अब जब 30 अक्तूबर में कुछ ही दिन ही शेष बचे हैं, तो पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) इस्लामाबाद बंद की तैयारियों में जोरशोर से जुट गई है. पार्टी पनामा पेपर मामले में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से इस्तीफा देने की मांग कर रही है. पार्टी की कोशिश इस बार उस विपक्ष को भी अपने साथ जोड़ने की है, जो पहले कभी साथ नहीं आया, लेकिन साफ है कि साथ न मिलने की स्थिति में भी पीटीआई अकेले दम पर ही इस अभियान को सफल बनाएगी.
दरअसल, पीटीआई सत्ता परिवर्तन चाहती है, तो उसके लिए अभी की अपेक्षा बड़े फलक पर जाकर अन्य दलों का समर्थन हासिल करना जरूरी है. पार्टी इसके प्रयास भी कर रही है, ठीक उसी तरह, जैसे उसने डॉक्टर ताहिर कादरी के नेतृत्व वाली पकिस्तान अवामी तहरीक का साथ लिया था. हालांकि बाकी मोर्चों पर उसे दिक्कत आ सकती है.
अंतर्विरोधों से घिरी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेतृत्व के बारे में भ्रम की स्थिति भी एक मुद्दा है, क्योंकि वहां यही साफ नहीं है कि नेतृत्व आसिफ अली जरदारी के हाथ में है या बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी के हाथ. अनबन तब और उभर आती है, जब सीनियर जरदारी अक्सर विदेश में दिखाई पड़ते हैं और पीपीपी का बैनर लेकर खालीपन को भरना छोटे जरदारी की मजबूरी दिखती है. पीटीआई की नजर उन चर्चाओं पर भी है कि पीपीपी मौका लगते ही सत्तारूढ़ पार्टी से गठजोड़ कर सकती है.
ऐसे में, पीटीआई इस फिराक में है कि किसी तरह सीनियर जरदारी को अलग किया जा सके, तो पीपीपी और पीटीआई का गठजोड़ कोई नया गुल खिला सकता है. फिलहाल नजरें 30 तारीख की सफलता पर टिकी हैं. तय है कि सरकार किसी भी हालत में पीटीआई को अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं होने देना चाहेगी. लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि पीटीआई ने लाहौर रैली में जबर्दस्त ताकत दिखाई थी और इस्लामाबाद में भी वह लाहौर जैसी भारी भीड़ जुटाकर ताकत दिखाने में कामयाब हो सकती है. अगर कहीं उसे मुख्यधारा की किसी पार्टी का समर्थन मिल गया, फिर तो यह बहुत बड़ी चुनौती बनकर उभरेगी. इंतजार करें 30 अक्तूबर का.