लोकतांत्रिक तानाशाही में तमाम दक्षिणपंथी शासक भगवान हो जाने की आदिम इच्छा से ग्रस्त होते हैं. लंबे समय तक सत्ता एक ही के हाथ में रहे, तो उसे धीरेधीरे अपने भगवान हो जाने का भ्रम होने लगता है. इस भ्रम को विश्वास में बदलने वह जनता की सहमति लेने को संविधान को अपनी मरजी के मुताबिक ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

यह बात सरिता के मई (द्वितीय) अंक 2024 की कवर स्टोरी शीर्षक ‘एक का फंदा एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स यानि एक ब्रह्म, एक पार्टी, एक नेता’ में यह बात पृष्ठ 28 पर कही गई है. यह अंक अभी स्टौल्स से होते पाठकों के हाथ में पहुंच ही रहा था कि एक न्यूजचैनल को दिए गए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद के भगवान या अवतार होने की घोषणा इन शब्दों के साथ कर दी कि, “मुझे लगता है कि जब मेरी मां जिंदा थीं तो मुझे लगता था कि मैं बायोलौजिकल रूप से पैदा हुआ हूं. उन के निधन के बाद जब मैं अनुभवों को देखता हूं तो मुझे यकीन हो जाता है कि मुझे भगवान ने ही भेजा है. यह ऊर्जा मेरे शरीर से नहीं है.”

यानी, वे खुद को नौन बायोलौजिकल मानते हैं जो कि आमतौर पर भगवान, देवता या अवतार होते हैं. यह एक सामान्य वक्तव्य नहीं था जिस में मोदी खुद को असामान्य बता रहे हैं. अपने भगवान हो जाने का भ्रम हो जाना कोई नई या हैरत की बात नहीं है जो दुनिया में करोड़ों लोगों को हो जाता है. लेकिन जब यही भ्रम वहम की शक्ल में दुनिया के सब से ज्यादा आबादी वाले प्रधानमंत्री को उसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर देने की हद तक हो जाए तो बात देश के भविष्य के लिहाज से चिंता की तो है. जनता ने मई 2014 में तो मोदीजी को आदमी मानते चुना था जिन का 10 साल में भगवान हो जाना हैरत की भी बात है.

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