‘‘अरे, तुम्हारा फोन कितनी देर से बिजी आ रहा था, किस से बात कर रही थी?’’

‘‘अपनी छोटी ननद से.’’

‘‘क्यों, अभी 2 दिनों पहले भी तुम ने यही बताया था कि ननद से बात कर रही थी.’’

‘‘हां, उस दिन बड़ी ननद से बात कर रही थी.’’

‘‘पर इतनी बात क्यों करती हो ससुराल वालों से?’’

‘‘अरे, तुम्हें बताया तो था कि मेरे उन सब से अच्छे संबंध हैं.’’

‘‘पर बड़ी से तो तुम ने कुछ मनमुटाव बताया था न?’’

‘‘नहीं, अब ऐसा कुछ नहीं. वे तो पुरानी बातें थीं, अब समय के साथ सब ठीक हो

गया है.’’

‘‘फिर भी, क्यों करनी है ससुराल वालों से इतनी बातें?’’

‘‘मु?ो अच्छा लगता है. जब सब अच्छी तरह बात करते हैं तो क्यों दूरियां रखें.’’

‘‘तुम्हें जो करना है करो, मेरा फर्ज तुम्हें सम?ाना था, तुम्हें सम?ा नहीं आ रहा तो तुम्हारी मरजी,’’ चिढ़ कर नीमा ने फोन रख दिया.

रीता ने ठंडी सांस ली, परेशान हो गई है वह नीमा के हर समय के ज्ञान से. रीता का कहना है, ‘‘नीमा मेरी बहुत अच्छी दोस्त है पर इतनी डौमिनेटिंग हो जाती है कि बिना मांगे सलाह देदे कर बोर कर देती है. जरा भी लाइफ में स्पेस नहीं देती, जो बात सुनेगी, उस में टांग अड़ाएगी. अरे भई, मेरे पास भी है दिमाग. मेरी ही उम्र की तो है वह, मैं क्या कोई बच्ची हूं. दोस्ती में स्पेस भी चाहिए होता है, नीमा तो यह बात जानती ही नहीं.’’

  1. दोस्ती बोझ तो नहीं

अनीता की भी यही परेशानी है. फेसबुक पर उस के और उस की पक्की सहेली रीमा के बहुत सारे कौमन फ्रैंड्स हैं. रीमा की एक कौमन फ्रैंड उमा से अनबन हो गई. जब भी उमा की किसी पोस्ट पर अनीता कोई अच्छा कमैंट करती तो रीमा अनीता की जान खा जाती, ‘‘क्यों किया तुम ने उस की पोस्ट पर कमैंट, जाओ, अभी डिलीट करो, तुम्हें पता है न, मैं उसे पसंद नहीं करती.’’

अनीता कहती हैं, ‘‘मु?ो रीमा की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती. उस की दोस्ती में मेरी सांस जैसे घुटने लगती है. अब तो रीमा की दोस्ती एक बो?ा जैसी होती जा रही है.

‘‘मैं किस की पोस्ट लाइक करूं, किस की पोस्ट पर कैसे कमैंट्स करूं, सब पर अपनी पसंदनापसंद बताती है जैसे मैं अपनी मरजी से कुछ कर ही नहीं सकती. कोई स्पेस नहीं देती है दोस्ती में. मेरी अच्छी दोस्त है पर मेरी हर चीज पर अपना पूरा कंट्रोल रखना चाहती है. आजकल तो हर रिश्ते में स्पेस चाहिए होता है, पर वह तो यह बात जानती ही नहीं.’’

उमेश जब भी अपने अच्छे दोस्त रवि के साथ कहीं बाहर जाता है, दोनों कुछ खाने बैठते हैं. रवि हमेशा वही खाना और्डर करने की जिद करता है जो उसे खाना होता है. जब उमेश कहता है कि दोनों अपनीअपनी पसंद से कुछ मंगवा लेते हैं तो रवि का कहना होता है कि फिर ज्यादा बिल आएगा. हर बार बहस के बाद वही आता है जो रवि को खाना होता है. उमेश बताता है, ‘‘मु?ो सिजलर खाना होता है, तो वह फ्राइड खाना खाना चाहता है जो मु?ो बिलकुल सूट नहीं करता. बात छोटी सी है पर किसी भी बात में वह दूसरे की सुनता ही नहीं. खाने जैसी आम सी बात में भी कभी इतना स्पेस नहीं देता कि बंदा अपने मन से कुछ कर ले.’’

2.दोस्त जब दोस्त न रहे

मेघा और काजल बहुत अच्छी फ्रैंड्स हैं. मेघा को पढ़नेलिखने का शौक है तो काजल को फिटनैस पर ध्यान देने का. काजल कहती है, ‘‘जब भी मेरा जिम जाने का टाइम होता है, मेघा मु?ो जानबू?ा कर उसी टाइम फोन करती है कि छोड़, क्यों जाना है जिम.’’

‘‘मेघा को फिटनैस पर ध्यान देने का जरा भी शौक नहीं है. मेरे हर बार जिम जाने पर इतना ज्यादा टोकते हुए कहती है कि क्या हो जाएगा, अरे, आराम कर और खापी. क्या रखा है हैल्थ पर ध्यान देने में. मु?ो देख, मैं कितने आराम से बस बुक्स पढ़ती हूं. कितना अच्छा शौक है, वगैरहवगैरह.

‘‘उस में बहुत खूबियां हैं पर दोस्ती में दूसरे को स्पेस देने के बारे में बिलकुल नहीं सोचती. बस, यहीं इसी बात पर मु?ो उस से उल?ान होने लगती है. मैं उस की बुक रीडिंग की आदत पर कभी कुछ नहीं कहती पर वह तो मेरे फिटनैस के शौक पर टोकती ही रहती है.’’

रचना और मीता आमनेसामने के फ्लैट्स में रहती हैं. खाली समय में बहुत गपियातीं. कुछ दिन तो सब अच्छा चला पर फिर रचना को उल?ान होने लगी. वह बताती है, ‘‘मीता के बच्चे बड़े हैं, वह घर में उस समय बिलकुल फ्री होती है जब मैं शाम को सैर करने जाती हूं.

3. खुद की भी कुछ मरजी है

मीता को बैठ कर गौसिप करने में बड़ा मजा आता है. वह अकसर उसी समय आती और मेरा सारा प्रोग्राम धरा का धरा रह जाता. जिस समय मैं सैर करना चाहती हूं, उस समय मैं चायनाश्ता बना रही होती. मैं मन ही मन कलपने लगती, उसे ढके शब्दों में बताया भी पर वह इस बात को सम?ाती ही नहीं कि दूसरे का भी कुछ प्रोग्राम हो सकता है.

हार कर एक दिन साफसाफ कहा कि, ‘‘भई, मैं तो ऐक्सरसाइज के मूड में हूं.’’ इस पर वह बोली, ‘‘हां, करो, मैं तो बैठी हूं. तुम करती रहो.’’

उसे सम?ाने में काफी मुश्किल हुई कि दोस्ती में भी स्पेस देना चाहिए.  हर रिश्ते में स्पेस चाहिए होता है. सब को अपने हिसाब से जीने के लिए कुछ समय चाहिए होता है. इंसान की कुछ अपनी मरजी भी होती है, कुछ अपनी इच्छाएं भी होती हैं. उन में दखलंदाजी से बचना चाहिए. घरपरिवार से कुछ समय निकाल कर इंसान दोस्त से जुड़ता है. उस दोस्ती में भी जब घुटन होगी, दोस्ती बंधन सा लगेगी, तो अच्छी दोस्ती में भी धीरेधीरे दूरी बढ़ती जाती है और फिर दोस्ती टूटने में देर नहीं लगती. सो, ऐसे दोस्त बनें जो दोस्त को प्यार भी करें, उस के सुखदुख में उस का साथ भी दें और दें स्पेस जो आज के तनावभरे माहौल में बहुत जरूरी है. आप की दोस्ती दोस्त के गले की हड्डी नहीं बननी चाहिए.

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