विषय तो शोध का है कि अपने से ज्यादा, किराए के मकान से लोगों को इतना लगाव क्यों होता है कि उसे खाली करते वक्त किराएदार का मोह तरहतरह से व्यक्त होता है. मकान सरकारी हो तो उसे भवन कहना ही बेहतर होगा जिस की शानोशौकत को शब्दों में बांधना अपनेआप में नादानी वाली बात होती है.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना सरकारी घर खाली किया तो इस बात पर खूब हल्ला मचा कि वे कथित रूप से सीएम हाउस की टाइल्स तक उखाड़ कर ले गए.
अखिलेश यादव इस निकृष्ट आरोप का भी खंडन कर रहे हैं लेकिन इस सार्वभौमिक सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि किराए का मकान खाली करते वक्त लोग उस की स्मृतियां सहेजने खिड़की, कुंडी और कीलों के अलावा बिजली के खटके तक निकाल ले जाते हैं तो तकलीफ मकानमालिक को होती है जिस के खूनपसीने की गाढ़ी कमाई से मकान बना होता है. लेकिन सरकारी बंगला हकीकत में जनता की संपत्ति होती है, इसलिए भाजपा को इस पर जरूरत से ज्यादा हायहाय नहीं करना चाहिए.
CLICK HERE CLICK HERE CLICK HERE
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन