. हालांकि कमलनाथ अब इस से भी इनकार कर रहे हैं लेकिन आयारामगयाराम जैसे ऐसे नाटक अब देश की राजनीति में रोज की बात हो चले हैं जिन में दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर कांग्रेसी और दूसरे विपक्षी नेता भाजपा में ज्यादा जा रहे हैं, भाजपा छोड़ कर कोई कांग्रेस या दूसरी पार्टी में नहीं जा रहा.

एक और ताजा मामला चंडीगढ़ का है जहां आम आदमी पार्टी के 3 पार्षद भाजपा में चले गए. गौरतलब है कि चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में खुलेआम जम कर धांधली हुई थी. भाजपा से मेयर बने मनोज सोनकर ने भी इस्तीफा दे दिया है. धांधली को ले कर आप और कांग्रेस दोनों सुप्रीम कोर्ट गए थे जिस की सुनवाई अभी चल रही है.
इस के पहले हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव अधिकारी अनिल मसीह को कड़ी फटकार लगाते उन पर मुकदमा चलाने की बात कही थी. हुआ इतना भर था कि अनिल मसीह ने आप और कांग्रेसी पार्षदों के बैलट पेपर पर स्याही चलाते उन्हें रद्द घोषित कर दिया था जिस से मनोज सोनकर मेयर बन गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने इसे लोकतंत्र की हत्या भी करार दिया था.

लोकतंत्र की बदहाली का आलम तो इन दिनों यह है कि इस के होने पर ही शक और न होने पर यकीन होने लगा है. जो नेता किसी एक पार्टी की नीतियोंरीतियोंसिद्धांतों सहित चुनावचिन्ह पर चुने जाते हैं वे सैकंडों में खीसें निपोरते पूरी बेशर्मी से किसी दूसरी पार्टी में चले जाते हैं. अब यह दूसरी पार्टी 95 फीसदी मामलों में भाजपा ही क्यों होती है, यह जरूर गौरतलब बात है. यहां बहुत सीधी सी बात यह भी है कि उसूल अपनी मूल पार्टी छोड़ने वाला ही नहीं त्यागता बल्कि उसे लेने वाली भाजपा भी त्यागती है तभी तो वह नंबर वन पार्टी है.

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