Indian Politics: बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी ने 230 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. रामगढ़ और चैनपुर सीटों पर उसे जीत भी मिली थी. 2020 के चुनाव में बीएसपी ने गठबंधन किया था लेकिन 2015 में अकेले ही 228 सीटों पर चुनाव लड़ा था, कामयाबी बिलकुल नहीं मिल पाई थी.

2025 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने कहा है कि बसपा बिहार चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी और अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी. चुनाव की जिम्मेदारी बिहार प्रदेश यूनिट के साथसाथ नैशनल कोऔर्डिनेटर रामजी गौतम को सौंपी गई है, जिस का सुपरविजन बीएसपी के राष्ट्रीय संयोजक बने मायावती के भतीजे आकाश आनंद के जिम्मे होगा.

सवाल यह है कि इस से बसपा या मायावती को हासिल क्या होगा? क्या चुनाव चुनावी फायदे के लिए लड़े जाते हैं या दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए? राजनीतिक फायदा तो दूसरों को नुकसान पहुंचा कर भी उठाए जाते हैं. मायावती का मुख्य राजनीतिक आधार उत्तर प्रदेश में ही रहा है. बसपा के संस्थापक कांशीराम ने उत्तर प्रदेश के हालात देख कर ही यहां पहल की थी. उन की दूरदृष्टि सच भी साबित हुई.

बसपा 1993 से ले कर 2012 तक प्रदेश में अपना जनाधार बनाने में सफल हुई थी. उस दौर में 4 बार बसपा नेता मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. बसपा और समाजवादी पार्टी के नेताओं कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने दलित और पिछड़ा गठजोड़ बनाने का काम किया था. मायावती के अपने फैसलों ने इस गठजोड़ को सफल नहीं होने दिया. जिस के चलते यह साफ हो गया कि कांशीराम और मुलायम की सोच और मेहनत मायावती ने डुबो दी.

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