सांसद और विधायक जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं ने लोकसभा और विधानसभा में कुर्सी मेज और पंखे कई बार तोड़े शोर मचाया. खुलेआम पहली बार गंदी गंदी गालियों के साथ दोनो को पहली बार लड़ते देखा गया. झगड़े की फौरी वजह भले ही शिलान्यास के पत्थर पर नाम न होना रहा हो पर इसकी मुख्य वजह अपसी मनमुटाव और वर्चस्व स्थापित करना ही था. पार्टी में सबकी जिम्मेदारी बराबर होने की बात बेमानी हो चुकी है. भाजपा के अंदर भी जातीय संघर्ष चालू है. सहारनपुर दंगा ने दलित सवर्ण गठजोड़ का पोल खोल चुका है तो संत कबीरनगर में दो ऊंची जातियों का टकराव पार्टी की पोल खोल दी.
सामाजिक समरसता के लिये काम करने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में सांसद और विधायक के बीच जूते-थप्पड़ चले. संतकबीर नगर के सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल विधानसभा से विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच जिला योजना समिति में चले जूते चप्पलों ने पार्टी के नेताओं के बीच चल रही सामाजिक समरसता की पोल खोल दी. देश की सबसे अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के नेताओं के बीच इस शर्मनाक हरकत से साफ हो गया कि भाजपा में जमीनी स्तर पर हालात कैसे हैं? जूते-थप्पड़ कांड के पीछे कोई बड़ी वजह नहीं थी. एक सड़क के शिलान्यास पत्थर में सांसद का नाम नहीं लिखा था. इस पर सांसद शरद त्रिपाठी ने एतराज किया. विधायक राकेश सिंह बघेल के साथ शुरू हुई कहासुनी जूते-थप्पड़ कांड में बदल गई.
रामायण और महाभारत की कहानियां को अपने व्यवहार में ढालने वाली भाजपा के नेताओं में इस तरह की घटनायें कोई बड़ी बात नहीं है. महाभारत में धर्मसभा के बीच द्रौपद्री को जांघ पर बैठने की बात करने वाली घटना मौजूद है. उस धर्म सभा में भी बड़े बड़े लोग मौन धरणकर चीरहरण को देखते रहे थे. संत कबीरनगर जिले की कलेक्ट्रेट में भी उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्रा आशुतोष टंडन मौजूद थे. जो भाजपा के बड़े नेता और बिहार में राज्यपाल लालजी टंडन के बेटे हैं. जूते-थप्पड़ चलाने वाले विधायक और सांसद के बीच घनघटा के विधायक श्रीराम चौहान और खलीलाबाद के विधायक दिग्विजय चौबे भी मौजूद थे. इसके अलावा बैठक में जिले के तमाम अफसर भी मौजूद थे.
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