किसी को आभिजात्य तरीके से बेज्जत करने के लिए अपरिपक्व से बेहतर कोई दूसरा शब्द डिक्शनरी में हो भी नहीं सकता. नादान, नासमझ अनुभवहीन, बच्चा या कम बुद्धि वाला राहुल गांधी को कहतीं तो यह बात दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के व्यक्तित्व से न तो मेल खाती और न ही उस पर इतना ध्यान दिया जाता जितना कि दिया जा रहा है. एक वक्त में नेहरू-गांधी परिवार के सामने सर झुकाये हाथ बांधे अर्दलियों की तरह खड़ी रहने बाली शीला दीक्षित में एकाएक ही इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि वे राहुल गांधी को घुमा फिराकर ही सही पप्पू कह बैठीं, यह कोई शोध का विषय नहीं है. यह बड़ी कड़वी हकीकत है कि राहुल-सोनिया गांधी की अनदेखी उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी जिसके चलते महज ध्यान बटाने के लिए शीला दीक्षित ने एक गैर जरूरी बात कह डाली जिसका न मौसम था, न मौका था और न ही कांग्रेस में दस्तूर है.

बात अब बाजार में आ ही गई है तो तय है बहुत दूर तक जाएगी. मुमकिन है दो-चार और बूढ़े कांग्रेसी अपनी विदाई या सन्यास की स्क्रिप्ट इस तरह लिखना पसंद करें. ये शीला की तरह ही वे लोग होंगे जो हिम्मत हार बैठे हैं और उन्हें समझ आ गया है कि अब कांग्रेस में रहते सत्ता की मलाई पहले की तरह चांदी की कटोरी में रखी नहीं मिलने वाली बल्कि अब खुद मेहनत कर अपनी जमीन और जनाधार बनाना होगा जो इस पकी उम्र और परिपक्वता की स्थिति में इनसे तो होने से रहा.

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