अकसर लोग अपने शरीर और आसपास के माहौल पर रसायनों यानी कैमिकल्स से पड़ने वाले बुरे असर की अनदेखी कर देते हैं, जबकि यह साबित हो चुका है कि कीटनाशकों के संपर्क में रहने वालों में बांझपन यानी औलाद का न होने का खतरा उन से अधिक होता है, जो कीटनाशकों से दूर रहते हैं. लेकिन कीटनाशकों से दूर रहने वाले भी बांझपन के शिकार हो सकते हैं और इस का कारण है हमारा असुरक्षित भोजन, क्योंकि हम अपने भोजन में शामिल फलों और सब्जियों के जरीए यूरिया ग्रहण करते हैं.

गर्भावस्था यानी प्रैगनैंसी के दौरान गर्भवती के आहार में फल और सब्जियां बेहद जरूरी हैं, क्योंकि इन में खनिज पदार्थ भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. कई शोधों में पाया गया है कि यदि प्रैगनैंसी के उपचार से गुजर रही महिलाएं ऐसे फलों और सब्जियों का सेवन करती हैं, जिन में कीटनाशकों के अंश बचे हों तो उन के गर्भवती होने की उम्मीद कम हो जाती है और गर्भावस्था संबंधी परेशानियां पैदा होने का बड़ा खतरा पैदा हो जाता है.

दरअसल, कीटनाशक फलों और सब्जियों को चूहों और कीटों आदि से बचाने के लिए फसल पर छिड़के जाते हैं. ये कीटनाशक 2 तरह के होते हैं, रसायनिक और जैविक. जहां रसायनिक कीटनाशी कृत्रिम रूप से तैयार किए जाते हैं, वहीं जैविक कीटनाशी उस प्राकृतिक सामग्री से तैयार किए जाते हैं, जो विभिन्न पौधों, कीटों और कुदरती रूप से मिलने वाले तत्त्वों से प्राप्त होती है.

इन रसायनों से सीधे तौर पर वे लोग प्रभावित होते हैं जो इन के संपर्क में आते हैं. मसलन, रसायन उद्योगों में काम करने वाले जो इन्हें तैयार करते हैं या फिर वे किसान जो खेतों में इन का प्रयोग करते हैं. हालांकि जो लोग सीधे तौर पर इन कीटनाशकों के संपर्क में नहीं होते हैं उन पर भी रसायनयुक्त फल और सब्जियां खाने पर रसायनों का बुरा असर पड़ता है.

गर्भधारण की संभावना 30 फीसदी तक कम

दुनियाभर के शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था पर कीटनाशकों के प्रभाव जानने के लिए कई शोध किए, जिन में पाया गया कि उच्च मात्रा में कीटनाशक युक्त फल और सब्जियां खाने वाली महिलाओं में गर्भवती होने की संभावना 30 फीसदी तक घट गई. इस के अलावा 40 फीसदी मामले ऐसे थे, जिन में इन रसायनों के कारण गर्भपात के हालात भी बने.

पुरुष भी हो सकते हैं शिकार

कीटनाशकों के कारण न केवल महिलाओं पर, बल्कि पुरुषों की प्रजनन यानी औलाद पैदा करने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है. पुरुषों में अंग में तनाव न रहने की समस्या भी कुछ अरसे से तेजी से बढ़ी है.

कई शोधों के अनुसार 40 साल से ज्यादा उम्र के करीब 55 फीसदी पुरुष अंग में तनाव न आने की परेशानी से गुजर रहे हैं. और इस परेशानी के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल को जिम्मेदार ठहराया गया है.

दरअसल, इन कीटनाशकों में मौजूद रसायन शरीर में पैदा होने वाले एक रसायन ऐसिटाइलकोलिनएस्टरेज के निर्माण को रोक देता है. यह एक ऐंजाइम है जो दिमाग में मौजूद रसायनिक संदेशवाहक के रूप में कार्य करने वाले न्यूरोट्रांसमीटर्स के साथ उन संवेगों का आदानप्रदान करता है, जो अंग में तनाव लाते हैं.

रसायनिक कीटनाशकों का पुरुष पर शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में कमी, लड़कियों में समयपूर्व यौवन आना, जन्मजात दोष, गर्भपात और मृत बच्चे को जन्म देने जैसे और भी कई दुष्परिणाम सामने आते हैं.

जन्मजात दोष भी हो सकते हैं

ये रसायन जीवनभर शरीर पर असर डालते रहते हैं. ये प्रजनन प्रणाली को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. कुछ रसायन कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करते हैं तो कुछ उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देते हैं. इन के कुप्रभाव इतने अधिक मजबूत और स्थायी होते हैं कि डीएनए का ढांचा तक बदल सकते हैं. इस के परिणामस्वरूप अगली पीढ़ी प्रजनन संबंधी परेशानियों या कई जन्मजात कमियों के साथ जन्म लेती है.

– डा. अनुजा सिंह, गायनेकोलौजिस्ट ऐंड आईवीफ एैक्सपर्ट, इंदिरा आईवीफ हौस्पिटल, पटना

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