देश की इमेज खराब होती है तब बड़ी परेशानी आम लोगों को भी होती है क्योंकि हकीकत होती कुछ और है और दिखाई कुछ और जाती है. इस से आम लोगों का आत्मविश्वास कम होता है जिस से उन की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है. हर कोई चाहता है कि उस के देश का सिर दुनिया में ऊंचा हो, लेकिन ?ाठ, नफरत और हिंसा के चलते देश की छवि की भद पिट रही है.

अपने यूरोप टूर के दौरान 6 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में वहां रह रहे भारतीयों से रूबरू होते अपील की कि वे अपने कम से कम 5 गैरभारतीय दोस्तों को भारत आने को प्रेरित करें.

इस के एवज में वे राष्ट्रदूत कहलाएंगे. लगे हाथ उन्होंने इस मुहिम का नामकरण भी ‘चलो इंडिया’ कर दिया.

इस के क्या माने हुए और वे नव राष्ट्रदूतों के जरिए भारत लाने वाले विदेशियों को कौन सा इंडिया दिखलाना चाहते हैं, इस से पहले यह दिलचस्प बात जान लेना जरूरी है कि अब उन के विदेशी दौरों में आम लोगों की दिलचस्पी बेहद कम हो रही है वरना एक वक्त था जब नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा पर होते थे तब लोग न्यूज चैनल्स के सामने अगरबत्ती जला कर बैठे मुग्धभाव से उन्हें निहारा करते थे.

हालांकि इतना सन्नाटा नहीं पसरता था कि रामायण या महाभारत सीरियलों का दौर याद आ जाए लेकिन ‘मोदीमोदी...’ के नारे ड्राइंगरूम से ले कर सोशल मीडिया पर गूंजते जरूर थे. फिर भले ही वे प्रायोजित हों या भक्तिभाव से निकले हों. कई दिनों तक गागा कर बताया जाता था कि देखो, मोदीजी ने अमेरिका और इंगलैंड तक में ?ांडे गाड़ दिए और भारत अब विश्वगुरु बनने ही वाला है.

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