अफगानिस्तान के इलाकों में पाकिस्तान जिस तरह की बर्बर करतूतों को अंजाम दे रहा है, उस पर पूरी दुनिया की नजर है. पाकिस्तानी फौज के जुल्म को दुनिया अब बहुत लंबे वक्त तक नजरअंदाज नहीं करेगी. पख्तूनों और बलोचों के लगातार कत्लेआम की खबरें रह-रहकर सुर्खियां बटोरती रही हैं. दुनिया की बड़ी शक्तियां भी अब यह महसूस करने लगी हैं कि इस्लामाबाद की नीतियां इन इलाकों व अफगानिस्तान में अस्थिरता की वजह हैं.
चूंकि पाकिस्तान दक्षिण एशिया और दुनिया के लिए अब एक बड़ा सिरदर्द बन गया है, इसलिए वह एक नया दांव चलकर विश्व बिरादरी का ध्यान अपनी जमीन के आतंकी शिविरों से भटकाना चाहता है. उसके इस नए खेल का दृश्य नवाज शरीफ द्वारा कश्मीर के लिए खास दूत मुशाहिद हुसैन की नियुक्ति करना रहा, जिन्होंने वाशिंगटन में यह कहा कि अफगानिस्तान में शांति कश्मीर मसले से जुड़ा हुआ है. मुशाहिद का यह बयान साबित करता है कि दुर्दांत दहशतगर्द जमातों की हिमायत करके इस इलाके की सदारत हासिल करने की पाकिस्तानी रणनीति नाकाम हो गई है. यह बयान उसके दोमुंहेपन की भी तस्दीक करता है.
अफगानिस्तान का अमन कश्मीर बाबस्ता नहीं है, क्योंकि काबुल का उससे लेना-देना नहीं है. हालांकि, इन दोनों में समानताएं जरूर हैं. पाकिस्तान भाड़े के टट्टुओं का इस्तेमाल अफगानिस्तान व कश्मीर, दोनों जगहों पर अवाम व हिफाजती दस्तों पर हमले के लिए करता रहा है. इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता उसे जरा भी नहीं सुहाती, यही कारण है कि उसकी तमाम नीतियां आतंकवाद के इस्तेमाल को ध्यान में रखकर बुनी जाती हैं.
इस्लामाबाद न सिर्फ बलूचिस्तान में आजादी के संघर्ष का अपनी फौज के जरिये हिंसक दमन करता है, बल्कि वह दहशतगर्दों व भाड़े के टट्टुओं की मदद से पड़ोसी मुल्कों में भी अशांति फैलाने में जुटा है. जब से बलूचिस्तान की आजादी की जंग को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन मिलना शुरू हुआ है और पख्तून अपने पख्तूनिस्तान की लड़ाई फिर से छेड़ने का इरादा जताने लगे हैं, पाकिस्तान दबाव में आ गया है. पर दुनिया का ध्यान बंटाने की कोशिश करके अब वह अपनी बर्बरता छिपा नहीं पाएगा.
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