हम बच्चों को अपने जीवन का मोहरा बना लेते हैं. लगता है कि हर कोई हमारे बच्चे की तारीफ़ करे. पेरैंट्स खुद दूसरों से कहते हैं कि मेरी तरफ देखो, क्या नायाब चीज है मेरा बच्चा, मेरा बच्चा आईपीएल में गया है, स्कूल की तरफ से बाहर गया है, वह स्विमिंग चैंपियन बन गया है. यानी, आज पेरैंट्स चाहते हैं कि उन का बच्चा पढ़ाई के साथसाथ ड्राइंग, पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, क्राफ्ट, स्पोर्ट्स आदि में भी सब से आगे रहे. इस सब के चलते मातापिता पेरैंटल बर्नआउट की गिरफ्त में आ जाते हैं.

यह आप को उलटवार करता है. बच्चे के बारे में आप सोसाइटी में इतनी बातें करते हैं कि एक दिन वह बच्चा आप के गले की फांस बन जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो वह गले की ऐसी हड्डी बन जाता है जो न निगलते बने न उगलते. दरअसल, बच्चे की तारीफ इतनी ज्यादा कर दी जाती है सोसाइटी में कि उसे मैनेज करना एक चैलेंज बन जाता है.

बच्चा है कि आप की अब एक नहीं सुनता, आप पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो. उस को खादपानी दो लेकिन अपने को उस पर न्योछावर मत करो. बच्चों के लिए उतना करो जितना जेब इजाजत करे. बच्चों के लिए खुद को पूरी तरह न थकाएं. अगर आप भी अपने बच्चों की देखभाल और पालनपोषण के दौरान थकान व तनाव का अनुभव करते हैं, अपने बच्चों की जिम्मेदारियों व अपेक्षाओं के बीच संतुलन नहीं बना पाते हैं और आप को पर्याप्त आराम व सपोर्ट नहीं मिल पाता है, तो समझिए की कमी खुद में ही है. आइए जानें इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करें.

बच्चों को न कहना भी सीखे मां

अगर बच्चे ने बोला है कि मेरा दोस्त यहां से कोचिंग ले रहा है, मैं भी लूंगा, लेकिन आप को लग रहा है कि वो बहुत महंगा है, आप अफोर्ड नहीं कर पाएंगे, तो बच्चे को साफ़ मना कर दें. इस के अलावा अगर बच्चों का ग्रुप ट्रिप पर बाहर जा रहा है और बच्चा भी जाना चाहे पर आप उसे अकेले नहीं भेजना चाहते, तो उसे प्यार से समझा कर मना कर दें. उस की हर बात मानना आप के लिए प्रैशर क्रिएट करता है. इसलिए उतना ही करें जिसे आप ख़ुशीख़ुशी हां कह सकें वरना मना करने की भी आदत डालें.

हर किसी के आगे बच्चों की तारीफ़ न करें

बच्चों की तारीफों के पुल अगर आज आप रिश्तेदारों के सामने बांध रहे हैं तो ध्यान रखें, कल आप को उसे मैनेज करने के लिए लगातार बच्चों से कुछ अच्छा करने की उम्मीद रखनी होगी ताकि आप ने अपने सर्कल में बच्चों की जो इमेज बनाई है उसे कायम रख सकें. इस के लिए आप के साथसाथ बच्चों पर भी दबाव बनेगा. इसलिए ऐसा करना ही क्यों. आप के बच्चे जैसे हैं उन्हें वैसा ही रहने दें, बेकार के दिखावे के चक्कर में एक्स्ट्रा पैन लेना ही क्यों.

बच्चों की तरफदारी न करें

आज अगर आप ने जरूरत से ज्यादा बच्चे की तरफदारी की. यह बच्चा इतना अहं वाला हो जाएगा कि बड़ा होने के बाद यह अपने मांबाप को कुछ नहीं समझेगा. उस को लगेगा, मेरी मां को तो कुछ आता ही नहीं है. उस को लगेगा सारा ज्ञान उस के पास है. वह बातबात में आप को आप के ही फ्रैंड्स सर्कल में नीचे दिखाएगा. फिर आप पछताएंगी कि बच्चे को ज्यादा ही सिर चढ़ा लिया है लेकिन तब आप के पास इस का कोई हल नहीं होगा. आप मन मसोस कर रह जाएंगी क्योंकि बच्चा आप की सुनेगा नहीं और बच्चे की वजह से अपनी होती हुई बेइज्जती आप सह पाएंगी नहीं. इसलिए हर गलत बात में बच्चे का साथ न दें. कुछ गलत है, तो उसे इग्नोर करने के बजाय बच्चे को बताएं.

बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो

अगर आप की सहेली का बच्चा स्विमिंग सीख रहा है तो यह जरूरी नहीं है कि आप का बच्चा भी वही सीखे. हो सकता है आप के बच्चे का मन न हो या उस के पास टाइम न हो, वह अपनी स्टडीज पर ज्यादा टाइम देना चाहता हो. क्या जरूरत है अपने बच्चे को सब के बच्चों के जैसा बनाने की. आप का बच्चा जिस में अच्छा है उसे वह करने दें. बच्चे की नैचुरल ग्रोथ होने दो.

बच्चों को स्पेस दें

वे वास्तव में हम से ज़्यादा जानते हैं और यह आज भी सच है. चाहे हमें यह पसंद हो या न, वे ज़्यादातर समय सही होते हैं. आप ने देखा होगा कि बच्चों को लगातार परेशान करना और उन के इर्दगिर्द मंडराते रहना हम में से किसी के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए स्पेस देना हमेशा मददगार होता है और हम भी टैंशन-फ्री रहते हैं.

बच्चे को सहीगलत में फर्क करना सिखाएं

बच्चों की जिद पूरी करने से मातापिता कई बार बच्चों को यह संदेश दे देते हैं कि वे जो भी कर रहे हैं वह गलत नहीं है. बच्चे भी धीरेधीरे इसी व्यवहार को सही मान बैठते हैं. लेकिन, ऐसा न करें. बच्चों को बताएं कि गलत और सही क्या है और उसे के अनुसार उन के साथ व्यवहार करें.

बच्चा आप का अपमान करें तो बरदाश्त न करें

कई बार बच्चे मांबाप से झगड़ा करने के दौरान बहुत जिद करते हैं और मांबाप का अपमान भी करने लगते हैं. वहीं, बच्चों का यह व्यवहार धीरेधीरे घर के बाहर यानी स्कूल में, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच भी दिखाई देने लगता है. इस बात को ले कर कई बार मातापिता इतनी टैंशन ले लेते हैं कि अपने में बीमारी लगा लेते हैं. अगर आप के साथ भी ऐसा हो रहा है तो बच्चे को समझाएं. न समझे तो उस से कुछ दिन बात न करें. वह खुद ही बेचैन हो जाएगा और तब उसे बताएं कि यह व्यवहार आखिरी होना चाहिए क्योंकि इस से आप को प्रौब्लम होती है.

बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें

सब से महत्त्वपूर्ण बात, अपने बच्चों से परफैक्ट होने की उम्मीद न करें और हमेशा याद रखें, कोई भी आप को उतना प्यार नहीं करेगा जितना वे करते हैं. प्रेरणा कहती हैं, यह एक ऐसा सबक है जिसे हमें पहले इंसान और फिर मातापिता के तौर पर सीखना होगा कि कोई भी परफैक्ट नहीं होता. इसलिए हम किसी और, खासकर अपने बच्चों, से परफैक्शन की उम्मीद नहीं कर सकते. इन अवास्तविक अपेक्षाओं को दूर करने से मातापिता के तौर पर हम पर और हमारे बच्चों पर बोझ कम होगा.

पेरैंट्स के रूप में कई बार हमें ऐसा लगता है कि हम अपना 100 प्रतिशत नहीं दे रहे हैं. इस जगह हम न केवल तनाव महसूस करते हैं, बल्कि हमें असफलताओं का अनुभव भी होता है. ऐसे में खुद को दोष न दें, बल्कि अपने लिए थोड़ा समय निकालें और बच्चों के बचपन को खुद भी एंजौय करें व उन्हें भी एंजौय करने दें.

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