टूरिज्म किसी भी देश के लिए आय और नौकरी पैदा करने का बढि़या जरिया होता है. इन दिनों भारत में विलेज टूरिज्म का चलन खूब बढ़ रहा है. अब टूरिस्ट किसी विशेष जगह की संस्कृति, खानपान और रहनसहन को जानने में दिलचस्पी रख रहे हैं. ऐसे में वहां के लोकल लोगों के लिए यह सुनहरे अवसर से कम नहीं. 30 साल मर्चेंट नेवी में नौकरी करने के बाद आलोक कपूर ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के सुजौलियां गांव में 4 एकड़ जमीन पर ‘आलोक फार्म विलेजर रीट्रिट’ नाम से अपना रिसोर्ट खोला है.

लखनऊ-सीतापुर मार्ग से 3 किलोमीटर अंदर सुजौलियां गांव जाना पड़ता है. इस में 8 कौटेजनुमा कमरे बने हैं. इस के साथ ही साथ रिसोर्ट में फलदार पेड़ हैं जो अलगअलग वैराइटी के हैं. इन में काला आम, सफेद जामुन जैसी किस्में हैं. यहां ‘मडबाथ’ के लिए मुलतानी मिट्टी का तालाब बनाया गया है. जिस में ‘मडबाथ’ ले सकते हैं. स्किन के लिए इस को लाभकारी माना जाता है. आने वालों के मनोरंजन और खेल के लिए यहां एक साइकिल ट्रैक है. जिस के लिए साइकिल भी यहां पर मिलती है. यहां खेत से निकले गन्ने का रस पी सकते हैं. इस के लिए खेत से गन्ना तोड़ने, उस को साफ करने और कोल्हू से गन्ने का रस निकालने जैसे मजेदार काम भी कर सकते हैं.

यहां खेतों में कई तरह की और्गेनिक खेती होती है. इस से तैयार पैदावार भी ले सकते हैं. क्रिकेट से ले कर गिल्लीडंडा तक खेलने के साधन हैं. नदीनुमा एक स्विमिंग पूल है, जिस में साफ और क्लोरिनमुक्त पानी होता है. आलोक फार्म में डे पिकनिक के साथ ही साथ घूमने वाले यहां रात में रुक भी सकते हैं. यहां कई तरह से छोटे फंक्शन भी आयोजित होते हैं. डैस्निशन वैडिंग भी यहां पर की जाती है. अलगअलग तरह के पक्षी कलरव करते हैं तो अलग ही आनंद आता है. आलोक कपूर कहते हैं, ‘‘हम इस को आगे बढ़ाना चाहते हैं और गांव के लोगों को रोजगार भी देना चाहते हैं. अभी भी यहीं गांव के लोग काम करते हैं. हम खाने में लोकल फूड और आने वालों की पसंद का खयाल रखते हुए भोजन तैयार कराते हैं. यहां का पैकेज लोगों की सुविधा के अनुसार तय कर लेते हैं.

हम इस के प्रचार के लिए सोशल मीडिया और वैबसाइट का सहारा लेते हैं.’’ उत्तर प्रदेश में विलेज टूरिज्म का चलन अभी नया है. यह तेजी से बढ़ रहा है. हर जिले और आसपास की जगह पर ऐसे विलेज स्पौट मिल जाएंगे जहां पर्यटकों के लिए सुविधाएं दी जा रही हैं. जिन प्रदेशों में पर्यटक अधिक जाते हैं वहां यह कल्चर पहले से ही विकसित है. हमारे देश में अभी तक पहाड़ों पर सब से अधिक घूमने वाले लोग जाते हैं. इस वजह से पहाड़ों पर इस तरह के ‘होम स्टे’ हैं. पहाड़ों में होम स्टे भी विलेज टूरिज्म जैसे होते हैं. बजटफ्रैंडली होता है होम स्टे सिराज टूर्स की डायरैक्टर हिना सिराज कहती हैं, ‘‘होम स्टे उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी होता है जो ग्रुप में पर्यटन करने के लिए जाते हैं. विदेशों से आने वाले पर्यटक इस को खासतौर से पसंद करते हैं.

कारण यह होता है कि ये लोग लंबे समय तक रुकना चाहते हैं. इन के लिए होम स्टे बजट के हिसाब से बेहतर होता है.’’ हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर, राजस्थान और गोवा में ऐसे होम स्टे बहुत हैं. ये शहर से दूर होते हैं. कई लोगों ने अपने घर के कुछ हिस्से को होम स्टे बनाया है तो कुछ लोगों ने अपने पूरे के पूरे घर को ही होम स्टे बना दिया है.’’ हिना बताती हैं, ‘‘मसूरी, कौसानी, औली, कुफरी, कूल्लू, मनाली, रोहतांग, नैनीताल, अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी इलाकों के साथ ही गोवा में भी यह काफी मशहूर है. रशियन पर्यटकों के बीच यह बहुत फेमस है. गोवा में अपार्टमैंट से ले कर विला तक होम स्टे के लिए उपलब्ध हैं. पणजी के आसपास ऐसे होम स्टे बहुत हैं.

इन का प्रयोग वे लोग ज्यादा करते हैं जो लंबे समय तक इन इलाकों में रहना चाहते हैं और बजट को देखते हैं. शहर से बाहर होने के कारण यहां शांत माहौल रहता है. जो लोगो को पसंद आता है. वे शहर की भीड़भाड़ से दूर घूमने का आंनद लेते हैं.’’ मिलता है लोकल माहौल बढ़ते शहरीकरण के चलते लोगों का क्रेज गांव को देखने व सम?ाने का होने लगा है. इस के चलते ही ग्रामीण टूरिज्म बढ़ने लगा है. अब लोग घूमने वाली जगहों पर जाते हैं तो मुख्य स्थल पर न रुक कर आसपास के गांवों में बने रिसोर्ट या होटलों में रहते हैं. इस के कई लाभ हैं. एक तो यहां शहरों जैसी भीड़ नहीं होती, दूसरे, यहां का हराभरा प्राकृतिक माहौल पंसद आता है, ताजा और स्वादिष्ठ खाना मिलता है. आसपास गांव जैसा माहौल मिलता है जो मन को सुकून देता है. सब से बड़ी बात शहरों के मुकाबले यहां कम खर्च होता है. ऐसे में फैमिली और दोस्तों के साथ यहां घूमना मजेदार होता है.

जब शहर या बड़े होटल में रुकते हैं तो वहां का खानपान और बाकी माहौल शहरी सुविधाओं वाला होता है. इस कारण होटल को छोड़ लोग रिसोर्ट में रुकने लगे. समय के साथ ही रिसोर्ट भी काफी बदल गए हैं. वे भी फाइवस्टार होटल जैसे हो गए हैं. यहां आप को लोकल माहौल देखने को नहीं मिलता है. ऐसे में अब होम स्टे का चलन बढ़ गया है. यह सस्ता होने के साथ ही आसपास के माहौल को सम?ाने का मौका भी देता है. ज्यादातर विदेशी पर्यटक लंबे समय और शहर, गांव या पर्यटक स्थल को सही से सम?ाना चाहते हैं, इसलिए वे होम स्टे को ज्यादा पसंद करते हैं.

जो लोग ग्रुप में घूमने जाते हैं वे भी इन्हीं जगहों को पसंद करते हैं. लखनऊ की गोमती नदी के किनारे गांव की तरफ ड्रीमवैली पार्क बना है. जो पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल में है. यहां भी पर्यटक आते हैं. नैचुरोपैथी का यह सैंटर विकसित हो रहा है. इस के डायरैक्टर राजेश राय कहते हैं, ‘‘हमारा प्रयास है कि अगर पर्यटक यहां आता है तो उसे प्राकृतिक माहौल का आनंद मिलना चाहिए. यहां गाय हैं. दूसरे पशुपक्षी हैं. इस से छोटे चिडि़याघर का एहसास होता है. नाव, बैलगाड़ी और ऊंट की सवारी का भी आनंद लिया जा सकता है. किसान पथ के पास गोमती नदी के ऊपर से शारदा नहर निकलती है, जिस से यहां का नजारा और भी अधिक खूबसूरत हो जाता है. बढ़ रहा होम स्टे का दायरा हिना सिराज कहती हैं, ‘‘अधिकतर लोग शांत माहौल में छुटिट्यां गुजारने के लिए आते हैं.

गरमी की बात करें या सर्दी की, हर मौसम में अच्छे पर्यटक स्थलों पर इतनी भीड़ होती है कि वहां होटल मिलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में हम पर्यटकों को आसपास की ऐसी जगहों की जानकारी देते हैं जहां अच्छा होम स्टे मिल जाता है. वहां का माहौल भी शांत रहता है. घूमने वाले को कम बजट में यह मिल जाता है.’’ ‘‘इस से होम स्टे चलाने वाले परिवारों को अतिरिक्त आमदनी हो जाती है. होम स्टे चलाने वाले लोग पर्यटक की अच्छी मेहमाननवाजी करते हैं. अब होम स्टे को ले कर घूमने वाले खुद ही जानकार हो गए हैं. वे पहले से ही इस को सोच कर चलते हैं.’’ पहले जो होम स्टे चलाने का काम पहाड़ पर लोग करते थे वही काम अब मैदानी इलाकों में भी होने लगा है. अब यहां लोगों ने अपने फार्महाउस को ही रिसोर्ट बनाना शुरू कर दिया है. वहीं सरकार ने इस को बढ़ावा देने के लिए विलेज टूरिज्म का नाम दे दिया है. उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है. सरकार से अलग कई लोगों ने अपने लैवल पर इस कारोबार को बढ़ाना शुरू कर दिया है.

राजस्थान में वहां के महल और हवेलियों को पर्यटकों के लिए खोला गया. अब उत्तर प्रदेश भी इस प्रयोग को दोहराना चाहता है. हर प्रदेश इस तरह के प्रयोग अपनेअपने स्तर पर कर रहा है. जैसेजैसे आनेजाने के साधन और सड़कें अच्छी होने लगी हैं, एक जगह से दूसरी जगह की दूरी कम होने लगी है, पर्यटन एक नए कारोबार की तरह से बढ़ने लगा है. ऐसे में अब प्रदेश इस कारोबार से जुड़ कर अपनी आमदनी को बढ़ाना चाहता है. होम स्टे या विलेज टूरिज्म इस का मुख्य आधार बनने लगा है. इस से गांव के लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी जो गांवों को स्मार्ट विलेज बनाएगी. द्य बड़ा इमामबाड़ा और भूलभुलैया लखनऊ की सब से प्रसिद्ध घूमने वाली जगह बड़ा इमामबाड़ा है. इस बिल्ंिडग के एक हिस्से को भूलभुलैया के नाम से जाना जाता है. इस भूलभुलैया में प्रवेश करने के लिए 1,024 द्वार हैं लेकिन बाहर वापस निकलने के लिए सिर्फ 2 रास्ते हैं. यह इसलाम धर्म के अनुयायियों के लिए प्रसिद्ध स्थल है जहां हर साल मोहर्रम के दिनों में बड़ी संख्या में लोग इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाने के लिए आते हैं.

आज भले ही इस के ज्यादातर हिस्से खंडहर में तबदील हो चुके हैं परंतु इस ऐतिहासिक स्थल का भ्रमण करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह मुगल वास्तुकला इंजीनियरिंग का एक जीताजागता उदाहरण है. इस की संरचना किसी धातु या लकड़ी के बिना की गई. इतिहास को सम?ाने वाले इस खूबसूरत भवन को जरूर देखते हैं. इस का निर्माण 1754 में मजदूरों को रोजगार देने के उद्देश्य से नवाब आसफुद्दौला द्वारा करवाया गया था. इसे बनाने में 14 साल का समय लग गया था. लखनऊ के बड़ा इमामबाड़ा के साथ ही साथ रूमी दरवाजा, बावली, गार्डन, भूलभुलैया, घंटाघर और पिक्चर गैलरी भी देख सकते हैं. द्य गोवा के समुद्री तट भारत में अगर समुद्री तटों का कहीं दिल खोल कर मजा लिया जा सकता है तो वह है गोवा, जहां के बीचेस की खूबसूरती देखते ही बनती है.

वहां छोटेबड़े मिला कर कुल 40 बीच हैं. यह ऐसा राज्य है जहां सब से अधिक विदेशी पर्यटक घूमने जाते हैं. इन बीचेस में खूब सारी एक्टिविटीज हैं जो सिर्फ समुद्री तटों पर एंजौय कर सकते हैं, जैसे सनबाथ, जेटस्की, पैरासेलिंग आदि. गोवा क्षेत्रफल में भारत का सब से छोटा और जनसंख्या में चौथा सब से छोटा राज्य है. पूरी दुनिया में गोवा अपने समुद्र के किनारों के लिए जाना जाता है. गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था. पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया और 19 दिसंबर, 1961 में इसे भारतीय प्रशासन को सौंपा गया.

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