USA : अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने कई विवादित फैसले लिए, जो ट्रांसजैंडर्स के अधिकारों के हक में नहीं था. अब अपनी दूसरी पारी में वे ट्रांसजैंडर्स को समाज की मुख्यधारा से अलगथलग करने को आतुर दिख रहे हैं.
सत्ता जब किसी दक्षिणपंथीकट्टरपंथी के हाथ में आती है तो उस का पहला शिकार औरत बनती है. धर्म का औजार हाथ में ले कर दक्षिणपंथी आदमीऔरत से जीवन के मूल अधिकार छीन लेने को आतुर हो उठता है. उसे धर्म की जंजीर में जकड़ कर घर की चारदीवारी में कैद होने के लिए बाध्य करता है. वह औरत को अपने हाथ की कठपुतली बना कर रखना चाहता है. ऐसी कठपुतली जिसे वह अपने इशारे पर नचा सके और उस का भोग कर सके.
दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वाले रूढ़िवादी ट्रंप
अमेरिका की बागडोर अब दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वाले रूढ़िवादी डोनाल्ड ट्रंप के हाथ में है. ट्रंप ऐसी संकुचित मानसिकता के व्यक्ति हैं जिन्होंने औरत को गुलाम और भोग की वस्तु से ज्यादा नहीं समझा. ट्रंप महिलाओं के कुछ अधिकारों के पक्ष में कभी नहीं रहे, जिनमें अबौर्शन मुख्य रूप से शामिल है. ट्रंप और उन के समर्थकों का मानना है कि अबौर्शन पेट में पल रहे बच्चे की हत्या करना है. हालांकि महिलाएं इसे इस रूप में नहीं देखती हैं.
अबौर्शन को महिलाएं एक मूल अधिकार के रूप में देखती हैं और मानती हैं कि यह उन के स्वास्थ्य से जुड़ा एक अधिकार है और अपने शरीर के बारे में फैसला लेने का हक सिर्फ उन्हें ही होना चाहिए. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप की पार्टी के कई सीनेटर्स ने देशभर में अबौर्शन पर बैन लगाने की इच्छा जाहिर की थी और कुछ राज्यों में तो यह बैन है भी.
महिलाओं के खिलाफ हेट स्पीच बढ़
ट्रंप की जीत के बाद अमेरिका में दक्षिणपंथी ताकतें एक बार फिर सिर उठाने लगी हैं. जिन का बुरा प्रभाव औरतों, ब्लैक्स और ट्रांसजैंडर्स पर पड़ रहा है. सोशल मीडिया पर बीमार मानसिकता के लोग औरत के शरीर को अपनी प्रौपर्टी कह कर उन पर हक जताने की कोशिश में जुटे हुए हैं तो वहीं ट्रांसजैंडर्स के साथ गालीगलौच और मारपीट की घटनाएं अचानक बढ़ गई हैं.
जाहिर है सत्ता शीर्ष से जब ऐसे इशारे होंगे तो नीचे लोग उन को अपने व्यवहार में उतारेंगे. सोशल मीडिया पर निक फुएंटेस नाम का एक यूजर औरतों के लिए लिखता है- “यौर बौडी, माय चौइस. फौरएवर.” यानी कि “तुम्हारा शरीर, मेरी मर्जी, हमेशा.”
ट्रंप के सत्ता में आने के बाद अमेरिका में महिलाओं के खिलाफ हेट स्पीच बढ़ रही हैं. लोगों ने महिलाओं से यह तक कहना शुरू कर दिया है कि उन की जगह रसोई में है और उन्हें जरूरत से ज्यादा उड़ना नहीं चाहिए. ऐसे में ट्रंप और उन के समर्थकों के विरोध में जगहजगह महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं.
दरअसल ट्रंप रूढ़िवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं. महिला आजादी और महिला अधिकारों के खिलाफ उन्होंने कई ऐसे फैसले पिछले कार्यकाल में दिए जिसने अमेरिकी महिलाओं को सड़क पर उतर कर आंदोलन करने के लिए मजबूर किया. महिलाओं के प्रजनन अधिकारों, विशेष रूप से गर्भपात का फैसला ट्रंप के शासनकाल में मुमकिन नहीं है.
अब ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने की खबर के बाद शारीरिक स्वायत्तता को ले कर अनेक अमेरिकी महिलाओं ने पुरुषों से दूरी बना ली है. डेटिंग, सैक्स, शादी और बच्चों के पालनपोषण से पीछे हट कर, ये महिलाएं एक संदेश भेज रही हैं कि वे उस प्रणाली में शामिल होने से इनकार करती हैं जिस के तहत उन के साथ दुर्व्यवहार होता है और उन्हें खतरे में डाला जाता है.
ट्रांसजैंडर्स पर लगाम
अपनी दूसरी पारी में ट्रंप ट्रांसजैंडर्स के हक भी छीनने को आतुर हो रहे हैं. वाइटहाउस आने के साथ ही ट्रंप जो नए काम करने वाले हैं, उन में ट्रांसजैंडर्स पर लगाम कसना शामिल है. ट्रंप ट्रांसजैंडर्स को समाज की मुख्यधारा से अलग करना चाहते हैं. उन के मुताबिक दुनिया में दो ही लिंग हैं जिन्हें स्वीकार किया जा सकता है – स्त्रीलिंग और पुलिंग. इन दो जैंडर के अलावा वे किसी को मुख्यधारा में नहीं देखना चाहते हैं.
अमेरिका में ट्रांसजैंडर्स को पढ़ने, नौकरी करने, शादी करने, बच्चा गोद लेने आदि का अधिकार था. 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ट्रांसजैंडर्स की शादी पूरे देश में वैध हो गई थी. ट्रांसकपल के लिए बच्चों को गोद लेने की भी मंजूरी मिल गई थी.
गौरतलब है कि गोद देने वाली एजेंसियां इस के लिए होम स्टडी करती हैं कि बच्चों के लिए कैसा माहौल है, इस के बाद वे कानूनी प्रोसेस करती हैं. कई बार आवेदन रिजेक्ट भी हो जाता है लेकिन ये दर उतनी ही है, जितनी आम जोड़ों के अडौप्शन के दौरान होता है.
ट्रांसजैंडर लोगों से नफरत या भेदभाव
अब ट्रंप इन सब अधिकारों को उन से छीन लेने के मूड में हैं. अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने कई विवादित फैसले लिए, जो ट्रांसजैंडर्स के अधिकारों के हक में नहीं था. मसलन, उन्होंने बहुत से ऐसे जजों की नियुक्ति की, जो एंटीLGBTQ+ माने जाते थे. उन का पुराना रिकौर्ड ट्रांसजैंडर लोगों से नफरत या भेदभाव का रहा.
ट्रंप ने दोसौ से ज्यादा ऐसे जजों को ताकत दी, जो अपने कंजर्वेटिव तौरतरीकों के लिए जाने जाते थे. उन में से कईयों ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला दे कर ट्रांस अधिकारों को कम करने की कोशिश भी की.
द कंवर्सेशन की एक रिपोर्ट में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के हवाले से कहा गया है कि ट्रंप के पिछले कार्यकाल में देशभर में 532 एंटीLGBTQ बिल बने.
– इन में से 208 बिल स्टूडेंट्स और शिक्षकों के अधिकारों को सीमित करते हैं.
– लगभग 70 बिल धार्मिक छूट से जुड़े हुए हैं और ट्रांसजैंडरों पर कई रोक लगाते हैं.
– 112 बिल हेल्थ से संबंधित हैं. जैसे ट्रांसजैंडरों का अपना पसंदीदा जैंडर पाने के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट लेना.
आर्मी में ट्रांसजैंडर
बहुत से देशों से अलग अमेरिका में ट्रांसजैंडर सेना में भी जा सकते हैं. ओबामा सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी चरण में इसे मंजूरी दे दी थी, जिस के बाद आर्मी में ट्रांसजैंडर सैनिकों की मौजूदगी बढ़ने लगी. साल 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने आते ही इसपर रोक लगा दी. उन का कहना था कि इस से मेडिकल खर्च बहुत ज्यादा बढ़ रहा है क्योंकि हौर्मोनल बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहे सैनिकों की मेडिकल जरूरतें आम सैनिकों से ज्यादा रहती हैं.
इस के अलावा सेना में कथित तौर पर बैलेंस भी बिगड़ रहा था. साल 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ट्रंप की पाबंदियों को पलटते हुए ट्रांसजैंडरों के लिए सैन्य सर्विस एक बार फिर शुरू कर दी. मगर अब ट्रंप के वाइटहाउस आने से पहले ही ट्रांसजैंडरों के खिलाफ हवा चल निकली है.
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के मुताबिक, रिपब्लिकन्स के कथित विवादित प्रोजैक्ट 2025 में ट्रांसजैंडरों के हक कमजोर करने पर कई नीतियां हैं. उन्हें डर है कि राष्ट्रपति एग्जीक्यूटिव और्डर जारी करते हुए सरकारी एजेंसियों को ऐसे निर्देश दे सकते हैं. जैसे सेना या स्कूलकालेजों में उन की जगह खत्म कर दी जाए. या इसपर बातचीत के फोरम पर अटैक हो.
16 लाख से ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर
वैसे एग्जीक्यूटिव और्डर देते ही ऐसा नहीं है कि नीतियों में बदलाव हो जाता है. इस के बाद एक टाइम पीरियड होता है, जिसे पब्लिक कमेंट पीरियड कहते हैं. एक से दो महीने के इस वक्त में संस्थाएं या लोग इसे चुनौती भी दे सकते हैं. या फिर इस दौरान आमलोगों और संगठनों की राय ली जाती है ताकि नीतियों में अमेंडमेंड हो सकें.
अगर और्डर किसी खास समूह के अधिकारों को कमजोर करता दिखे तो उसे कोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है. तब वो पौलिसी लागू नहीं हो सकती, जब तक कि उसे कोर्ट से हरी झंडी न मिल जाए. इस में महीनों या सालों भी लग सकता है. इतने समय में सरकारें बदल जाती हैं.
कुल मिला कर फिलहाल ट्रांसजैंडरों में डर तो बना हुआ है लेकिन उन के खिलाफ नीतियां लाना उतना भी आसान नहीं. यूएस में तीस साल के भीतर के लोगों में पांच फीसदी से कुछ ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर या फिर नौनबायनरी मानते हैं, यानी जो खुद को किसी जैंडर में नहीं पाते. ये डेटा प्यू रिसर्च सेंटर का है और दो साल पुराना है. इस बीच संख्या काफी बढ़ी, लेकिन इसपर किसी का कोई निश्चित डेटा नहीं है.
यूसीएलए लौ स्कूल में विलियम्स इंस्टीट्यूट ने भी इसपर एक रिसर्च की, जिस में पाया गया कि अमेरिका में 13 साल की उम्र के ज्यादा के 16 लाख से ज्यादा लोग खुद को ट्रांसजैंडर मानते हैं. इस के अलावा वे लोग भी हैं, जो जन्म के समय खुद को मिले जैंडर से खुश नहीं, लेकिन खुल कर जता नहीं पाते.