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प्रेमिका भाभी बनी तो : जब सोनी बन गई बबलू की भाभी

सियाराम के तीसरे नंबर के बेटे अनिल कुमार उर्फ बंटू की पत्नी सोनी उर्फ सुनीता ने शादी के डेढ़ साल बाद बेटे को जन्म दिया था. अनिल ने जब फोन कर के यह खुशखबरी गांव में रह रहे अपने पिता को दी तो पूरे परिवार में खुशी छा गई.

घर में जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गईं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनिल भी पत्नी सोनी और नवजात शिशु के साथ गांव आ गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि परिवार की खुशियों को अचानक ऐसा ग्रहण लगेगा कि 2-2 लाशें बिछ जाएंगी.

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना नगला खंगर क्षेत्र में एक गांव है गलपुरा. इस गांव में रहने वाले सियाराम के 5 बेटे हैं, इन में 3 बेटों राजेश, संजय व अनिल कुमार उर्फ बंटी की शादी हो चुकी थी, जबकि 19 साल का श्यामगोपाल उर्फ बबलू व सब से छोटा लवकुश अभी अविवाहित थे. बड़े बेटे राजेश की सीमा से, संजय की विनीता से और अनिल उर्फ बंटी की शादी सोनी से हुई थी.

22 साल की सोनी की शादी डेढ़ साल पहले ही अनिल के साथ हुई थी. संजय की पत्नी विनीता और अनिल की पत्नी सोनी सगी बहनें थीं. दोनों का मायका जिला इटावा के थाना जसवंतनगर क्षेत्र के गांव बनामई में था.

13 अगस्त, 2018 को सोमवार था. परिवार के लोग सुबह ही खेत पर धान की रोपाई करने चले गए थे. बहू विनीता कुछ देर पहले ही घर वालों के लिए खाना ले कर खेत पर गई थी. घर में केवल लवकुश और उस की भाभी सोनी ही थे.

अचानक घर के अंदर से गोली चलने की आवाज आई. कोई कुछ समझ पाता इस से पहले ही घर के अंदर से लवकुश का बड़ा भाई श्यामगोपाल उर्फ बबलू तेजी से बाहर निकला, उस के हाथ में तमंचा था. घर से 10-12 कदम की दूरी पर गली में पहुंचते ही उस ने अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह रास्ते में गिर गया. उस के सिर से खून बह रहा था.

गोलियां चलने की आवाज सुन कर गांव में सनसनी फैल गई. सियाराम के घर के बाहर गांव वालों की भीड़ लग गई. घर के अंदर बबलू की भाभी सोनी और घर के बाहर देवर बबलू की लहूलुहान लाशें पड़ी थीं.

बबलू की लाश के पास ही .315 बोर का तमंचा भी पड़ा था. बबलू ने अपनी भाभी सोनी को गोली मार कर हत्या करने के बाद खुद को गोली मार ली थी.

सियाराम के दूसरे नंबर के बेटे संजय की शादी विनीता के साथ हुई थी. शादी के समय संजय की साली सोनी और भाई बबलू जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे थे. कभीकभी बबलू अपनी भाभी को विदा कराने उस के मायके बनामई जाता था. वहीं पर सोनी और बबलू की नजरें एकदूसरे से टकरा गईं. बबलू को सोनी अच्छी लगी. सुंदर, चंचल और अल्हड़ सोनी को भी गठे बदन का बबलू मन भा गया. कुछ ही मुलाकातों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

दोनों के बीच काफीकाफी देर तक प्यार भरी बातें होने लगीं. बातों के बीच चुहलबाजी भी खूब होती. दोनों ही एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. एक दिन अकेले में मौका पा कर बबलू ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘इस जन्म में ही नहीं, हम 7 जन्मों तक साथ रहेंगे.’’

दोनों ने एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाईं. प्यार के इजहार के बाद दोनों भविष्य के इंद्रधनुषी सपने संजोने लगे. अब दोनों को केवल सही वक्त का इंतजार था.

सोनी और बबलू अपने प्यार की पीठ पर सवार हो कर भविष्य के सपने देख रहे थे. लेकिन इसी बीच सोनी की बड़ी बहन विनीता को अपने देवर और बहन के बीच पनपे प्रेम की खबर लग गई.

विनीता ने यह बात घरपरिवार के लोगों को बता दी. कच्ची उम्र के दोनों प्रेमी कोई ऐसा भी कदम उठा सकते थे, जिस से परिवार की बदनामी हो. इसलिए उन लोगों ने सोनी की शादी बबलू के बड़े भाई अनिल से तय कर दी. बबलू चाह कर भी इसलिए कुछ नहीं कर सका, क्योंकि शादी दोनों परिवारों की मरजी से तय हुई थी.

दरअसल सोनी के घर वालों को मालूम था कि बबलू सोनी से उम्र में छोटा तो है ही, गुस्सैल स्वभाव का भी है. वह शराब भी पीता था. जबकि अनिल की हेयर कटिंग की दुकान थी, जिस से वह ठीकठाक पैसा कमा लेता था.

दूसरी ओर सोनी और बबलू के दिलों में बराबर की आग लगी थी. बबलू इस इंतजार में था कि भाई अनिल की शादी हो जाने के बाद वह अपनी प्रेमिका सोनी से शादी करेगा. लेकिन अचानक ऐसी स्थिति बन जाएगी, इस बारे में उस ने सोचा तक नहीं था.

सोनी ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि उसे अपने प्रेमी बबलू के घर उस के भाई की पत्नी बन कर जाना पड़ेगा. उस के दिल के अरमान आंसुओं में बह गए थे. मजबूरी में उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. अंतत: अनिल और सोनी की शादी हो गई.

सोनी बबलू की भाभी बन कर उसी के घर में आ गई थी. प्रेमिका की शादी बड़े भाई से हो जाने की वजह से बबलू पूरी तरह टूट गया. वह चोरीछिपे सोनी से अपने प्यार का इजहार करता, लेकिन उस की ओर से अब कोई जवाब नहीं मिलता था.

घर में सोनी के जेठजेठानी, बहन, ससुर, सास जावित्री के अलावा छोटा देवर लवकुश भी था. एक तो संयुक्त परिवार, दूसरे बदनामी का डर, इसलिए सोनी ने शादी के बाद बबलू के प्यार को हवा नहीं दी. इस से बबलू परेशान रहने लगा. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा था. गुस्सेबाज तो वह था ही, ऐसी स्थिति में उस का गुस्सा और भी बढ़ गया. घर हो या बाहर वह किसी से भी उलझ पड़ता था. अब गांव में बबलू का मन नहीं लगता था.

घर वालों के कहने पर बबलू गुड़गांव की एक कंपनी में काम करने चला गया. बबलू घर से दूर जरूर चला आया, लेकिन सोनी की यादों को दिल से दूर नहीं कर सका. उस के साथ बिताए पल उसे याद आते रहते थे. सोतेजागते उस की आंखों के सामने सोनी की तसवीर घूमती रहती थी. वह चाहता था कि सोनी को भूल जाए, लेकिन चाह कर भी वह उसे भुला नहीं पा रहा था.

इसी बीच अनिल अपनी पत्नी सोनी को ले कर सिरसागंज चला गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. सिरसागंज में अनिल की हेयर कटिंग की दुकान भदान रेलवे फाटक के पास थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. शादी के डेढ़ साल बाद सोनी ने बेटे को जन्म दिया. इस की जानकारी उस ने गांव में रह रहे अपने परिवार को दी, तो सभी खुश हुए. उन्होंने जश्न मनाने की तैयारी शुरू कर दी.

घटना से 20 दिन पूर्व अनिल अपनी पत्नी व 25 दिन के बच्चे के साथ गांव आ गया. उधर घर में सोनी के आ जाने की जानकारी मिलने पर बबलू भी गुड़गांव से गांव आ गया. घर पहुंचते ही उस की नजर भाभी बनी सोनी से मिली तो दिल में समाई पुरानी यादें फिर से ताजा हो गईं.

बच्चे को गोद में ले कर उस ने खूब प्यार किया. एक दिन अकेले में मौका मिलने पर जब उस ने सोनी के सामने अपने प्यार का वास्ता दिया तो सोनी ने उस का कड़ा विरोध करते हुए पुरानी बातें भूल जाने को कहा. बबलू को सोनी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. प्रेमिका रह चुकी सोनी की इस बेरुखी से बबलू अंदर तक टूट गया.

बबलू को गुड़गांव से आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. 13 अगस्त की सुबह 7 बजे सोनी ने लंच बना कर अपने पति अनिल को दिया. लंच ले कर अनिल अपनी कटिंग की दुकान पर चला गया. परिवार के सदस्य खेत पर धान की रोपाई करने गए हुए थे. सियाराम की पत्नी जावित्री 8 दिन पहले अपनी बेटी की ससुराल गांव दौकेली चली गई थी.

जावित्री की बेटी गर्भवती थी, इस लिए उस ने मदद के लिए मां को अपने पास बुला लिया था. उस दिन बबलू सुबह ही घर से निकल कर गांव में घूमने चला गया था. सोनी और उस की बहन विनीता ने मिल कर खाना बनाया. विनीता सभी के लिए खाना ले कर खेतों पर चली गई. छोटा देवर लवकुश कमरे में बैठा खाना खा रहा था.

उस समय 10 बजे थे. सुनीता उर्फ सोनी हैंडपंप से पानी भर रही थी. वह एक बार पानी भर कर अंदर रख आई थी. दूसरी बार जब वह पानी लेने जा रही थी तभी बबलू घर आ गया. घर में आते ही उस ने आंगन में खड़ी सोनी के सामने गुस्से में बीती बातों को दोहराया. इस पर सोनी ने झुंझलाते हुए कहा कि तुम्हें घर और समाज में इज्जत से रहना है तो बीती बातों को भूलना होगा.

सोनी के इतना कहते ही बबलू ने अपनी कमर में खोंसा हुआ तमंचा निकाला और उस की कनपटी पर लगा कर गोली चला दी. गोली लगते ही सोनी कटे पेड़ की तरह आंगन में गिर पड़ी. बबलू ने जैसे ही दोबारा तमंचे में कारतूस डालने का प्रयास किया, कमरे में खाना खा रहा छोटा भाई लवकुश चीखता हुआ उस की तरफ दौड़ा और उसे रोकने की कोशिश की.

इस पर बबलू तमंचा लोड कर के घर के बाहर भागा और घर से 10-12 कदम चलते ही उस ने तमंचे से अपने सिर में गोली मार ली. गोली लगते ही वह गिर कर ढेर हो गया.

गांव वालों ने इस घटना की सूचना पुलिस और बबलू के घर वालों को दी. जब यह खबर खेत पर पहुंची, तब सभी लोग खाना खा रहे थे, घर पर खूनी खेल खेला जाएगा इस का उन्हें अंदाजा नहीं था. सभी खाना छोड़ कर घर की ओर दौड़े. उधर कुछ गांव वालों ने अनिल की दुकान पर जा कर उस की पत्नी की हत्या की जानकारी दी. अनिल दुकान बंद कर के आ गया.

सूचना मिलते ही नगला खंगर के थानाप्रभारी दीपक चंद्र दीक्षित, क्षेत्राधिकारी सिरसागंज अजय कुमार चौहान घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एसएसपी फिरोजाबाद सचिंद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह गांव गलपुरा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथसाथ गांव वालों व घर वालों से घटना की विस्तार से जानकारी ली.

पुलिस ने आंगन में पड़ी सोनी की लाश के पास से खाली कारतूस तथा बबलू की लाश के पास से तमंचा व उस में फंसा खोखा जब्त कर लिया. मृतका का पति अनिल जब गांव पहुंचा तो घर पर पुलिस व गांव वालों की भीड़ मौजूद थी. जावित्री को भी सूचना दे कर बुला लिया गया था.

जावित्री ने जैसे ही बहू सोनी की लाश देखी तो वह उस से लिपट कर रोने लगी. गांव वालों के अनुसार बबलू सोनी को गोली मारने के बाद उस की लाश पर ही खुद को गोली मारना चाहता था, लेकिन भाई लवकुश के शोर मचाने पर उस ने घर के बाहर जा कर आत्महत्या कर ली.

घटना के संबंध में अनिल ने अपने भाई बबलू के खिलाफ अपनी पत्नी सोनी की हत्या की रिपोर्ट भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत थाना नगला खंगर में दर्ज कराई. पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया.

बबलू के सिर इश्क का जुनून इस कदर हावी था कि वह अपना पराया कुछ भी नहीं सोच पा रहा था. इसी के चलते उस ने यह घातक कदम उठाया. उस ने भाई की बसीबसाई गृहस्थी तो उजाड़ी ही, उस के दुधमुंहे बच्चे से उस की मां भी छीन ली.

सोनी को बेटा पैदा होने पर सियाराम के परिवार में खुशियां मनाई जानी थीं, लेकिन परिवार की खुशियों में 2-2 मौतों से ग्रहण लग गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सनक का नतीजा : किरण ने कैसे लिया अपमान का बदला

शाम के करीब 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के देवास जिला मुख्यालय में चामुंडा कांपलेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित गोल्डन कौफी हाउस में रोज की तरह काफी रौनक थी. उस समय उज्जैन की तरफ से एक कार और इंदौर की तरफ से एक और कार आ कर गोल्डन कौफी हाउस के सामने रुकी. एक कार से करीब 45 साल की एक निहायत ही खूबसूरत महिला उतरी. वहीं दूसरी कार से 25-26 साल के 2 युवक नीचे उतरे.

उन युवकों ने उस महिला का अभिवादन किया तो उस महिला ने दोनों के अभिवादन का सिर हिला कर जवाब दिया, उन्हें साथ ले कर वह उस कौफी हाउस में दाखिल हो गई. यह बात 20 फरवरी, 2018 की है. दोनों गाडि़यों के ड्राइवर कौफी हाउस के बाहर ही रहे. दोनों ही ड्राइवर तब तक आपस में बातचीत करने लगे.

करीब सवा घंटे बाद वह तीनों कौफी हाउस से बाहर आने के बाद अपनीअपनी कार में आ कर बैठ गए. वह महिला इंदौर की तरफ रवाना हो गई. इस के कुछ देर बाद दोनों युवकों ने अपने ड्राइवर को उस महिला की कार का पीछा करने को कह दिया.

देवास से इंदौर रोड पर लगभग 6 किलोमीटर आगे क्षिप्रा नदी का पुल है. यह पुल देवास और इंदौर जिले की सीमा बनाता है. चूंकि शाम के समय सड़क पर ट्रैफिक अधिक था इसलिए क्षिप्रा तक पहुंचने में दोनों गाडि़यों को 15 से 18 मिनट का समय लगा.

उन युवकों की कार महिला की कार से सुरक्षित दूरी बना कर पीछा कर रही थी, ताकि कार में बैठी महिला को उस की कार का पीछा किए जाने का शक न हो सके. क्षिप्रा निकलने के बाद उन युवकों ने अपने ड्राइवर से कहा कि वह ओवरटेक कर के उस महिला की कार के आगे गाड़ी लगा दे. इस के बाद उस ड्राइवर ने कार की गति तेज कर दी.

इसी बीच उस महिला ने अपनी कार एक शराब की दुकान के सामने रुकवा दी. वह महिला कार से उतर कर शराब की दुकान से ठंडी बियर लेने लगी. तब तक उन युवकों की कार भी वहां आ कर रुक गई. उन में से एक युवक हाथ में रिवौल्वर ले कर कार से उतर कर शराब की दुकान पर खड़ी उस महिला के पास पहुंचा.

महिला बियर पसंद करने में खोई हुई थी. इसलिए उस ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि कुछ देर पहले वह जिस युवक से कौफी हाउस में मिल कर आ रही है वह उस के पीछेपीछे यहां तक आ पहुंचा है.
दूसरी तरफ युवक ने उस के पास जा कर रिवौल्वर उस की गरदन पर रख कर ट्रिगर दबा दिया और तेजी से अपनी कार में बैठ गया. फिर वह दोनों युवक देवास की तरफ निकल गए.

भरे बाजार में महिला की हत्या होने के बाद बाजार में खलबली मच गई. सूचना मिलने पर थाना औद्योगिक क्षेत्र के थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव तत्काल एसआई श्रीराम वर्मा आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घायल अवस्था में पड़ी उस महिला को तुरंत पहले देवास के अपेक्स अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से उसे इंदौर के एम.वाई. अस्पताल भेज दिया गया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पुलिस ने मृत महिला के कार चालक से पूछताछ की तो पता चला कि मरने वाली औरत नहीं बल्कि किन्नर किरण थी. जिस की खूबसूरती के चर्चे इंदौर के अलावा दिल्ली और श्रीनगर में भी थे. कार चालक ने यह भी बताया कि किरण को गोली मारने वाला युवक लाल रंग की कार में बैठ कर देवास की तरफ भागा है.

इस पर थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव ने यह खबर बिना देर किए पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ ही देर के बाद उज्जैन तिराहे से गुजर रही लाल रंग की कार एमपी09बीसी 0821 को यातायात पुलिस के एसआई रमेश मालवीय एवं रूपेश पाठक ने रोक ली. उस समय उस गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कोई नहीं था. उस ड्राइवर का नाम मोहम्मद रईस था जो सारंगपुर का रहने वाला था. दोनों एसआई उसे थाने ले आए. पूछताछ करने पर मोहम्मद रईस ने बताया कि यह गाड़ी कनाड़ निवासी एक व्यापारी की है. वह तो गाड़ी का ड्राइवर है. इस गाड़ी को आज उज्जैन के बेगम बाग निवासी भूरा और ऐजाज खान किराए पर ले कर देवास आए थे.

उस ने यह भी बताया कि किन्नर की हत्या करने के बाद दोनों उस की गाड़ी में सवार हो कर कुछ दूर तक आए थे. बाद में पुलिस के डर से गाड़ी से उतर कर वे पैदल ही कहीं चले गए. यह जानकारी मिलने के बाद देवास के एसपी अंशुमान सिंह ने एएसपी अनिल पाटीदार के नेतृत्व में गठित थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव की टीम को फरार हो चुके दोनों आरोपियों को ढूंढने में लगा दिया. टीम पूरी मेहनत से आरोपियों को खोजने में जुट गई. जिस का नतीजा यह हुआ कि अगले ही दिन मुख्य आरोपी भूरा को पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में हर अपराधी की तरह भूरा ने भी पहले तो किरण को जानने तक से इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने किन्नर किरण की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने भूरा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर और उस के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई.

आज से कोई 45 साल पहले मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में जन्मे चांद से खूबसूरत बच्चे का नाम रखा गया अनीस मोहम्मद अंसारी. लेकिल अंसारी परिवार की खुशियां उस समय मिट्टी में मिल गईं जब उस बच्चे के बड़ा होने पर यह बात सामने आई कि अनीस सामान्य लड़का नहीं बल्कि एक किन्नर है. 5-7 साल की उम्र से ही उस के चेहरेमोहरे में जनाना भाव आने लगे थे. जिस तरह की नजाकत उस में आने लगी थी, उस जैसी नजाकत और खूबसूरती कई लड़कियों में भी देखने को नहीं मिलती.

किशोरावस्था में पहुंच कर अनीस अपनी सच्चाई समझ चुका था. इसलिए 15-16 साल की उम्र में ही वह इंदौर से दिल्ली चला गया और वहां एक किन्नर जमात में शामिल हो गया. जहां उस का नाम रखा गया किरण. देखते ही देखते किरण दिल्ली की सब से खूबसूरत किन्नर बन गई.

जिस के चलते उस ने अपने गुरु के साथ रहते हुए करोड़ों की प्रौपर्टी भी जमा कर ली. इतना ही नहीं गुरु के बाद किरण को ही अपने गुरु की पदवी मिल गई. इस के बाद तो उस के इलाके के किन्नर जो भी कमाई कर के लाते, किरण के हाथ में रख देते थे, जिस से उसे और ज्यादा कमाई होने लगी. किरण की खूबसूरती लगातार बढ़ती जा रही थी. रंगरूप और शारीरिक बनावट से हर कोई उसे औरत समझने का धोखा खा जाता था. इसलिए दिल्ली में तो उस के दीवाने थे ही, दिल्ली के बाहर भी उस के चाहने वालों की संख्या बढ़ गई. परिवार के इंदौर में रहने के कारण उस का इंदौर में भी आनाजाना लगा रहता था, सो इंदौर में भी उस के दीवानों की संख्या कम नहीं थी. किरण की जिंदगी में महत्त्वपूर्ण बदलाव कुछ साल पहले उस समय आया जब वह श्रीनगर, कश्मीर घूमने गई.

इस दौरान वह डल झील में चलने वाले सब से महंगे बोट हाउस में ठहरी. शिकारा का मालिक जहांगीर उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. सो उस ने किरण की खूब मेहमाननवाजी की थी. जहांगीर के कई शिकारा डल झील में चला करते थे, जिस के चलते श्रीनगर में उस की खासी संपत्ति थी. अपितु जहांगीर उम्र में किरण से छोटा था, लेकिन किरण का जादू उस के ऊपर कुछ यूं चला कि वह उस के सामने अपने प्यार का इजहार करने से खुद को रोक नहीं सका.

किरण जानती थी कि जहांगीर उसे औरत समझने की गलती कर यह बात कह रहा है. ऐसे में किरण को पीछे हट जाना था, लेकिन प्यार की तलाश हर किसी को होती है. इसलिए किरण ने उस का प्यार स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उस से शादी कर ली.

ऐसे में किरण के किन्नर होने की सच्चाई जहांगीर के सामने खुलनी तय थी. सुहागरात के मौके पर इस सच को वह स्वीकार नहीं कर सका. इस का नतीजा यह निकला कि जहांगीर ने किरण को जल्द ही छोड़ दिया. यह बात किरण को बहुत बुरी लगी. वह अपनी खूबसूरती की ऐसी बेइज्जती सहन नहीं कर पाई. लिहाजा उस ने जहांगीर को खत्म करने का फैसला कर लिया.

घटना से 2 महीने पहले एक शादी समारोह में किरण और भूरा की उज्जैन में पहली मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में भूरा यह जान गया था कि किरण एक किन्नर है, इस के बावजूद भी वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा था.

किरण को भी एक मोहरे की तलाश थी. जिस से वह जहांगीर की हत्या करा सके. उसे इस बात की भी जानकारी थी कि नाबालिग उम्र में भूरा हत्या के एक आरोप में जेल जा चुका था. इसलिए मौका देख कर उस ने भी भूरा को निराश नहीं किया.

किरण ने जब देखा कि भूरा पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुका है तो एक दिन उस ने भूरा से जहांगीर की हत्या करने को कहा. इस के लिए उस ने भूरा को 25 लाख रुपए का लालच देने के साथ ढाई लाख रुपए एडवांस में भी दे दिए. भूरा, किरण का दीवाना हो चुका था, सो उस ने जहांगीर की हत्या करने की बात स्वीकार तो कर ली लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि कश्मीर में जा कर वहां के किसी आदमी की हत्या कर के भाग कर वापस आना आसान काम नहीं है. लिहाजा वह काम करने में आनाकानी करने लगा.

इस पर किरण ने खुद भूरा को धमकी दे डाली. किरण ने उस से कहा कि अगर जहांगीर को मरवाने में 25 लाख खर्च कर सकती है तो तुम जैसों के लिए तो कोई 25 हजार ले कर ही निपटा देगा. यह धमकी दे कर उस ने भूरा पर जहांगीर की हत्या करने के लिए दबाव बनाया.

भूरा जानता था कि किरण के पास पैसों की कमी नहीं है, वह पैसों के बल पर उस की हत्या भी करा देगी. इसलिए उस ने अपने दोस्त ऐजाज के साथ मिल कर किरण की हत्या करने की योजना बना डाली.
जिस के बाद उस ने 20 फरवरी, 2018 को किरण को देवास बुला कर जहांगीर की फोटो दिखाने को कहा. उस ने किरण से कहा था कि वह जहांगीर का काम करने श्रीनगर जा रहा है. इसलिए पहचान के लिए जहांगीर की फोटो की जरूरत पड़ेगी.

किरण ने जहांगीर का फोटो देने के लिए भूरा को देवास बुलाया था. यहां चामुंडा कांपलेक्स स्थित कौफी हाउस में भूरा और किरण की मुलाकात हुई. वहीं पर उस ने भूरा को जहांगीर का फोटो दे दिया था. फोटो देने के बाद लौटते समय वह ठंडी बियर लेने के लिए शराब की दुकान पर रुकी तभी भूरा ने उस की हत्या कर दी.

ड्राइवर मोहम्मद रईस और भूरा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त ऐजाज खान को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर तीनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

प्यार किसी का, लुटा आशियाना किसी का : भाग 2

‘‘बिलकुल ठीक कहा शशि, आओ हम उस पेड़ के नीचे बैठ कर बातें करते हैं.’’ कहते हुए एहसान शशि के साथ पेड़ की छांव में जा बैठा और बातें करने लगा. दोनों ने एकदूसरे को विस्तार से अपनेअपने परिवारों के बारे में बताया.

एहसान ने कहा, ‘‘जिंदगी हमारी है, इसलिए अपनी जिंदगी के बारे में सिर्फ हम ही निर्णय ले सकते हैं. तुम मुझ से मिलने के लिए रोज यहीं आना. यहां लोगों की नजर हम पर नहीं पड़ेगी. बोलो, आओगी न?’’

‘‘हां एहसान, मैं जरूर आऊंगी. तुम मेरा इंतजार करना.’’ शशि ने कहा और वहां से अपने घर की ओर चल दी.

शशि आज ऐसे खुश थी, मानो कोई बड़ा खजाना मिल गया हो. वह एहसान की यादों में इतनी खो गई थी कि कब सवेरा हुआ और कब वह उस के पास पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. एहसान भी उसी पेड़ की छांव में उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दोनों एकदूसरे से मिल कर काफी खुश हुए. एहसान शशि से रोमांटिक बातें करने लगा तो शशि शरमा गई, लेकिन बोली कुछ नहीं. तब एहसान ने पूछा, ‘‘शशि, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

‘‘हां, मुझे पता है, पर इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ शशि ने पूछा.

‘‘इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. कुसूर है तो सिर्फ तुम्हारी सुंदरता का, जिस ने मेरा दिल चुरा लिया है. मेरे इस दिल को अपने पास संभाल कर रखना. इसे कभी तोड़ना नहीं.’’ एहसान ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हो? मैं भला तुम्हारा दिल कैसे तोड़ सकती हूं? हमारा मिलन तो जन्मजन्मांतर का है. तुम्हें देख कर मुझे पहली ही नजर में ऐसा लगा जैसे तुम मेरे हो और मैं तुम्हारे पास खिंची चली आई.’’ शशि ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘मैं कितना खुशकिस्मत हूं कि तुम मुझे यज्ञ में अनायास ही मिल गई. शायद मेरे नसीब में लिखा था तुम्हें पाना.’’ कहते हुए एहसान ने शशि के हाथ को चूमा तो वह शरमा गई.

उन दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. लेकिन गांव का माहौल कुछ ऐसा होता है कि अधिक दिनों तक कोई भी बात किसी से छिपी नहीं रह सकती. एहसान और शशि के प्रेमिल संबंध भी लोगों से छिपे नहीं रह सके.

लालजी को पता चला तो उस ने शशि की खूब पिटाई की और उसे सख्त हिदायत दी कि वह आज के बाद एहसान से मिलने की भूल कर भी कोशिश न करे, नहीं तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई. लालजी अब जल्द से जल्द शशि के हाथ पीले कर देना चाहता था. शशि के कारण पूरे गांव में उस की बदनामी हो रही थी. मिश्रिख थानाक्षेत्र के ही अमजदपुर गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे और खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी रामकली के अलावा 3 बेटियां श्रीकांती, महिमा व सरिता थीं और 2 बेटे बबलू और सोनू.

रामप्रसाद अपनी 2 बेटियों का विवाह कर चुके थे. उन्होंने बड़े बेटे बबलू का भी विवाह कर दिया था. बबलू लखनऊ में रह कर ड्राइवरी करता था. जबकि सोनू अभी अविवाहित था. सोनू पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था.

society

लालजी को एक रिश्तेदार के माध्यम से सोनू और उस के परिवार के बारे में पता चला तो वह सोनू के पिता रामप्रसाद से जा कर मिले. बात आगे बढ़ी और जल्द ही शशि का रिश्ता सोनू के साथ तय हो गया. शशि ने लाख विरोध किया लेकिन उस की एक नहीं चली.

प्यार में अड़ंगा, शशि हुई परेशान

इसी साल 9 मार्च को धूमधाम से शशि और सोनू का विवाह हो गया. शशि को न चाहते हुए भी विवाह कर के ससुराल जाना पड़ा. वह एहसान के साथ जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी, लेकिन उस के घर वालों ने उस के सपनों को तोड़ दिया था.

पगफेरे की रस्म के लिए जब शशि अपने मायके गई तो वह एहसान से मिली और उस के गले लग कर बिलखबिलख कर रोई. एहसान की भी आंखें गीली हो आईं. वह शशि की हालत देख कर बेचैन हो उठा. उस ने सांत्वना दे कर किसी तरह शशि को शांत किया. फिर उस से कहा कि हम कभी अलग नहीं होंगे, कोई भी हमें जुदा नहीं कर सकता.

शशि जब तक मायके में रही, एहसान से मिलती रही. वहां से वापस ससुराल आई तो मोबाइल पर चोरीछिपे एहसान से बातें करने लगी.

30 मार्च को सोनू शशि को बाइक पर बैठा कर अपनी ससुराल गया, जो उस के गांव से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर थी. एक दिन रुक कर उसे अकेले 31 मार्च को वापस घर आना था, लेकिन शशि की मौसी ने उस दिन आने नहीं दिया. 1 अप्रैल को शाम 4 बजे सोनू बाइक से अपनी ससुराल से घर जाने के लिए चल दिया. अभी वह साढ़े 4 बजे के करीब सहादतनगर गांव के पास पहुंचा ही था कि पीछे से आए बाइक पर बैठे 2 अज्ञात युवकों ने सोनू की कनपटी पर तमंचे से फायर कर दिया. गोली लगते ही सोनू बाइक समेत जमीन पर गिर पड़ा. कुछ पल छटपटाने के बाद उस ने दम तोड़ दिया.

कुछ लोगों ने काफी दूर से घटना होते देखी थी. जब तक वे वहां पहुंचे, तब तक हत्यारे फरार हो चुके थे. उन में से किसी ने इस की सूचना मिश्रिख कोतवाली को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर अशोक सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतक की शिनाख्त कराई तो उस की शिनाख्त सोनू के रूप में हो गई.

इंसपेक्टर अशोक सिंह ने सोनू के परिजनों को घटना की सूचना भेज दी. कुछ ही देर में सोनू के परिजन वहां पहुंच गए और लाश को देख कर रोनेबिलखने लगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने सोनू के घर वालों से कुछ आवश्यक पूछताछ की, फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इस के बाद कोतवाली आ कर उन्होंने सोनू के भाई बबलू की लिखित तहरीर पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर अशोक सिंह ने इस मामले की जांच शुरू की तो उन्हें सोनू की पत्नी शशि पर शक हो गया. विवाह को एक माह भी नहीं बीता था और ससुराल से आते वक्त ही सोनू की हत्या हो गई थी. सोनू के साथ ही उन्होंने शशि के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाई.

प्रेमी बना हत्यारा

सोनू के ससुराल से निकलने के पहले और बाद में भी शशि के नंबर से एक नंबर पर काल की गई थी. उस नंबर पर उस से पहले भी हर रोज कई बार काल की गई थी. उस नंबर की जानकारी की गई तो वह नंबर कोहरावां गांव निवासी एहसान का निकला. इस का मतलब था कि सोनू की हत्या में शशि का भी हाथ था.

12 अप्रैल को इंसपेक्टर अशोक सिंह ने शशि को अपनी हिरासत में ले लिया और महिला सिपाही की उपस्थिति में उस से कड़ाई से पूछताछ की. घबरा कर उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए सोनू की हत्या करने वाले अपने प्रेमी एहसान और उस के दोस्त रामशंकर का नाम भी बता दिया. इस के बाद दोनों को उसी दिन बढ़ैया गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

विवाह के कुछ दिन में ही शशि की हरकतों से सोनू को शक हो गया था कि शशि चोरीछिपे किसी से बात करती है. उस ने इस का कई बार विरोध भी किया था. प्रेमी से मिलना तो दूर, बात करना भी मुश्किल होने लगा तो शशि तड़प उठी.  उस ने अपने प्रेमी एहसान से पूरी बात बताई. इस के बाद दोनों ने तय किया कि वे सोनू को रास्ते से हटा देंगे. क्योंकि उस को हटाए बिना वे कभी एक नहीं हो सकते. शशि के हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उस ने अपनी मांग का सिंदूर मिटाने का फैसला कर लिया.

एहसान ने अपने दोस्त रामशंकर उर्फ छोटू निवासी परागपुर थाना मिश्रिख को सोनू की हत्या करने के लिए अपने साथ मिला लिया था. 1 अप्रैल को एहसान अपने दोस्त के साथ रास्ते में खड़ा हो कर सोनू के आने का इंतजार करने लगा. सोनू का दोपहर डेढ़ बजे ससुराल से निकलने का प्रोग्राम था, इसलिए एहसान पहले से ही आ कर उस के आने का इंतजार कर रहा था. लेकिन सोनू ससुराल से 4 बजे के करीब निकला. उस के निकलते ही शशि ने एहसान को फोन कर के बता दिया.

जैसे ही सोनू सामने से आता दिखा, रामशंकर ने बाइक स्टार्ट की. एहसान उस के पीछे बैठ गया. रामशंकर ने गाड़ी को स्पीड दे दी. सोनू की बाइक के करीब पहुंचते ही एहसान ने सोनू की कनपटी पर फायर कर दिया. गोली लगने से सोनू की मौत हो गई. गोली मारने के बाद दोनों वहां से फरार हो गया.

लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. पुलिस ने उन के पास से हत्या में प्रयुक्त तमंचा, 2 कारतूस, एक कारतूस का खोखा और 4 मोबाइल बरामद किए. साथ ही हत्या में प्रयुक्त बाइक नंबर यूपी34 एन5189 भी बरामद कर ली गई. यह बाइक एहसान के भाई सलमान की थी. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

यार को बनाया गुनहगार : प्रेमी के साथ मिल प्रिया ने क्या किया

18 जुलाई, 2018 की बात है. रात के करीब 11 बजने वाले थे. रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता ने कुछ देर पहले ही रात का भोजन किया था. इस के बाद कुछ देर टीवी देखा और ड्राइंग रूम में बैठ कर पत्नी चंद्रकांता से इधरउधर की बातें कीं. गुप्ता और उन की पत्नी जब घरपरिवार की बातें कर रहे थे तो उन की 10 महीने की पोती नितारा दादी की गोद में ही सो गई थी. इस बीच नौकरानी प्रिया ने भोजन के बरतन वगैरह साफ कर लिए थे.

अब कोई काम भी नहीं था. कृष्णकांत गुप्ता को नींद आने लगी तो उन्होंने पत्नी चंद्रकांता से कहा, ‘‘मैं तो सोने जा रहा हूं. तुम भी दिन भर की थकी हुई हो, अब सो जाओ और नितारा को भी अपनी गोद से बिस्तर पर लिटा दो.’’

‘‘हां, मैं भी थक गई हूं, अपने कमरे में जा कर सोती हूं.’’ चंद्रकांता ने कहा.

कृष्णकांत गुप्ता ड्राइंग रूम से उठ कर अपने कमरे में जाने लगे तो उन्हें अपने मकान के पोर्च में कुछ हलचल सी महसूस हुई. उन्होंने गेट खोल कर देखा तो 3 अनजान लोग घर के अंदर खड़े मिले. उन्होंने उन लोगों से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कौन हो और यहां क्यों खड़े हो?’’

कृष्णकांत गुप्ता के सवालों से घबरा कर वे तीनों आदमी सौरी बोलते हुए यह कह कर वहां से चले गए कि रात के अंधेरे में हम गलती से रामदेव का घर समझ कर आप के घर के अंदर आ गए. हमें रामदेव के घर जाना है. वे तीनों अनजान आदमी भले ही वहां से चले गए. लेकिन गुप्ताजी के मन में कई तरह की शंकाएं उठने लगीं.

कृष्णकांत गुप्ता जयपुर के गोपालपुरा बाईपास पर स्थित पौश कालोनी 10बी स्कीम में रहते थे. 3 साल पहले ही वह इलाहाबाद बैंक से अधिकारी पद से रिटायर हुए थे.

इस मकान में वह अपनी पत्नी चंद्रकांता और 10 महीने की पोती नितारा के साथ रहते थे. उन का बेटा अंकुर और बहू अंकिता मुंबई में रहते हैं. बेटा अंकुर मुंबई में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में काम करता है.

कृष्णकांत गुप्ता ने घर के छोटेमोटे कामकाज और पोती की देखभाल के लिए एक नौकरानी प्रिया साहू को काम पर रख लिया था. उसे रहने के लिए अपने मकान में ही एक कमरा दे दिया था. उसे वह 16 हजार रुपए महीने की सैलरी देते थे. वह पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी.

कृष्णकांत गुप्ता को शंका हुई तो उन्होंने कालोनी समिति के अध्यक्ष हंसराज और सचिव गोपाल को फोन कर के अपने घर बुलाया. इसी के साथ उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. 3 संदिग्ध लोगों की बात सुन कर कालोनी के लोग उन के यहां जमा हो गए. लोगों ने रात में ही गलियों में घूम कर उन संदिग्ध लोगों को ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले.

इस बीच सूचना पा कर 2 पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए. कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें अपने यहां आए 3 संदिग्ध लोगों के बारे में बताया तो उन पुलिस वालों ने भी मोटरसाइकिल से गलियों के चक्कर लगाए और वहां से चले गए. तब तक रात के करीब 1 बज गए थे. उन तीनों अनजान लोगों का कुछ पता नहीं चला तो कालोनी के लोग भी गुप्ताजी को सावधान रहने की बात कह कर अपनेअपने घर जा कर सो गए.

तड़के करीब 3 बजे कृष्णकांत गुप्ता अपने कमरे में जब गहरी नींद में सो रहे थे तो उन की नींद घर में कुछ लोगों की हलचल की आवाज से टूट गई. वह कुछ समझ पाते, इस से पहले ही 2-3 बदमाश उन के घर में घुस आए और उन का मुंह व हाथपैर साड़ी व चुनरी से बांध दिए. इस के बाद बदमाश चंद्रकांता के कमरे में पहुंचे. बदमाश उन्हें चाकू दिखा कर धमकाते हुए उन के पति के कमरे में ले आए.

इस के बाद बदमाशों ने उन के घर से तमाम कीमती सामान बटोर लिया. बदमाशों ने अलमारी के ऊपर रखे चांदी के बरतन उतारने के लिए चंद्रकांता से कहा तो चंद्रकांता ने अपने पैर में रौड लगी होने की वजह से ऊपर चढ़ने से इनकार कर दिया.

बदमाशों ने चाकू दिखा कर उन्हें जान से मारने की धमकी दी तो चंद्रकांता ने कहा कि टेबल पर चढ़ कर गिरने से मरूंगी, इस से अच्छा है कि तू ही मुझे मार दे.

बाद में एक बदमाश ने टेबल पर चढ़ कर चांदी के बरतन उतारे. लूटपाट के दौरान बदमाशों ने अपने साथ टिफिन में लाया खाना भी खाया. उस टिफिन को बाद में वह मकान के बाहर फेंक गए थे.

करीब आधे घंटे तक लूटपाट करने के बाद बदमाश वहां से करीब 15 लाख रुपए के गहने, चांदी के बरतन और ढाई लाख रुपए नकद बटोरने के बाद गुप्ता दंपति की 10 महीने की पोती नितारा को साथ ले जाने की धमकी देने लगे. इस पर चंद्रकांता बिफर गईं. वह बोलीं कि सब कुछ ले जाओ लेकिन मेरी पोती की तरफ आंख उठा कर भी मत देखना. मेरे जीते जी तुम मेरी पोती को नहीं ले जा सकते.

चंद्रकांता का रौद्र रूप देख कर बदमाशों ने नितारा को तो छोड़ दिया लेकिन वह 3 मोबाइल फोन और एक टैबलेट तथा कृष्णकांत गुप्ता का एटीएम कार्ड भी ले गए. बदमाशों ने लूटे गए माल को बैगों में भर लिया. फिर उन्होंने चंद्रकांता और उन की पोती को एक कमरे में बंद कर दिया और कृष्णकांत गुप्ता को दूसरे कमरे में.

इस के बाद बदमाश पोर्च में खड़ी गुप्ताजी की टोयटा इटियोस कार नंबर आरजे14सी आर5236 में सवार हो कर नौकरानी प्रिया को भी अपने साथ ले गए. जिस समय बदमाश घर में लूटपाट कर रहे थे, उस समय नौकरानी प्रिया चुपचाप तमाशा देख रही थी. प्रिया अपना सारा सामान समेट कर उन बदमाशों के साथ चली गई थी.

बदमाशों के जाने के बाद चंद्रकांता ने कमरे की खिड़की से पड़ोसियों को कई आवाजें लगाईं, लेकिन किसी ने नहीं सुनीं. इस बीच, दूसरे कमरे में हाथपैर बंधे पड़े कृष्णकांत ने किसी तरह खुद को आजाद किया. उन्होंने पत्नी चंद्रकांता को आवाज दी तो पता चला कि वह कमरे में बंद है. उन्होंने पत्नी और पोती को कमरा खोल कर बाहर निकाला. इस के बाद मौर्निंग वाक पर निकले कालोनी के लोगों को बुला कर वारदात की जानकारी दी.

इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. शिप्रापथ थाना पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल शुरू की. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने मकान से अंगुलियों के निशान लिए. डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. बाद में डीसीपी डा. विकास पाठक और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंचे और गुप्ता दंपति से बदमाशों के हुलिया, बोलचाल आदि के बारे में पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि घर में लूटपाट करते हुए 3 बदमाश नजर आए थे. इन में एक ने सफेद रंग की शर्ट और 2 बदमाशों ने टीशर्ट व जींस पहन रखी थी. बदमाशों के साथ प्रिया के भी जाने से यह बात साफ हो गई कि नौकरानी प्रिया पहले से ही बदमाशों से मिली हुई थी.

उसी ने बदमाशों के लिए मकान का गेट खोला था. बाद में वह उन्हीं बदमाशों के साथ चली गई. पुलिस का अनुमान था कि घर में भले ही 3 बदमाश घुसे थे, लेकिन उन के साथी आसपास बाहर निगरानी पर जरूर रहे होंगे.

पुलिस ने नौकरानी प्रिया साहू के बारे में जांचपड़ताल की तो पता चला कि करीब 4 महीने पहले जयपुर सर्वेंट सेंटर के मार्फत उसे 16 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर रखा था. तब उन्हें बताया गया था कि प्रिया साहू 3 साल तक भीलवाड़ा में एक डाक्टर के घर पर भी काम कर चुकी है.

एजेंसी ने प्रिया का पुलिस वेरिफिकेशन होने का भी दावा किया था. उसी समय कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को सैलरी के अलावा रहने और खानेपीने की सुविधाएं देने की बात कही थी. कुछ दिनों अपने यहां काम पर रखने के बाद कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को मुंबई में अपने बेटेबहू के पास एक महीने तक काम करने के लिए भी भेजा था.

पुलिस ने जब जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को थाने बुला कर पूछताछ की तो पता चला कि उस ने प्रिया का पुलिस सत्यापन नहीं कराया था. इस के अलावा उस का नाम प्रिया नहीं बल्कि परवीन खातून था.

प्रिया फर्राटे से अंगरेजी बोलती थी और समझती भी थी लेकिन वह हिंदी नहीं जानने और घड़ी में समय नहीं देखने आने की बात कहती थी.

कृष्णकांत ने पुलिस को बताया कि बेटे ने अमेरिका से लाया हुआ एक मोबाइल फोन वारदात से 12 घंटे पहले ही कुरियर से भेजा था. बदमाश उन दोनों के फोनों के अलावा उस नए मोबाइल को भी ले गए. चंद्रकांता जिस टैबलेट पर रात को समय काटने के लिए फिल्म वगैरह देखती थी. वह टैबलेट भी बदमाश ले गए थे.

वारदात की सूचना मिलने पर कृष्णकांत गुप्ता के बेटेबहू भी 19 जुलाई को ही मुंबई से जयपुर पहुंच गए. गुप्ता के बड़े भाई अशोक गुप्ता जयपुर के ही प्रतापनगर और छोटे भाई अनिल मानसरोवर में रहते हैं.

चंद्रकांता के सासससुर भी जयपुर में मानसरोवर कालोनी में रहते हैं. उन की बेटी भी पति के साथ हैदराबाद से जयपुर आ गई. वारदात का पता चलने पर उन के घर रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की भीड़ जुड़ने लगी थी.

पुलिस के लिए चुनौती की बात यह थी कि कालोनी के जिस मकान में डकैती की वारदात हुई, उस के पास ही राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट और जयपुर के महापौर अशोक लाहोटी रहते थे. वारदात का पता चलने पर महापौर कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे और मामला दर्ज कराने उन के साथ शिप्रापथ थाने भी गए.

मामला दर्ज होने पर डीसीपी (दक्षिण) डा. विकास पाठक ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) मनोज चौधरी के निर्देशन और एसीपी (मानसरोवर) दीपक कुमार की अध्यक्षता में एक विशेष टीम गठित की. इस के अलावा अभियुक्तों की तलाश में शिप्रापथ थानाप्रभारी सुरेंद्र यादव और श्यामनगर थानाप्रभारी अनिल कुमार जैमिनी के नेतृत्व में 2 अलगअलग टीमें पश्चिम बंगाल भेजी गईं. इन में एक पुलिस टीम हवाई मार्ग से गई थी.

इस बीच पुलिस अपने तरीके से बदमाशों के बारे में सुराग लगाती रही. इस में पता चला कि वारदात से करीब 20 दिन पहले कृष्णकांत के घर पर नौकरानी प्रिया से मिलने एक युवक आया था. प्रिया ने उस युवक को अपना पति बताया था.

पुलिस कृष्णकांत गुप्ता की उस कार का भी पता लगाने में जुट गई, जिस में सवार हो कर बदमाश नौकरानी के साथ भागे थे. जांच में पता चला कि वह कार जयपुर से आगरा रोड हो कर 19 जुलाई की सुबह करीब साढ़े 10 बजे आगरा का मथुरा टोलनाका पार कर के गई थी.

इस के अलावा गुप्ता के एटीएम कार्ड से गाजियाबाद में 3 बार में 12 हजार रुपए निकाले गए थे. ये जानकारियां मिलने पर पुलिस की एक टीम गाजियाबाद भेजी गई.

तकनीकी जानकारियों और खुफिया सूचनाओं के आधार पर वारदात के पांचवें दिन जयपुर पुलिस ने 23 जुलाई, 2018 को नौकरानी परवीन खातून उर्फ प्रिया के अलावा उस के प्रेमी नदीम और एक अन्य बदमाश आमिर खान उर्फ समीर खान को गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया.

इन के कब्जे से पुलिस ने कृष्णकांत गुप्ता की लूटी गई कार और वारदात में प्रयोग किए 2 चाकू तथा 34 हजार 460 रुपए नकद बरामद किए. इन बदमाशों ने लूट का बाकी सामान अपने एक अन्य साथी के पास होना बताया. इस के बाद पुलिस ने 24 जुलाई को वारदात के मुख्य मास्टरमाइंड दयाराम सिंह को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.

बाद में 26 जुलाई को पांचवें आरोपी दिलशाद को भी गिरफ्तार किया गया. इन अभियुक्तों से पुलिस ने गुप्ता के घर से लूटे गए गहने, चांदी के बरतन व अन्य सामान बरामद कर लिया. बदमाशों ने लूटी गई धनराशि में से करीब एक लाख रुपए खर्च कर दिए थे. चूंकि वारदात में 5 लोग शामिल थे, इसलिए पुलिस ने केस में डकैती की धाराएं जोड़ दीं.

इन के अलावा पुलिस ने फरजी दस्तावेज के आधार पर परवीन खातून को प्रिया साहू के नाम से गुप्ता के घर पर नौकरानी पर लगवाने वाले जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को भी 26 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद डकैती डालने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नदीम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कांठ थाना इलाके के गांव पैगंबरपुर सुखवासी लाल के रहने वाले आरिफ का बेटा था. कांठ थाने के गांव बिच्छपुरी का रहने वाला आमिर खान उर्फ समीर खान और पास के ही गांव देहरी जुम्मन का रहने वाला दयाराम उर्फ विकास करीब डेढ़ साल पहले यूपी की जेल में बंद थे.

चूंकि तीनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए तीनों की ही जेल में दोस्ती हो गई. वहां से जमानत पर बाहर आने के बाद भी ये आपस में एकदूसरे के संपर्क में रहे.

बाद में नदीम अहमदाबाद चला गया. अहमदाबाद में प्रिया की बड़ी बहन अपने पति के साथ रहती थी. वह नदीम के साथ ही एक फैक्ट्री में काम करती थी. प्रिया की बहन ने नदीम को अपना एक मोबाइल फोन बेचा था. उस फोन में प्रिया के घर वालों के नंबर भी सेव थे.

उस फोन में जो नंबर लड़कियों के नाम से सेव थे, फुरसत मिलने पर नदीम एकएक कर के उन नंबरों पर बात करता. इसी दौरान एक दिन उस ने प्रिया का नंबर मिलाया. प्रिया ने उस से प्यार से बात की. नदीम को उस की बातें अच्छी लगीं. इस के बाद वह अकसर प्रिया से बातें करने लगा. प्रिया का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अकेली रहती थी. धीरेधीरे नदीम और प्रिया की दोस्ती हो गई.

परवीन खातून उर्फ प्रिया कोलकाता के 24 परगना में रहने वाले आबिद हुसैन की बेटी थी. परवीन खातून घरों में नौकरानी का काम और नवजात शिशुओं की देखभाल का काम करती थी. उस ने प्रिया साहू के नाम से फरजी आईडी बनवा रखी थी. इस आईडी के जरिए वह जयपुर सर्वेंट सेंटर के माध्यम से कृष्णकांत गुप्ता के घर पर नौकरी करने आई थी.

प्रिया उर्फ परवीन खातून ने ही अपने प्रेमी नदीम को जयपुर में रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता के घर की सारी जानकारी दी थी. उस ने नदीम को बताया था कि यह अमीर परिवार है और घर में केवल बुड्ढेबुढि़या और उन की पोती रहती है.

प्रिया से गुप्ता के परिवार की जानकारी हासिल करने के बाद नदीम ने प्रिया से शादी करने का वादा भी कर दिया था. इस के बाद वारदात से पहले 5 जुलाई, 2018 को नदीम अपने साथी दयाराम उर्फ विकास के साथ जयपुर चला आया.

नदीम उस दिन अकेला ही गुप्ता के घर जा कर प्रिया से मिला और उसे शादी करने का विश्वास दिलाने के लिए अंगूठी पहनाई. इस दौरान प्रिया ने गुप्ता और उन की पत्नी चंद्रकांता को बताया था कि वह उस का पति है. प्रिया ने नदीम को चायनाश्ता भी कराया था.

नदीम ने कुछ देर प्रिया से बातचीत के दौरान ही गुप्ता के मकान की रेकी कर ली. नदीम के साथी दयाराम ने गुप्ता के मकान के बाहर रह कर कालोनी की रेकी की और आनेजाने के रास्ते देखे.

इस के बाद पूरी योजना बना कर नदीम, आमिर और दयाराम 18 जुलाई को जयपुर पहुंचे. वे सीधे कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे. वे तीनों रात को 11 बजे ही वारदात के लिए पहुंच गए. लेकिन कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें देख लिया तो वे वहां से भाग कर आसपास छिप गए. बाद में उन्होंने रात करीब ढाई बजे परवीन खातून उर्फ प्रिया के मोबाइल पर फोन कर के गेट खुलवाया और लूटपाट की वारदात की.

वारदात के बाद वे नौकरानी प्रिया को साथ ले कर गुप्ता की टोयटा इटियोस कार से भाग गए थे. इस के बाद पुलिस ने काल डिटेल्स और एटीएम कार्ड प्रयोग करने की लोकेशन के आधार पर अभियुक्तों तक पहुंचने में सफलता हासिल की.

गिरफ्तार अभियुक्त नदीम के खिलाफ चोरी, बलात्कार और आर्म्स एक्ट के 5 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं. आमिर खान उर्फ समीर खान के खिलाफ भी 8 आपराधिक मामले गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद व मुरादाबाद में दर्ज हैं. आमिर खान ने लूट की वारदात के बाद कृष्णकांत की कार की फरजी आरसी और खुद का फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था.

अभियुक्त दयाराम उर्फ विकास के खिलाफ चोरी, अपहरण, लूट, एनडीपीएस एक्ट आदि के 9 मामले दर्ज हैं. गुप्ता के घर डाली गई डकैती में गिरफ्तार पांचवें अभियुक्त दिलशाद ने बाकी चारों आरोपियों को गाजियाबाद में फ्लैट में छिपाने में मदद की थी. वह इस वारदात में भी शामिल था. दिलशाद अपहरण के मामले में मुरादाबाद में गिरफ्तार हो चुका है.

पुलिस ने जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को गिरफ्तार कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि उस की भूमिका कई मामलों में संदिग्ध है.

फहीम ने न केवल प्रिया उर्फ परवीन खातून को ही फरजी पहचानपत्र के आधार पर नौकरी नहीं दिलवाई बल्कि कई अन्य लड़कियों को भी कोलकाता से ला कर राजस्थान में कई अन्य लोगों के घरों में बतौर नौकरानी रखवाया था.

इन लड़कियों की पुलिस तसदीक कराने का काम सेंटर संचालक फहीम ही करता था, लेकिन फहीम जानबूझ कर इन युवतियों के फरजी नाम व पते से पहचानपत्र बनवा कर लोगों की जानमाल को खतरे में डालता था, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ अलग से मुकदमा दर्ज किया.

यह विडंबना रही कि प्रिया उर्फ परवीन खातून जिस नदीम के साथ जीवन भर साथ निभाने के सपने देख रही थी, उसी नदीम और उस के साथियों के साथ वह जेल पहुंच गई. प्रिया ने केवल गुप्ता परिवार के साथ ही विश्वासघात नहीं किया बल्कि नौकरानी की पूरी जमात से भरोसा उठा दिया.?

रिश्तों का रेतीला महल : भाग 1

अपनी नौकरी के चलते गीता को घर का काम निपटा कर जल्दी सोना होता था और सुबह जल्दी ही उठना पड़ता  था. लेकिन उस दिन उठने में थोड़ी देर हो गई थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि जल्दी से रसोई का काम निपटाए. काम भी कम नहीं था. सुबह के नाश्ते से ले कर दोपहर का खाना तक बनाना होता था. इस की वजह यह थी कि उस की बेटी सुदीक्षा कालेज जाती थी, जो दोपहर को घर लौटती थी. इसलिए उस का खाना बनाना जरूरी था. साथ ही यह भी कि उसे खुद को और पति कुलदीप को अपना लंच बौक्स साथ ले कर जाना होता था.

दरअसल 37 वर्षीय गीता पंजाबी भाषा की प्रोफेसर थी और पिछले 15 सालों से सिविल लाइंस लुधियाना स्थित एक शिक्षण संस्थान में पढ़ाती थी. उस का पति कुलदीप रेलवे में बतौर इलेक्ट्रिशियन तैनात था.
कुलदीप सुबह साढ़े 8 बजे अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और शाम को साढ़े 5 बजे घर लौटता था. कुलदीप के चले जाने के बाद साढ़े 9 बजे गीता भी अपने कालेज चली जाती थी. जबकि सुदीक्षा कालेज के लिए 10 बजे घर से निकलती थी. सब के जाने के बाद घर में कुलदीप का छोटा भाई हरदीप अकेला रह जाता था.

हरदीप नगर निगम लुधियाना की पार्किंग के एक ठेकेदार के पास काम करता था. उस की रात की ड्यूटी होती थी. वह अपने भाईभाभी के पास ही रहता था. हरदीप रात 8 बजे घर से ड्यूटी पर जाता था और सुबह 9 बजे लौटता था. काम से लौट कर वह दिन में घर पर ही सोता था.

कुलदीप, उस की पत्नी गीता, बेटी सुदीक्षा और हरदीप सहित 4 सदस्यों का यह परिवार लुधियाना के अजीत नगर, बकौली रोड, हैबोवाल के मकान नंबर 1751/21 ए की गली नंबर-3 में रहता था. कुलदीप के पिता राममूर्ति की कुछ वर्ष पहले मौत हो चुकी थी.

पिता की मौत के बाद कुलदीप ही घर का एक मात्र बड़ा सदस्य था. कुलदीप को मिला कर परिवार में 3 कमाने वाले थे, सो घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था.

पिता की दुश्मन बेटी

उस दिन कुलदीप, गीता और सुदीक्षा घर से जाने की तैयारी कर रहे थे. अपनेअपने हिसाब से सभी को जल्दी थी. गीता ने नाश्ता तैयार कर लिया था. उस ने पति को आवाज दी, ‘‘नाश्ता लग गया है, जल्दी आ जाइए. मुझे कालेज के लिए देर हो रही है.’’

कुलदीप नाश्ते की टेबल पर आ कर बैठ गया तो गीता ने उसे परांठे परोस दिए. कुलदीप नाश्ता करने लगा तो उसे बेटी का ध्यान आया. उस ने गीता से पूछा, ‘‘सुदीक्षा कहां है?’’

‘‘अपने कमरे में होगी, तुम नाश्ता करो.’’

कुलदीप ने वहीं बैठेबैठे सुदीक्षा को आवाज दे कर पुकारा, पर वह नहीं आई. कुलदीप ने 2-3 बार आवाज दी पर सुदीक्षा के कमरे से कोई जवाब नहीं आया. गीता ने एक बार फिर टोका, ‘‘तुम नाश्ता करो, वह आ जाएगी.’’ पर कुलदीप को चैन नहीं आया, क्योंकि उसे सुबह का नाश्ता और रात का खाना पत्नी और बेटी के साथ खाना पसंद था.

पत्नी के मना करने के बावजूद कुलदीप नाश्ता छोड़ कर बेटी के कमरे में गए. सुदीक्षा के कमरे में जा कर उन्होंने देखा कि सुदीक्षा कानों में हैडफोन लगाए किसी से हंसहंस कर बातें कर रही थी. यह देख कर कुलदीप को गुस्सा आ गया. उस ने आगे बढ़ कर देखा तो स्क्रीन पर तरुण का नाम था.

तरुण उर्फ तेजपाल सिंह भाटी, सुदीक्षा का बौयफ्रैंड था, यह बात कुलदीप अच्छी तरह जानता था. तरुण हंसबड़ारोड पर पंज पीर के पास मेहर सिंह नगर में रहता था, उस की मैडिकल शौप थी. पिछले 3 सालों से सुदीक्षा और तरुण के प्रेमसंबंध थे. कुलदीप शुरू से ही इन संबंधों का विरोध करता था. इसे ले कर उस ने सुदीक्षा को कई बार फटकारा भी था. इतना ही नहीं तरुण को ले कर बापबेटी म७ें कई बार कहासुनी भी हुई थी. फिर भी सुदीक्षा ने तरुण का साथ नहीं छोड़ा.

कुलदीप उसे बराबर समझाता था कि फालतू के प्यारव्यार के चक्कर में न पड़ कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. लेकिन सुदीक्षा ने पिता की बात कभी नहीं मानी. वह खुद को आजाद मानती थी और आजाद ही रहना चाहती थी. अपनी जिंदगी में उसे किसी की दखलंदाजी बरदश्त नहीं थी. तरुण के मामले में तो वह किसी की भी नहीं सुनती थी.

फोन की स्क्रीन पर तरुण का नंबर देख कर कुलदीप के तनबदन में आग लग गई. उस ने डांटते हुए सुदीक्षा से कहा, ‘‘हजार बार मना किया है कि इस लफंगे से संबंध नहीं रखना, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. क्या मेरी बातें तुम्हारी समझ में नहीं आतीं, या सब कुछ जानसमझ कर अनजान बनने का नाटक करती हो.’’

सुदीक्षा के कमरे से पति के जोरजोर से बोलने की आवाज सुन कर गीता भी वहां आ गई. उस ने भी बेटी को डांट कर चुप रहने के लिए कहा. लेिकन बापबेटी के बीच फोन पर तरुण से बातचीत को ले कर कहासुनी चालू रही. इस बहस में दोनों में से कोई हारने को तैयार नहीं था.

कुलदीप पिता होने का अधिकार समझ कर बेटी को गलत राह पर जाने से रोक रहा था, जो अपनी जगह पर ठीक भी था. जब बच्चे अपना लक्ष्य भूल कर रास्ता भटकने लगते हैं, तो पिता का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपनी संतान को गलत राह पर जाने से रोके और अपनी समझ के अनुसार उस का सही मार्गदर्शन करे. यही कुलदीप कर रहा था.

दूसरी ओर कोई तरुण को भलाबुरा कहे यह सुदीक्षा को बरदाश्त नहीं था. यही कारण था कि कुलदीप जब भी बेटी को समझाने की कोशिश करता तो वह हत्थे से उखड़ जाती थी. इस के साथ ही बापबेटी के बीच तरुण को ले कर महाभारत शुरू हो जाता था.

तरुण के मामले में सुदीक्षा अपने पिता को अपना कट्टर दुश्मन मानती थी. उस दिन कहासुनी से शुरू हुई बात अचानक इतनी ज्यादा बढ़ गई कि गुस्से में कुलदीप ने सुदीक्षा के हाथों से मोबाइल छीन कर फर्श पर पटक दिया. इस के बाद वह गुस्से में नाश्ता किए बिना ही घर से निकल गया. खाने का टिफिन भी घर पर ही छोड़ दिया था.

परिवार में किसी तीसरे का  दखल भी बढ़ाता है कलह

कुलदीप के बिना कुछ खाएपीए घर से निकल जाने के बाद गीता और सुदीक्षा भी बिना नाश्ता किए अपनेअपने कालेज चली गईं. रात को कुलदीप ने एक बार फिर बेटी को प्यार से समझाने के लिए खाने की टेबल छत पर लगवाई. कुलदीप का भाई हरदीप खाना खा कर काम पर जाने की तैयारी कर रहा था.
गीता, सुदीक्षा और कुलदीप ने जब तक खाना शुरू किया तब तक हरदीप जा चुका था. मांबाप और बेटी के बीच जो थोड़ा बहुत मनमुटाव था, वह एक साथ खाना खाने से खत्म हो गया. खाना खाने के बाद कुलदीप नीचे अपने कमरे में सोने के लिए चला गया. गीता और सुदीक्षा छत पर ही सो गईं. यह बीती 19 जुलाई की बात है.

रिश्तों का रेतीला महल : भाग 3

तरुण ने खोला भेद

पूछताछ के दौरान तरुण ने बहुत चौंका देने वाला खुलासा कर के पुलिस को हैरत में डाल दिया. तरुण ने सब इंसपेक्टर परमदीप सिंह को बताया कि कुलदीप की हत्या खुद सुदीक्षा ने ढाई लाख रुपए दे कर करवाई थी.

पुलिस कमिश्नर लुधियाना व अन्य पुलिस उच्चाधिकारियों के समक्ष दिए गए तरुण के इस बयान के बाद कुलदीप की हत्या के अपराध में गीता और सुदीक्षा को गिरफ्तार कर लिया गया.

उसी दिन सुदीक्षा, उस के प्रेमी तरुण और मां गीता को कुलदीप की हत्या के इलजाम में अदालत में पेश कर के आगामी पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.

तरुण और सुदीक्षा की निशानदेही पर पुलिस ने उस का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया, जो उस ने छत पर छिपा रखा था. साथ ही उस की वह चुन्नी और खून से सना तौलिया भी मिल गया, जो वारदात में इस्तेमाल हुआ था.

तरुण और सुदीक्षा ने इस हत्याकांड में लिप्त 4 और लोगों के नाम भी बताए. हैबोवाल थानाप्रभारी परमदीप सिंह ने इन आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष टीम बनाई. जिस में हंबड़ां चौकी प्रभारी एएसआई मनजीत सिंह सिंघम, कांस्टेबल प्रगट सिंह, जतिंदर सिंह व जीतू कुमार को शामिल किया गया.

इस टीम ने 25 जुलाई को बड़े नाटकीय ढंग से सागर गैंग के सरगना एवं कौंट्रैक्ट किलर सागर उर्फ न्यूट्रन को, उस के 3 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया, जबकि इस मामले का 8वां आरोपी जसकरन अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

पकडे़ गए आरोपियों की पहचान फील्डगंज के प्रेमनगर निवासी सागर ब्राह्मणिया. खुडु मोहल्ले के दीपक धालीवाल उर्फ दीपा व सीएमसी के निकट रहने वाले विशाल जैकप के रूप में हुई. पकड़े गए आरोपी 18 से 21 साल के बीच के थे जो कि 10वीं तक ही पढ़े थे. ये सभी आपस में दोस्त थे, सागर, विशाल और दीपक को राजपुरा रोड से काबू किया गया, जबकि न्यूट्रन को ढोलेवाल चौक से पकड़ा गया. पूछताछ में इन सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

पिता नहीं प्रेमी चाहिए था

आरोपियों के कब्जे से वारदात में इस्तेमाल मोटरसाइकिल व लाल रंग की स्कूटी के अतिरिक्त मृतक की स्पलैंडर मोटरसाइकिल, उस का पर्स, परिचय कार्ड व अन्य सामान बरामद हुआ, जबकि वारदात में इस्तेमाल किया गया हथियार बरामद करने के लिए इन का पुलिस रिमांड लेना पड़ा.

रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में कुलदीप की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह खून के रिश्तों को तारतार कर मर्यादाओं का गला घोंटने वाली एक ऐसी असभ्य और जिद्दी औरत की कहानी थी, जिस ने अपने प्रेमी से रिश्ता रखने के लिए अपने ही पिता का खून बहा दिया था.

कुलदीप अकसर शराब पी कर नशे में गीता व सुदीक्षा से मारपीट करता था. इस की वजह यह थी कि कुलदीप को बेटी और तरुण उर्फ तेजपाल के प्रेम संबंधों पर सख्त आपत्ति थी. वैसे तो उसे उन तमाम रिश्तों पर ऐतराज था, जो बेटी की पढ़ाई और उस के भविष्य के आडे़ आते थे.

वह नहीं चाहता था कि उस की बेटी तेजपाल से मेलमिलाप रखे. उस ने कई बार सुदीक्षा को मोबाइल पर बात करते हुए पकड़ लिया था और तैश में आ कर बेटी का मोबाइल भी तोड़ दिया था, जबकि गीता इस मामले में बेटी को ऊंचनीच समझाने की जगह उलटे उसी का साथ दिया करती थी.

इस का नतीजा यह निकला कि सुदीक्षा अपनी मां की शय पा कर दिनप्रतिदिन बिगड़ती चली गई और पिता पर हावी होने की कोशिश करने लगी, जो कुलदीप को कतई मंजूर नहीं था. इसलिए वह शराब पीने के बाद इस बात को ले कर पत्नी और बेटी से झगड़ा किया करता था.

उधर सुदीक्षा अपने प्रेमी तरुण को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं थी. वह हर समय अपने पिता को नीचा दिखाने के लिए योजनाएं बनाती रहती थी. इस बीच सुदीक्षा ने अपने पिता के बारे में गीता से कहना शुरू कर दिया कि उस का शराबी पिता उस पर बुरी नजर रखता है. वह कभी भी उस की इज्जत की धज्जियां उड़ा सकता है. पति की यह बात गीता को नागवार गुजरी और उस ने बिना विवेक से काम लिए बेटी की बातों पर विश्वास कर लिया और पति के कत्ल की साजिश रच डाली.

अपने बयानों में सुदीक्षा ने बताया कि उस के तेजपाल के साथ पिछले 3 सालों से प्रेम संबंध थे. तरुण की तरह सुदीक्षा भी प्राइवेट तौर पर बीए कर रही थी. पिता को रास्ते से हटाने के लिए गीता ने तेजपाल से बात की. तीनों ने मिल कर 3 महीने पहले अप्रैलमई में योजना तैयार की.

हिस्ट्रीशीटर से हुआ हत्या का सौदा

कुलदीप की हत्या के लिए पहले तेजपाल ने बीड़ा उठाया था. बीते जून महीने की 18 तारीख को वह पूरी तैयारी के साथ कुलदीप की हत्या करने के लिए उस के घर आया था, लेकिन एन मौके पर उस की हिम्मत जवाब दे गई. फलस्वरूप योजना धरी की धरी रह गई.

एक बार योजना नाकाम रहने पर गीता व सुदीक्षा ने तेजपाल के माध्यम से उस के दोस्त कुख्यात हिस्ट्रीशीटर सागर सूद उर्फ न्यूट्रन से मिल कर कुलदीप को कत्ल करने की बात की. फलस्वरूप कुलदीप की हत्या का सौदा ढाई लाख रुपए में तय हो गया. सागर सूद एलआईजी फ्लैट फेज-3 का रहने वाला था. उस पर लुधियाना के सराभा नगर व थाना डिवीजन नंबर-6 में हत्या के प्रयास, मारपीट, चोरी और अन्य संगीन धाराओं में कई मामले दर्ज थे.

आखिरी बार उसे हत्या के प्रयास के मामले में थाना सलेम टाबरी पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इस मामले में विशाल भी सह अभियुक्त था. सागर बीते मई महीने में जेल से बाहर आया था. जून में उस ने लुधियाना की एक युवती से प्रेम विवाह कर लिया था और उस के साथ चंडीगढ़ में रहने लगा था. तरुण से उस की पहले से ही दोस्ती थी.

नयानया विवाह हुआ था, न्यूट्रन को पैसों की सख्त जरूरत थी. यही सोच कर जब तरुण ने कुलदीप का कत्ल करने के लिए ढाई लाख रुपए देने की बात कही तो वह तुरंत तैयार हो गया. तरुण ने उसे 6 हजार रुपए एडवांस दे दिए. बाकी रकम काम करने के बाद देना तय हुआ. साथ ही यह भी तय हुआ कि कुलदीप को इस तरह मौत के घाट उतारा जाए ताकि उस की मौत प्राकृतिक लगे.

ऐसा इसलिए ताकि कुलदीप की मौत के बाद रेलवे की तरफ से मिलने वाला पैसा उस की पत्नी गीता को मिल जाए. उसी पैसे में से सुपारी के शेष पैसे देना तय हुआ. यह भी तय हुआ कि कत्ल के बाद घर में जो भी पैसा और कीमती सामान होगा, उसे कातिल अपने साथ ले जाएंगे.

सागर कुलदीप की हत्या की वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार हो गया और उस ने हत्या करने के लिए फूलप्रूफ योजना तैयार कर ली. न्यूट्रन ने इस वारदात को अंजाम देने के लिए अपने दोस्तों सागर ब्राह्मणिया, दीपक धालीवाल उर्फ दीपा व विशाल जैकप को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

एडवांस 6 हजार रुपए में से 8 सौ रुपए उस ने चंडीगढ़ से लुधियाना आने के लिए टैक्सी के किराए पर खर्च कर दिए, जबकि 12 सौ रुपए में लुधियाना बस अड्डे के पास अपनी नई पत्नी को होटल का कमरा किराए पर ले कर दिया था. इस के बाद एक वह और उस के दोस्त मोटरसाइकिल व स्कूटी पर सवार हो कर कुलदीप के घर पहुंचे.

कुलदीप की जिंदगी की आखिरी रात

आसपास घर होने के कारण न्यूट्रन पकडे़ जाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था, क्योंकि उस की नईनई शादी हुई थी. इसीलिए उस ने अपने दोस्तों को साथ मिलाया था. कुलदीप के घर का मुख्यद्वार गीता और सुदीक्षा ने पहले से ही खोल कर रखा था. जब ये लोग घर में दाखिल हुए तो कुलदीप बैडरूम में गहरी नींद सो रहा था.

न्यूट्रन और उस के साथियों ने कुलदीप को सोते वक्त दबोच लिया और उस का मुंह तौलिए से दबा कर गले के चुन्नी से घोंट दिया, जबकि 2 लोगों ने उस की टांगें और बाजू पकड़ रखे थे. इस बीच जब कुलदीप बेसुध हो गया तो जसकरण ने उस के दिल की धड़कन चैक की, जो चल रही थी. इस पर न्यूट्रन और विशाल ने साथ लाए तेजधार हथियारों से वार कर के उस की गरदन काट कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद ये लोग कुलदीप का पर्स, जिस में करीब 2000 रुपए थे, उस का पहचान पत्र, कमरे में रखे 2 मोबाइल फोन और मोटरसाइकिल ले कर भाग गए. कुलदीप का कत्ल करने के बाद सागर ने मोबाइल से इस की सूचना तरुण को दे दी.

तरुण ने मोबाइल पर यह बात सुदीक्षा को बता दी. योजना के अनुसार कुलदीप की हत्या होने की खबर मिलते ही दोनों मांबेटी ने सबूत मिटाने की कोशिश की. वे छत से नीचे आईं और खून से सने तौलिए व चुन्नी काले रंग की पोलीथिन में डाल कर पीछे के खाली प्लाट में फेंक दी, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. कुलदीप की पत्नी गीता पुलिस को दिए अपने बयान में बुरी तरह फंस गई थी. उस ने पुलिस को बताया था कि जब वह सुबह उठी तो सीढि़यों पर लगे दरवाजे की कुंडी उस ने ही खोली थी. जब वह नीचे आई तो घर के मेनगेट के लौक में अंदर से चाबी लगी हुई थी और वह खुला हुआ था.

इसी पर पुलिस को संदेह हुआ कि जब ऊपर से कोई नहीं आया तो मेन गेट का लौक किस ने खोला, जबकि कुलदीप का रूटीन था कि वह सोने से पहले मेन गेट लौक कर के चाबी को कुंडी पर टांग देता था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्तों का रेतीला महल : भाग 2

अगली सुबह यानी 20 जुलाई, 2018 की सुबह साढ़े 5 बजे उठ कर गीता छत से नीचे आई. यह उस का रोज का नियम था. नित्यकर्म से फारिग हो कर जब वह पति कुलदीप को जगाने उस के कमरे में की ओर जा रही थी, तभी अचानक उस की नजर खुले हुए मुख्य दरवाजे पर पड़ी, मुख्यद्वार खुला हुआ था.
वह तेजी से कुलदीप के कमरे की ओर लपकी. कमरे के भीतर का दृश्य देख कर उस की आत्मा तक कांप उठी. सामने बेड पर खून से लथपथ कुलदीप की लाश पड़ी थी.

गीता ने डर कर जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. उस के रोने चिल्लाने की आवाज सुन कर अड़ोसीपड़ोसी जमा हो गए. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन पर सूचना दी कि अजीत नगर की गली नंबर-3 के मकान नंबर-1715/21 ए में एक आदमी की हत्या हो गई है, जल्दी पहुंचें.
पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना संबंधित थाने हैबोवाल को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी परमदीप सिंह अपने सहायक पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

सुबह का समय था, दिन अभी पूरी तरह से नहीं निकला था. इस के बावजूद वहां अपेक्षा से अधिक भीड़ जमा थी. जहां हत्या हुई थी, वह 40 वर्षीय कुलदीप सिंह संघड़ उर्फ मोनू का था. हत्या भी उसी की हुई थी. थानाप्रभारी परमदीप सिंह ने घटनास्थल का मुआयना किया. कुलदीप की लाश कमरे में बैड पर पड़ी थी. उस की हत्या किसी तेजधार हथियार से गला रेत कर की गई थी. कटने पर गले से बहा खून बैड पर फैला हुआ था.

खून देख कर ऐसा लगता था, जैसे कुलदीप की हत्या कुछ घंटे पहले ही की गई हो, क्योंकि खून का रंग अभी तक लाल था, काला नहीं हुआ था. घनी आबादी वाली उस मध्यमवर्गीय परिवारों की कालोनी के एक मकान में इस तरह हत्या हो जाना आश्चर्य वाली बात थी.

मामले की गंभीरता को देखते हुए परमदीप सिंह ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम टीम को दे दी थी. सूचना मिलते ही लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी गुरप्रीत कौर पोरवाल, एसीपी (वेस्ट) गुरप्रीत सिंह, स्पैशल स्टाफ की टीम और क्राइम ब्रांच टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

डौग स्क्वायड भी मौके पर बुला लिया गया था. सब ने आते ही अपनाअपना काम शुरू कर दिया. घटनास्थल से कुछ फिंगरप्रिंट भी उठाए गए. खोजी कुत्ते ज्यादा मदद नहीं कर पाए. वह मृतक के कमरे से निकल कर आंगन में चक्कर लगाने के बाद बाहर सड़क पर आ कर रुक गए.

साथसाथ खाना खा कर  अलग सोए थे

थानाप्रभारी परमदीप सिंह को मृतक कुलदीप की 37 वर्षीय पत्नी गीता ने बताया कि कुलदीप ने रात को करीब साढे़ 9 बजे मेरे और 17 वर्षीय बेटी सुदीक्षा के साथ छत पर खाना खाया था. खाना खाने के बाद लगभग 10 बजे वह नीचे अपने कमरे में सोने चले गए थे. बाद में मैं ने नीचे आ कर घर का मुख्य द्वार बंद कर के ताला लगाया था, फिर मैं छत पर बेटी के साथ सोने चली गई थी.

रोज की तरह सुबह साढ़े 5 बजे जब मैं छत से उतर कर नीचे आई, तो मैं ने कुलदीप के कमरे में उन की लाश देखी. उस समय घर का मुख्य द्वार खुला हुआ था. यह देख मैं ने घबरा कर शोर मचा दिया. जिस से अड़ोसीपड़ोसी जमा हो गए. उन्हीं में से किसी ने पुलिस को फोन किया होगा.

मृतक कुलदीप के भाई हरदीप ने बताया कि वह रात के करीब साढे़ 9 बजे जब काम पर जा रहा था, तब भाईभाभी और सुदीक्षा छत पर बैठ कर खाना खा रहे थे. सुबह साढ़े 5 बजे मेरे दोस्त और पड़ोसी लाला ने फोन पर मुझे यह खबर दी. हरदीप ने यह भी बताया कि रात को रोजाना कुलदीप ही बाहर वाले मुख्य दरवाजे पर ताला लगाया करता था.

उस ने यह भी बताया कि कुलदीप को शराब पीने की आदत थी. अपनी ड्यूटी से आने के बाद वह सोने से पहले तक 1-2 घंटे घर पर ही बैठ कर शराब पीया करता था. हरदीप के अनुसार घर से उस के भाई की काले रंग की स्पलेंडर मोटर साइकिल और 2 फोन भी गायब थे, जिन में एक फोन ओप्पो कंपनी का था और दूसरा चाइनीज सेट था.

मृतक की बेटी सुदीक्षा ने अपने बयान में सिर्फ इतना ही बताया कि मां के रोने की आवाज सुन कर वह छत से नीचे आई थी.

बहरहाल सब थानाप्रभारी ने मृतक कुलदीप के भाई हरदीप के बयानों के आधार पर कुलदीप की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर लिया. प्राथमिक काररवाई कर के उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दी. इस हत्याकांड से पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया था.

पुलिस को नहीं मिला क्लू

खुद को हाईटेक सिस्टम से लैस बताने वाली लुधियाना पुलिस ने घटनास्थल की हाईटेक तरीके से ही जांच की थी. पुलिस की पूरी टीम ने डेढ़ से 2 घंटे में पूरे घटनास्थल की जांच की. अब तक की जांच पड़ताल में यह बात सामने आई कि कुलदीप के हत्यारे जो भी रहे हों, वह थे जानने वाले.
क्योंकि घटनास्थल से ऐसा कोई चिह्न नहीं मिला था, जिस से पता चलता कि हत्यारों ने घर में प्रवेश करने के लिए कोई जोर जबरदस्ती की हो. संभवत: कुलदीप की हत्या में किसी नजदीकी का हाथ था.

बहरहाल, परमजीत सिंह ने आगामी तफ्तीश शुरू करते हुए घटनास्थल के आसपास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की. मृतक की पत्नी गीता, बेटी सुदीक्षा और नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा कुलदीप के दोस्तों और सहकर्मियों से भी पूछताछ की गई. लेकिन परमदीप सिंह के हाथ ऐसा कोई सूत्र नहीं लगा जिसे कुलदीप की हत्या से जोड़ कर देखा जा सके.

पूछताछ के दौरान पड़ोसियों ने बताया था कि कुलदीप और उस की पत्नी गीता के बीच अकसर झगड़ा होता था. इस बारे में जब गीता से पूछा गया तो उस ने बताया कि कुलदीप अनुशासनप्रिय था. लेकिन शाम को थोड़ी पीने के बाद वह और भी ज्यादा अनुशासित हो जाता था. वह जब तब सुदीक्षा को ठीक से पढ़ने और कोई अधिकारी बनने के बारे में कहा करता था, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती थी.

बाहर से कौन और कैसे आया?

थानाप्रभारी परमदीप सिंह के लिए यह केस चुनौतीपूर्ण बन चुका था. उन्होंने एक बार फिर सारे घटनाक्रम का शुरू से अध्ययन किया. कत्ल के वक्त केवल मांबेटी ही घर पर थीं. पुलिस को यह बात खटक रही थी कि आखिर कातिल घर में दाखिल कैसे हुए. क्योंकि बिना फ्रैंडली एंट्री के घर में दाखिल होना संभव नहीं था.

वारदात के वक्त मृतक कुलदीप का छोटा भाई हरदीप भी अपनी ड्यूटी पर गया हुआ था. छानबीन में वह न केवल निर्दोष पाया गया, बल्कि उस के बयान ने पुलिस के शक की सुई मृतक की पत्नी गीता की ओर घुमा दी थी.

गीता ने बताया था कि खाना खाने के बाद उस ने खुद मुख्यद्वार बंद किया था. जबकि हरदीप का कहना था कि मुख्यद्वार उस का भाई कुलदीप ही बंद करता था. सोने से पहले कुलदीप को 5-7 मिनट टहलने की आदत थी. टहलने के बाद वह मुख्यद्वार बंद कर चाबी कमरे में खूंटी के पास लटका देता था ताकि सुबह गीता को चाबी ढूंढने में परेशानी न हो. सोचने वाली बात यह भी थी कि जब घर में 2 लोग मौजूद थे तो किसी तीसरे ने बाहर से आ कर कुलदीप की हत्या कैसे कर दी.

इस का मतलब घर का एक आदमी बाहर वाले से मिला हुआ था. या दोनों ही मिले हुए थे. अथवा दोनों ने ही मिल कर कुलदीप की हत्या की थी और मामले को लूटपाट का जामा पहना दिया गया था. जो भी खिचड़ी पकी थी, वह घर के अंदर ही पकी थी. यह बात जेहन में आते ही परमदीप सिह ने गीता और सुदीक्षा की पिछले एक हफ्ते की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर सामने आया जिस पर सुदीक्षा की बहुत बात होती थी. कई काल्स तो घंटे भर से भी ज्यादा की थीं और कई काल देर रात भी की गई थीं. यहां तक कि घटना वाली रात 19 जुलाई को थोड़ेथोड़े अंतराल से दोनों की उस समय तक बात होती रहती थी, जिस समय कुलदीप की हत्या की जा रही थी.

सोचने वाली बात यह थी कि क्या ऐसा संभव था कि नीचे वाले कमरे में लूटपाट के साथ किसी की हत्या की जा रही हो और ऊपर छत पर फोन पर बातें करने वाले को भनक तक ना लगे.
कोई खटका, कोई आहट सुनाई ना दे, ऐसा कैसे संभव था? यह बात परमदीप सिंह को हजम नहीं हो रही थी.

उन्होंने तत्काल उस नंबर के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक कीं तो पुलिस के कान खड़े हो गए. थोड़ी सख्ती करने पर सारी सच्चाई सामने आ गई. पुलिस ने सुदीक्षा के 21 वर्षीय प्रेमी तरुण उर्फ तेजपाल सिंह भाटी को हिरासत में ले लिया, जो हंबड़ा स्थित पंजपीर रोड के मेहर सिंह नगर का रहने वाला था. उस की मैडिकल शौप थी. वह बीए सैकेंड ईयर में पढ़ रहा था.

सपनों से सस्ता सिंदूर : भाग 1

31 वर्षीय कल्पना बसु कर्नाटक के जिला बेलगांव में आने वाले तालुका माहेर की रहने वाली थी. उस का जन्म एक मध्यवर्गीय किसान परिवार में हुआ था. उस के जन्म के कुछ दिनों पहले ही पिता का निधन हो गया था. मां ने मेहनतमजदूरी कर उसे पालापोसा. पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह ज्यादा पढ़ाईलिखाई भी नहीं कर पाई थी.

कल्पना खूबसूरत होने के साथसाथ महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह चाहती थी कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो उस की तरह हैंडसम हो और उस की भावनाओं की कद्र करते हुए सभी इच्छाओं को पूरा करे. लेकिन उस के इन सपनों पर पानी तब फिर गया जब उस की शादी एक ऐसे मामूली टैक्सी ड्राइवर बसवराज बसु के साथ हो गई, जो उस के सपनों के पटल पर कहीं भी फिट नहीं बैठता था.

38 वर्षीय बसवराज बसु उसी तालुका का रहने वाला था, जिस तालुका में कल्पना रहती थी. प्यार तो उसे बचपन से ही नहीं मिला था. उस के पैदा होने के बाद ही मांबाप दोनों की मौत हो गई थी. उसे नानानानी ने पालपोस कर बड़ा किया था. नानानानी की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह भी पढ़लिख नहीं सका. जिंदगी का बोझ उठाने के लिए जैसेतैसे वह टैक्सी ड्राइवर बन गया था. ड्राइविंग का लाइसैंस मिलने पर वह माहेर शहर आ कर कैब चलाने लगा. जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नातेरिश्तेदारों ने उस की शादी कराने की सोची. आखिरकार उस की शादी कल्पना से हो गई.

खुले विचारों वाली कल्पना से शादी कर के वह खुश था. लेकिन कल्पना उस से खुश नहीं थी. ड्राइवर के साथ शादी हो जाने से उस की सारी ख्वाहिशों और सपनों पर जैसे पानी फिर गया था. पति के रूप में एक मामूली टैक्सी ड्राइवर को पा कर उस के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए थे.

कुल मिला कर बसवराज बसु और कल्पना का कोई मेल नहीं था, लेकिन मजबूरी यह थी कि वह करती भी तो क्या. बसवराज बसु अपनी आमदनी के अनुसार पत्नी की जरूरतों को पूरी करने की कोशिश करता था, पर पत्नी की ख्वाहिशें कम नहीं थीं. उस की आकांक्षाएं ऐसी थीं, जिन्हें पूरा करना बसवराज के वश की बात नहीं थी. लिहाजा वह अपनी किस्मत को ही कोसती रहती.

समय अपनी गति से चलता रहा. कल्पना 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद कल्पना की जरूरतें और ज्यादा बढ़ गई थीं, जिन्हें बसवराज बसु पूरा नहीं कर पा रहा था. ऐसी स्थिति में कल्पना की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. उस का पति जब घर से टैक्सी ले कर निकलता था तो तीसरेचौथे दिन ही घर लौट कर आता था. घर आने के बाद भी वह कल्पना का साथ नहीं दे पाता था. ऐसे में कल्पना जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह जाया करती थी.

उड़ान के लिए कल्पना को लगे पंख

कल्पना खूबसूरत और जवान थी. बस्ती में ऐसे कई युवक थे, जो उस को चाहत भरी नजरों से देखते थे. एक दिन कल्पना के मन में विचार आया कि क्यों न ऐसे युवकों से लाभ उठाया जाए. इस से उस के सपने तो पूरे हो ही सकते हैं, साथ ही शरीर की जरूरत भी पूरी हो जाएगी.

यही सोच कर कल्पना ने उन युवकों को हरी झंडी दे दी. कई युवक उस के जाल में फंस गए. बच्चों के स्कूल और पति के काम पर जाने के बाद वह मौका देख कर उन्हें घर बुला कर मौजमस्ती करने लगी, साथ ही उन से मनमुताबिक पैसे भी लेने लगी.

कल्पना का रहनसहन और घर के बदलते माहौल को पहले तो बसवराज समझ नहीं सका, लेकिन जब सच्चाई उस के सामने आई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि जिस पत्नी को वह अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है, जिस के लिए वह रातदिन मेहनत करता है, उस के पीठ पीछे वह इस तरह का काम करेगी. उस ने यह भी नहीं सोचा कि दोनों बच्चों पर इस का क्या असर पड़ेगा.

मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर बसवराज बसु ने जब कल्पना को समझाना चाहा तो वह उस पर ही बरस पड़ी. उस ने पति को घुड़कते हुए कहा कि तुम्हारे और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद अगर मैं अकेली रहती हूं. ऐसे में अगर मैं किसी से दोचार बातें कर लेती हूं तो इस में बुरा क्या है. तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता तो मैं आत्महत्या कर लेती हूं.

कल्पना का बदला व्यवहार और माहौल देख कर बसवराज बसु यह बात अच्छी तरह से समझ गया कि कल्पना को समझानेबुझाने से कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए उस ने उस जगह को छोड़ देना ही सही समझा. वह पत्नी और बच्चों को ले कर बेलगांव शहर चला गया.

वहां बसवराज कुड़चड़े थाने के अंतर्गत आने वाले अनु अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. उस ने टैक्सी चलानी बंद कर दी और किसी की निजी कार चलाने लगा. उसे विश्वास था कि बेलगांव में रह कर पत्नी के आशिक छूट जाएंगे और वह सुधर जाएगी.

लेकिन बसवराज की यह सोच गलत साबित हुई. कल्पना चतुर और स्मार्ट महिला थी. बेलगांव आ कर वह और भी आजाद हो गई. यहां उसे न समाज का डर था और न गांव का. उस ने उसी अपार्टमेंट में रहने वाले पंकज पवार नाम के युवक को फांस लिया. पंकज एक निजी कंपनी में डाटा एंट्री औपरेटर था. वह मडगांव का रहने वाला था.

बसवराज की सोच हुई गलत साबित

31 वर्षीय पंकज पवार की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी थे. लेकिन वह कल्पना के लटकोंझटकों से बच नहीं सका. कल्पना से संबंध बन जाने के बाद पंकज पवार उस के फ्लैट पर आनेजाने लगा. एक दिन पंकज कल्पना से मुलाकात कराने के लिए अपने 3 दोस्तों सुरेश सोलंकी, अब्दुल शेख और आदित्य को भी साथ ले आया. पहली ही मुलाकात में ही कल्पना ने उस के तीनों दोस्तों पर ऐसा जादू किया कि वे भी उस के मुरीद हो गए. उन तीनों से भी कल्पना के संबंध बन गए.

कुछ ही दिनों में कल्पना के यहां आने वाले युवकों की संख्या बढ़ने लगी. धीरेधीरे कल्पना के कारनामों की जानकारी इलाके भर में फैल गई. उस की वजह से बसवराज बसु की ही नहीं, बल्कि पूरे मोहल्ले की बदनामी होने लगी. ऐसे में बसवराज का वहां रहना मुश्किल हो गया. दोनों बच्चे अब काफी बड़े हो गए थे. बसवराज बसु ने अपने बच्चों के भविष्य के मद्देनजर कल्पना को काफी समझाया, लेकिन अपनी मौजमस्ती के आगे उस ने बच्चों को कोई अहमियत नहीं दी.

सपनों से सस्ता सिंदूर : भाग 2

कल्पना पर जब पति के समझाने का कोई असर नहीं हुआ तो वह उसे छोड़ कर वहीं पर जा कर रहने लगा, जहां वह नौकरी करता था. इस के बावजूद वह अपनी पूरी पगार ला कर कल्पना को दे जाता था.
हालांकि कल्पना के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. बसवराज बसु के जाने के बाद वह और भी आजाद हो गई थी. वह अपने चारों दोस्तों के साथ बारीबारी से घूमतीफिरती और मौजमजा करती. इस के अलावा वह उन से अच्छीखासी रकम भी ऐंठती थी. वह पूरे समय अपने रूपयौवन को सजानेसंवारने में लगी रहती थी. यहां तक कि अब वह घर पर खाना तक नहीं बनाती थी. खाना पकाने के लिए उस ने अपने प्रेमी अब्दुल शेख की पत्नी सिमरन शेख को सेवा में रख लिया था.

2 अप्रैल, 2018 को बसवराज बसु की जिंदगी का आखिरी दिन था. एक दिन पहले उसे जो पगार मिली थी, उसे पत्नी को देने के लिए वह 2 अप्रैल को दोपहर में फ्लैट पर पत्नी के पास पहुंचा. घर का जो माहौल था, उसे देख कर उस का खून खौल उठा. कल्पना ने बेशरमी की हद कर दी थी. वहां पर सुरेश सोलंकी, आदित्य और अब्दुल शेख जिस अवस्था में थे, उसे देख कर साफ लग रहा था कि कल्पना उन के साथ क्या कर रही थी. यह देख कर बसवराज का खून खौल गया.

वह पत्नी को खरीखोटी सुनाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हें खर्चे के लिए पैसे देने के लिए आता हूं. लेकिन तुम्हारा यह घिनौना रूप देख कर तुम्हें पैसा देने और यहां आने का मन नहीं होता. लेकिन बच्चों के लिए यह सब करना पड़ता है.’’

बसवराज की मौत आई रस्सी में लिपट कर

पति की बात सुन कर कल्पना डरी नहीं बल्कि वह भी उस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘तो मत आओ. मैं ने तुम्हें कब बुलाया और पैसे मांगे. तुम क्या समझते हो, मेरे पास पैसे नहीं हैं? तुम कान खोल कर सुन लो, मैं जिस ऐशोआराम से रह रही हूं, वह तुम्हारे पैसों से नहीं मिल सकता. तुम्हारी पूरी पगार से तो मेरा शैंपू ही आएगा. रहा सवाल बच्चों का तो उन की चिंता तुम छोड़ दो.’’

कल्पना की यह बात सुन कर बसवराज बसु को जबरदस्त धक्का लगा. इस के बाद पतिपत्नी के बीच झगड़ा बढ़ गया. तभी गुस्से में आगबबूला कल्पना ने अपने तीनों प्रेमियों को इशारा कर दिया. कल्पना का इशारा पाते ही उस के तीनों प्रेमियों ने मिल कर बसवराज बसु को पीटपीट कर बेदम कर दिया.
शारीरिक रूप से कमजोर बसवराज बसु बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया. उसी समय अब्दुल शेख की बीवी सिमरन भी वहां आ गई. तभी कल्पना के घर के अंदर बंधी नायलौन की रस्सी खोल कर बसवराज के गले में डाल कर पूरी ताकत से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई. यह देख कर सिमरन सहम गई.

टुकड़ों में बंट गया पति

अब्दुल शेख और कल्पना ने सिमरन को धमकी दी कि अपना मुंह बंद रखे. अगर मुंह खोला तो उस का भी यही हाल होगा. डर की वजह से सिमरन चुप रही. कल्पना और उस के प्रेमियों का गुस्सा शांत हुआ तो वे बुरी तरह घबरा गए. हत्या के समय पंकज वहां नहीं था.

थोड़ी देर सोचने के बाद कल्पना और उस के प्रेमियों ने बसवराज बसु की लाश ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. कल्पना ने शव ठिकाने लगवाने के मकसद से पंकज को फोन कर के बुला लिया. लेकिन पंकज को जब हत्या का पता चला तो वह घबरा गया. पहले तो पंकज ने इस मामले से अपना हाथ खींच लिया, लेकिन अपनी प्रेमिका कल्पना को मुसीबत में घिरी देख कर वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया.
चारों ने मिल कर बसवराज बसु के शव को बाथरूम में ले जा कर उस के 3 टुकड़े किए और उन टुकड़ों को कपड़ों में लपेट कर प्लास्टिक की 3 बोरियों में भर दिया. मौका देख कर उसी रात 12 बजे इन लोगों ने तीनों बोरियों को अब्दुल शेख की कार की डिक्की में रख दिया. इस के बाद ये लोग कुड़चड़े महामार्ग के अनमोड़ घाट गए और उन बोरियों को एकएक किलोमीटर की दूरी पर घाट की घाटियों में दफन कर के लौट आए.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे इस हत्याकांड के सभी अभियुक्त बेखबर होते गए. उन का मानना था कि इस हत्याकांड से कभी परदा नहीं उठेगा और उन का राज राज ही रह जाएगा. लेकिन वे यह भूल गए थे कि उन के इस राज की साक्षी अब्दुल शेख की बीवी सिमरन शेख थी, जिस की आंखों के सामने बसवराज बसु की हत्या का सारा खेल खेला गया था. वह इस राज को अपने सीने में छिपाए हुए थी.
पता नहीं क्यों सिमरन को हत्या में शामिल लोगों से डर लगने लगा था. यहां तक कि अपने पति से भी उस का विश्वास नहीं रहा. उसे ऐसा लगने लगा जैसे उस की जान को खतरा है. वे लोग अपना पाप छिपाने के लिए कभी भी उस की हत्या कर सकते हैं. इस डर की वजह से सिमरन शेख बेलगांव की जानीमानी पत्रकार ऊषा नाईक देईकर से मिली और उस ने बसवराज बसु हत्याकांड की सारी सच्चाई बता दी.

आखिर राज खुल ही गया

बसवराज बसु की हत्या की सच्चाई जान कर ऊषा नाईक के होश उड़ गए. उन्होंने सिमरन शेख को साहस और सुरक्षा का भरोसा दे कर मामले की सारी जानकारी बेलगांव कुड़चड़े पुलिस थाने के थानाप्रभारी रवींद्र देसाई और उन के वरिष्ठ अधिकारियों को दी. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में थानाप्रभारी रवींद्र देसाई ने अपनी जांच तेजी से शुरू कर दी.

उन्होंने 24 घंटे के अंदर बसवराज बसु हत्याकांड में शामिल कल्पना बसु के साथ पंकज पवार, अब्दुल शेख और सुरेश सोलंकी को गिरफ्त में ले कर वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश किया, जहां सीपी अरविंद गवस ने उन से पूछताछ की. पुलिस गिरफ्त में आए चारों आरोपी कोई पेशेवर अपराधी नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

9 मई, 2018 को उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस अनमोड़ घाट की उस जगह पर ले कर गई, जहां उन्होंने बसवराज बसु के शव के टुकड़े दफन किए थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने शव के तीनों टुकड़ों को बरामद कर लिया. घटना के समय बसवराज जींस पैंट पहने हुए था. उस की पैंट की जेब में उस का ड्राइविंग लाइसेंस मिला, जिस से यह बात सिद्ध हो गई कि शव बसवराज का ही था. शव को कब्जे में लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मडगांव के बांबोली अस्पताल भेज दिया.

पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कल्पना बसु, पंकज पवार, सुरेश सोलंकी और अब्दुल शेख से विस्तृत पूछताछ कर के उन के विरुद्ध भांदंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. फिर चारों को मडगांव मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इस हत्याकांड का एक आरोपी आदित्य गुंजर फरार था, जिस की पुलिस बड़ी सरगरमी से तलाश कर रही थी.

छीन ली सांसों की डोर : भाग 3

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थी.

उस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत

प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैं ने कहा न, मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

रागिनी की बातें नीरज के दिल को लग गई थी. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब दे सकती है. रागिनी की बातों से उसे काफी गहरा आघात पहुंचा था. चूंकि मामला उस के भाई के प्यार से जुड़ा हुआ था इसलिए उस ने रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी लिया था. उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन नीरज ये बात अपने तक सीमित नहीं रख सका.

उस ने घर जा कर यह बात प्रिंस से बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा कि रागिनी की ऐसी मजाल जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. अगर वो मेरे प्यार को ठुकरा सकती है तो मैं भी उसे जीने नहीं दूंगा. अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

society

प्रिंस के गुस्से को नीरज और उस के दोस्तों ने और हवा दे दी थी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस ठुकराए जाने के बाद एकदम फिल्मी खलनायक बन गया था.

उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती थी, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ मिल कर अश्लील शब्दों की फब्तियां कस कर उसे जलील करता, उसे छेड़ता रहता था. और तो और वह दोस्तों को ले कर उस के घर तक धमकाने के लिए पहुंच जाता था.

लिख दिया मौत का परवाना

प्रिंस के इस रवैये से उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया था. उस ने स्कूल जाना भी  बंद कर दिया था. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में बैठ गया था. जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी ने पिता जितेंद्र दुबे ने बांसडीह रोड थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत की.

लेकिन प्रधान कृपाशंकर की राजनैतिक पहुंच की वजह से मामला वहीं रफादफा हो गया था. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. वह सोचता था कि जितेंद्र दुबे ने उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने की जुर्रत कैसे की.

बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को ले कर जितेंद्र दुबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर स्कूल पढ़ने गई तो वो दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा.

इस की धमकी के बाद रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया. वह कई महीनों तक स्कूल नहीं गई.

इस वर्ष उस का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को रागिनी के आने की खबर मिल गई और उस ने उस का गला रेत कर हत्या कर दी.

बहरहाल, पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को तो गिरफ्तार कर लिया. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार होने में कामयाब हो गए. आरोपियों को गिरफ्तार करने को ले कर मृतका की बड़ी बहन नेहा तिवारी सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्ट्रेट परिसर पहुंची और धरने पर बैठ गई.

उन लोगों ने परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. तब कहीं जा कर बाकी के आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.

कथा लिखे जाने तक पांचों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. होनहार बेटी की मौत से पिता जितेंद्र दुबे काफी दुखी हैं. उन्होंने शासनप्रशासन से गुहार लगाई है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकारें यदि बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकतीं तो उन्हें पैदा होने से पहले ही कोख में मार देने की इजाजत दे दें, ताकि बेटियों को ऐसी जिल्लत और जलालत की मौत रोजरोज न मरना पड़े.        ?

  – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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