संसद में गीतकार जावेद अख्तर ने अपनी विदाई में दिए लंबेचौड़े जज्बाती भाषण में भारत माता की जय बोल कर धर्मभक्ति को देशभक्ति का जामा पहनाने वालों का समर्थन कर ऐसे तत्त्वों को बढ़ावा ही दिया है. कन्हैया कुमार को सिर्फ इसलिए राष्ट्रद्रोही करार दिया जाता है क्योंकि उस ने हिंदूवादियों की असली मंशा पर वैचारिक प्रहार किया. भारत माता कौन है और कैसी दिखती है, इस का ठीकठाक जवाब शायद ही कोई इतिहासकार, विचारक, दार्शनिक, साहित्यकार या कोई और दे पाए. लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारत माता शब्द जेहन में आते ही एक महिला की जो तसवीर दिमाग में बनती है वह हिंदू देवियों से मेल खाती हुई होती है. जिस के चार हाथ हैं, माथे पर मुकुट है, वह केसरिया या सफेद साड़ी पहनती है, शेर पर सवार है और उस का एक हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है.

हिंदू देवियों दुर्गा, पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी का मिश्रण लगती भारत माता के हाथ में त्रिशूल की जगह तिरंगा झंडा है लेकिन उस के गहने, मसलन गले का हार परंपरागत हिंदू देवियों सरीखा है. यानी भारत माता हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करती एक आकृति है जिस के कुछ मंदिर भी देश में हैं. भारत माता की जय और हरहर महादेव व जयजय श्रीराम या फिर राधेराधे कहने में सैद्धांतिक तौर पर कोई खास फर्क मानसिक या वैचारिक स्तर पर नहीं है सिवा इस के कि भारत माता का जिक्र कहीं वेद, पुराणों या दूसरे धर्मग्रंथों में नहीं है, न ही घरों में उस की धार्मिक तौर पर पूजापाठ होती है. उस के लिए व्रत भी नहीं रखा जाता, न ही दानदक्षिणा का अभी तक कोई विधान है.

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