नई उम्र की फ्रैंडशिप भी नईनई होती है, जिस से मिले जो अच्छा लगा, जिस ने अच्छे से बात की, जो साथ घूमने, बातचीत करने लगा, जिस के मोबाइल से अच्छे मैसेज आने लगे, जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर हमारे फोटो पर लाइक और कमैंट करने लगे, वही फ्रैंड बन जाता है. जितनी जल्दी फ्रैंडशिप होती है उतनी ही जल्दी फ्रैंडशिप टूटने भी लगी है. कई बार तो सोशल मीडिया से शुरू और वहीं पर खत्म हो जाती है. स्कूल और कालेज में भी जो फ्रैंड बनते हैं उन से भी बड़ी जल्दी लड़ाई हो जाती है.
महिलाओं के मुद्दों पर पीएचडी करने वाली और समाजसेवी डाक्टर रेनू सिंह कहती हैं, ‘‘टीनऐज की जो उम्र होती है उस में विचार जल्दीजल्दी बदलते हैं. आज के किशोरों के पास बहुत सारे साधन हैं जहां वे तमाम लोगों से रोज मिलते हैं, उन की अलगअलग अच्छाइयों को देख कर फ्रैंडशिप करते हैं. जब एकदूसरे से रोज मिलते हैं, ज्यादा मिलते हैं तो उन को लगता है कि फ्रैंड जैसा दिख रहा था वैसा नहीं है. कई बार खुद की ही रुचि बदल जाती है. ऐसे में बड़ी जल्दी फ्रैंडशिप टूट जाती है.
‘‘यह सीखने की उम्र होती है. इस तरह की गलतियों से ही बच्चे सीखते हैं. फ्रैंड बनाने और अगर दिक्कत हो तो फ्रैंडशिप छोड़ने को ले कर परेशान होने की जरूरत नहीं है. बच्चों में अकेलापन बढ़ रहा है. ऐसे में पहले यह जरूरी है कि वह फ्रैंडशिप करे. इस के जरिए वे फ्रैंडशिप को बनाना या छोड़ना भी सीख लेंगे. आमतौर पर फ्रैंडशिप उन लोगों में अधिक होती है जिन की रुचियां आप में मिलती हैं. फ्रैंडशिप करने के साथ ही साथ यह जरूरी है कि यह जरूर जानें कि नए फ्रैंड के साथ कैसे व्यवहार करें?’’