प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन प्रशासन द्वारा रोड शो रखने की अनुमति न मिलने पर अहमदाबाद में साबरमती नदी से अंबाजी के लिए घबराहट में सीप्लेन से उड़ान भरी थी, उन्हें गुजरात के भावी नतीजों का एहसास हो गया था कि इस रण में उन के लिए विजय आसान नहीं है. हालांकि, भाजपा गुजरात को बचाने में कामयाब रही पर 150 सीटें जीतने का दावा कर रही पार्टी 100 से नीचे पर ही सिमट गई.

दूसरे राज्य हिमाचल प्रदेश में वह कांग्रेस से सत्ता छीनने में सफल तो रही पर प्रदेश में पार्टी के सेनापति मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेमसिंह धूमल और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती दोनों ही परास्त हो गए. इसीलिए चुनाव नतीजों के बाद भाजपा मुख्यालय में प्रैस कौन्फ्रैंस में बैठे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के चेहरे पर अधिक खुशी नहीं थी. वे गुजरात नतीजों के बजाय हिमाचल पर अधिक फोकस कर रहे थे.

गुजरात में कांग्रेस भले ही जीत नहीं पाई पर उस ने 22 वर्षों पुराना भाजपा का आसन हिला दिया, भाजपाई दिग्गजों के पसीने छुड़ा दिए. हालांकि, अपने गढ़ को बचाने में भाजपा कामयाब रही है.

इन चुनावों पर सब की नजरें थीं. विकास के मुद्दे से शुरू हुआ चुनाव प्रचार अभियान चुनावों की तारीख आतेआते राजनीतिक नीचता की तमाम हदें लांघ गया. दोनों राज्यों में धर्म, जाति, सैक्स सीडी, मंदिर, पाकिस्तान, कीचड़युक्त जबान का घालमेल और गंदगी का माहौल दिखाईर् देने लगा था जिस में नैतिकता, जवाबदेही और तमाम लोकतांत्रिक मर्यादाओं की धज्जियां उड़ती दिखीं.

Gujarat and Himachal Pradesh assembly election results

कड़ी चुनावी टक्कर

पिछले 3 सालों में हुए विधानसभाओं के चुनावों में गुजरात चुनाव सब से रोचक, रोमांचक रहा. भाजपा इस बार कड़े संघर्ष में फंस गई थी. उसे पिछले 2012 की 115 सीटों के मुकाबले 99 सीटें ही मिल पाईं. चुनाव में सब से ज्यादा चर्चा हार्दिक पटेल फैक्टर की थी. हार्दिक पटेल की अगुआई में हुए पाटीदार आंदोलन के चलते माना जा रहा था कि भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है. जिस तरह हार्दिक ने भाजपा का विरोध और कांग्रेस के समर्थन का ऐलान किया, उसे देखते हुए भाजपा को बड़े नुकसान की आशंका जताई जा रही थी पर नतीजों से साफ है कि सौराष्ट्र, कच्छ को छोड़ कर प्रदेश के बाकी सभी क्षेत्रों में पटेलों ने भाजपा का ही साथ दिया.

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