खासतौर से मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ के बारे में दावा किया जा रहा है कि भाजपा के पक्ष में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर मतदान किया. तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं के वोट भाजपा को मिले. हालांकि इस अनुमान को वास्तविक कहने न कहने की कोई प्रमाणिक वजह नहीं है. विभिन्न एजेसियां ऐसे आंकड़े जारी किया करती हैं लेकिन बात हैरानी की इस लिहाज से है कि साल 1980 तक भाजपा महिलाओं की तरफ कोई खास ध्यान नही देती थी.

इस की इकलौती वजह यह थी कि हिंदू राष्ट्र के उस के एजेंडे में महिलाओं की कोई भूमिका ही नहीं समझी जाती थी. आजादी के बाद से ही तमाम हिंदूवादी दल मसलन रामराज्य परिषद हिंदू महासभा और जनसंघ धर्म आधारित राजनीति करते रहे थे, वही आज की भाजपा दूसरे तरीके से ही सही कर रही है. लेकिन फर्क है ,जो अस्सी के दशक के बाद से आना शुरू हुआ था. भाजपा के पहले की हिंदूवादी राजनीतिक पार्टियां केवल पुरुषों तक सिमटी थीं. भाजपा ने इस कमी को समझा और 1980 में महिला प्रकोष्ठ का गठन किया.

यह इंदिरा गांधी का दौर था जिन के महिला होने के नाते कांग्रेस की स्वाभाविक दावेदारी महिला वोटों पर बनती थी. इंदिरा गांधी न केवल सवर्ण बल्कि पिछड़ी, दलित अल्पसंख्यक और आदिवासी महिलाओं में भी भारी लोकप्रिय थीं. उन की सभाओं में महिलाओं का उमड़ता हुजूम एक अलग आकर्षण पैदा करता था, जिस का तोड़ निकालने के लिए भाजपा ने कई प्रयोग किए लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया. तब भाजपा के पास इकलौता बड़ा चेहरा ग्वालियर घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का हुआ करता था लेकिन लोकप्रियता और स्वीकार्यता के मामले में वह इंदिरा गांधी से बहुत पीछें रहीं. दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में तो कोई उन्हें जानता तक नही था.

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