इलाहाबाद में कुंभ के महत्व को देखें तो हर 6 साल के बाद अर्द्वकुंभ और 12 साल के बाद कुंभ का आयोजन यहां होता रहा है. पिछला कुंभ 2013 में हुआ था. इस हिसाब से 2019 में अर्द्व कुंभ और 2025 में कुंभ का आयोजन होना है. 2019 के अर्द्व कुंभ के समय ही लोकसभा के आम चुनाव होने हैं. भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कुंभ को चुनाव में धर्मिक मुददा बनाने के लिये अर्द्व कुंभ को ही कुंभ का नाम दे दिया है.

यही नहीं सरकार इसके प्रचार प्रसार में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्यपाल राम नाइक के साथ यहां की तैयारियों को देखा. इस मौके पर ‘इलाहाबाद’ के नाम को बदल कर ‘प्रयागराज’ करने की घोषणा भी कर दी है. जनवरी 2019 में कुंभ स्नान के पहले प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी के यहां आने की तैयारी है.

दिसम्बर माह में यहां प्रधनमंत्री का दौरा प्रस्तावित है. वह कुंभ से जुड़ी तमाम योजनाओं का शिलान्यास कर कुंभ के आयोजन को भव्य रूप प्रदान करेंगे.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते हैं ‘राजा हर्षवर्ध्न ने अपने दान से ‘प्रयाग कुंभ’ का नामकरण किया था. आज सरकार केवल ‘प्रयागराज’ का नाम बदल कर अपना काम दिखा रही है. इन्होंने तो ‘अर्ध कुंभ’ का नाम बदल कर ‘कुंभ’ कर दिया. यह परंपरा और आस्था के साथ् खिलवाड़ है.’ अखिलेश यादव की बात में दम है. भाजपा आस्था और परंपरा की बात बात पर दुहाई देती है. जिस तरह से लोकसभा चुनाव में लाभ के लिये ‘अर्ध् कुंभ’ को ‘कुंभ’ का दर्जा दे दिया गया उससे संगम नगरी के इस आयोजन को ठेस लगी है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या चुनावी लाभ के लिये इस तरह से धर्म का सहारा लेना उचित है?

निशाने पर इलाहाबाद

भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में काशी यानि वाराणसी को अपने चुनावी प्रचार के केन्द्र बिन्दू में रखा था. उस समय भाजपा ने वाराणसी को क्योटो जैसा शानदार बनाने और गंगा की सफाई को चुनावी मुददा बना दिया था. उस समय प्रधनमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने खुद को गंगा मां का बेटा बताया था. सरकार बनने के बाद गंगा से किया वादा केन्द्र की सरकार पूरा नहीं कर पाई. गंगा की सफाई और उसके स्वरूप को बचाने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ. इसका विरोध करते हरिद्वार में स्वामी सदानंद की जान गई. इस घटना ने मोदी सरकार की निष्क्रियता और गंगा नदी के प्रति उनकी नियति की पोल खोल दी. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा वाराणसी की जगह पर इलाहाबाद को मुद्दा बना रही है.

इलाहाबाद को चुनावी मुद्दा बनाने के बाद सबसे पहले ‘अर्ध कुंभ’ को ‘कुंभ’ का दर्जा दे दिया गया. इसके बाद ‘इलाहाबाद’ का नाम बदल कर ‘प्रयाग’ करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया. अब कुंभ के प्रचार के बहाने भाजपा अपने धार्मिक चेहरे का प्रचार करेगी और लोकसभा चुनाव को धार्मिक रंग में रंगने का काम शुरू होगा. कुंभ की शुरूआत जनवरी 2019 में होगी. कुंभ का असर करीब 2 माह तक शिवरात्री और होली तक रहता है. अप्रैल-मई में आम चुनाव होने हैं ऐसे में तब तक इसका असर बना रहेगा. धर्म के इस आयोजन में प्रचार की भूमिका में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रा योगी आदित्यनाथ की अहम भूमिका होगी. धर्म के इसी पक्ष का लाभ लेने के लिये भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया है.

यह भी तय है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को आपेक्षित सफलता नहीं मिली तो योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया भी जा सकता है.

कांग्रेस की पहचान मिटाने का प्रयास

इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयाग करने के पीछे धार्मिक वजह के साथ ही साथ एक राजनीतिक वजह भी है. इलाहाबाद का नाम आजादी की लड़ाई के साथ ही साथ कांग्रेस से भी जुड़ा रहा है. कांग्रेस के नेता और देश के पहले प्रधनमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी का यह पैत्रक आवास इलाहाबाद में है.

इलाहाबाद का नाम बदलने से कांग्रेस के साथ उसका लगाव खत्म हो जायेगा. इलाहाबाद के ही स्वराज भवन में कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था. यही से लगे स्वराज भवन में इंदिरा गांधी की शादी हुई थी. इलाहाबाद से कांग्रेस का लगाव पुराना है. जवाहरलाल की पत्नी कमला नेहरू के नाम पर यहां पर कमला नेहरू कैंसर अस्पताल है. कमला नेहरू की मौत होने पर यह अस्पताल उनके नाम पर बनाया गया है. इसका संचालन ट्रस्ट बनाकर किया जा रहा है.

आजादी की लड़ाई के समय आनंद भवन और स्वराज भवन में महात्मा गांधी की बाकी लोगों के साथ मीटिंग होती थी. आजादी की लड़ाई में इन दोनों जगहों का अपना बड़ा योगदान रहा है. यहां से ही आजादी की गतिविधियां चलती थीं. आज भी यहां पर लाइट एंड सांउड शो के जरीये आजादी की लड़ाई की घटनाओं को याद किया जाता है. देश की आजादी की लड़ाई में इलाहाबाद का नाम सबसे अहम स्थान पर है. अब इसको बदल कर प्रयाग करने से आजादी की लड़ाई की इस पहचान को खत्म करने का प्रयास हो रहा है. अब इस शहर की धार्मिक पहचान बनाने का काम हो रहा है.

इलाहाबाद शहर की ऐतिहासिक पहचान खत्म होने से कांग्रेस के साथ इसके रिश्ते को धुंधला करने का काम हो रहा है. भाजपा के लिये धर्मिक मुद्दे पर चुनाव लड़ना सरल होता है. इसके लिये वह हर काम में धर्म को आगे करना चाहती है. इससे उसे जातीय वोट बैंक को साधना सरल होगा. भाजपा के लिये सबसे कठिन काम दलित वोट बैंक को साधना है. इसके साथ ही साथ अति पिछड़ी जातियों का भी भाजपा से मोहभंग हो रहा है. भाजपा चाहती है कि कुंभ के बहाने वह स्नान करने आने वालों को खुश कर सकती है. कुंभ ऐसा स्नान होता है जिसमें हर वर्ग के लोग वहां आते है. ऐसे में अगर कुंभ का आयोजन और प्रचार सफल हो गया तो भाजपा सरकार को अपनी छवि निखारने में मदद मिल सकेगी. यही वजह है कि सरकार कुंभ के आयोजन को भव्य बनाना चाहती है. इस क्रम में ही उसने ‘अर्ध कुंभ’ को ‘कुंभ’ बना दिया है.

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