आज के युग में दांपत्य जीवन दरक रहा है जिस के अनेक कारण हैं, पर कोर्ट में तलाक के बढ़ रहे मामलों का जल्द निबटान न होना भी तो एक प्रताड़ना से कम नहीं.
स्त्री और पुरुष एकदूसरे के पूरक हैं. प्रसिद्ध विचारक टैनीसन ने कहा है, ‘‘स्त्री और पुरुष का ध्येय परस्पर एक है, वे साथ ही साथ उन्नति करते हैं या पतन की ओर जाते हैं, छोटे या महान बनते हैं, पराधीन या स्वतंत्र होते हैं.’’
स्त्रीपुरुष दोनों का मिलना जरूरी है, तभी बच्चे होते हैं और परिवार बनता है. मगर जैसे संयुक्त परिवार से लोग न्यूक्लियर फैमिली या छोटे परिवार की ओर बढ़े हैं वैसे ही अब बहुत से पतिपत्नी गृहस्थी की झं झटों से मुक्त हो कर स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं, जिस के लिए या तो आपसी रजामंदी से अलग हो जाते हैं या फिर अदालत की शरण में जा कर तलाक लेना पसंद करते हैं.
विवाह संस्था अब बुरी तरह प्रभावित हो रही है. जहां पहले प्रेम और विश्वास था या समर्पण और एकदूसरे के प्रति लगाव की भावना जोर मारती थी, लोग अपने परिवार और रिश्तों के प्रति कर्तव्यबोध से बंधे थे, वहीं आज अदालतों में तलाक के ऐसेऐसे केस आ रहे हैं कि लगने लगा है मानो शादीविवाह गुड्डेगुडि़यों का खेल बन गया है. इतनी बड़ीबड़ी उम्र के लोग अपने बच्चों के शादीब्याह के बाद तलाक के लिए अदालत में खड़े होते हैं.
एक लंबा केस 9 साल तक चला. उस में पत्नी ने पति से इस आधार पर तलाक मांगा कि पति उस के लायक नहीं है. अदालतों ने पत्नी की नहीं सुनी. फिर अब दोनों की रजामंदी से तलाक हुआ.
तलाक के केस लंबे खिंचने का एक कारण अदालतों का ओवरलोड और जजों का विश्वास कि यह तो संस्कार है, पत्नीपति ऐसे ही कैसे तोड़ दें. कई डाइवोर्स के मामलों में पति या पत्नी का अहं आड़े आ जाता है जैसे पति ने पत्नी से तलाक मांगा पर पत्नी पति को परेशान करना चाहे, या फिर पत्नी पति से तलाक मांगे और पति को लगे कि पत्नी उसे बेइज्जत करने के लिए कर रही है तो विरोधी पक्ष इसे अपनी इज्जत का प्रश्न बना लेता है. वकीलों के पास भी अपने क्लांइट के लिए मामला खींचने के कई कारण होते हैं.
हिंदू विवाह अधिनियम में तलाक को ले कर यह कानून है कि तलाक चाहने वाले पतिपत्नी शादी के एक साल के अंदर अदालत में तलाक की मांग नहीं कर सकते. मगर कुछ अपवाद ऐसे भी हैं जहां तलाक के लिए शादी के एक साल के अंदर ही तलाक मांगा गया, जैसे जब तलाक इंपोटैंसी (नपुंसकता) के आधार पर मांगा जा रहा है तो ऐसे केस एक साल के अंदरअंदर ही अदालत में पहुंच जाने चाहिए.
इस के अलावा जालसाजी या फौजदारी के मामले में भी जालसाजी का पता चलने की तारीख में एक साल के अंदर तलाक मांगा जा सकता है. इन प्रावधानों का इस्तेमाल सहमति से करा कर वकील तलाक जल्दी भी दिला देते हैं.
एक केस में यह था कि लड़की विदिशा की थी और लड़का विदेश में काम करता था. इंटरनैट के जरिए विवाह तय हुआ और लड़की वालों ने दिल्ली आ कर बेटी की शादी कर दी. विदिशा में रिसैप्शन की सुबह लड़की वाले वकील के पास बेटी के डाइवोर्स की बात ले कर पहुंच गए. शादी को 10-15 दिन हुए थे.
लड़की के अनुसार लड़का उसे परेशान करता है, कहता है, ‘विदेश में तु झे देख लूंगा.’ लड़की की बात वकील को अटपटी लगी. उस के हिसाब से गलती दोनों की थी. मगर उस दिन वकील ने लड़की वालों से रिसैप्शन अटैंड करने को कहा, जिस से लड़के वालों की इज्जत बनी रहे क्योंकि लड़का अच्छी पोस्ट पर था और बड़ेबड़े लोगों से उस की पहचान थी, इसलिए इन्वाइटी भी वे ही थे.
लड़की वालों ने बात मानी और रिसैप्शन अटैंड किया. दूसरे दिन वे फिर वकील के सामने. वकील ने लड़के वालों को बुलाया और उन्हें सारी बात बता दी. लड़का जोश में आ गया कि ऐसा कैसे हो सकता है. वकील ने सम झाया कि देखिए, आप आराम से मान जाएंगे तो ठीक है वरना मामला लंबा खिंचा तो नुकसान आप का ही होगा क्योंकि लड़का विदेश में सरकारी नौकरी में है और जल्द ही उसे विदेश जाना भी है. अगर मामला अदालत में जा लटका तो बात लड़के की नौकरी तक भी आ सकती है. लड़के वाले मान गए और उस लड़के पर इम्पोटैंसी (नपुंसकता) का आरोप लगाया गया, जिसे लड़के ने चुपचाप मान लिया.
दांपत्य संबंधों की इमारत का रेत का ढेर की तरह बिखर जाना इस बात का प्रमाण है कि कानूनी रूप से अदालत की चौखट तक पहुंच गए तलाक के विवादों को कोई भी आधार दिया जाए, मगर तलाक के गहराते बादल दांपत्य संबंधों में उस खोखलेपन को उजागर कर रहे हैं जिन्हें पहले परिवार या समाज क्या कहेगा के भय से वर्षों घसीटा जाता रहा था.
पतिपत्नी सामाजिक दृष्टि से दांपत्य संबंध निभा रहे हों, मगर कमरे की चारदीवारी में वे तलाकशुदा ही थे. जबकि आज आधुनिकता के नाम पर अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए शादी के दूसरे दिन ही शादीशुदा जोड़े अदालत की दहलीज पर खड़े होते हैं.
यह अफसोस है कि देश की सरकार को तलाक की पीड़ा सह रहे पुरुषों और स्त्रियों की कोई चिंता नहीं, जो वर्षों लटके रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में 20 साल बाद तक मामले पहुंच रहे हैं. इस दौरान सबकुछ बदल चुका होता है.
यह जरूरी है कि हिंदू औरतों को भी छुटकारा देने का तलाक का कानून सरल हो. यह न आज संस्कार था न कभी. हमेशा ऋषि, मुनि, राजा एक से ज्यादा विवाह करते रहे हैं और 1956 तक हिंदू औरतों के पास छोड़े जाने पर सिवा गुजारेभत्ते के हक के सिवा कोई हक न था जो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड में है, विवाह कानून में नहीं.
आज यूनिफौर्म सिविल कोड की नहीं, हिंदू तलाक कोड की जरूरत है ताकि लाखों पीडि़त औरतें पुरुषों की जबरदस्ती से छुटकारा पा सकें.
कुंडली के नाम पर फलताफूलता धोखा
सोशल मीडिया पर अमीर बनने का अमृतउपाय बांटा जा रहा है. अंधविश्वास में फंसे लोगों की जेब तो पहले से ही कट रही है, बाकी ज्योतिषी, पंडे और कुंडली नक्षत्र वाले भी लगे हाथ निचोड़ ही रहे हैं. कुंडली में महायोग जो निर्धन को भी करोड़पति बना देते हैं आदि कई तरह के दावे करने वाले लोग ग्रहों के नाम पर लूट रहे हैं.
ये लूट रहे हैं क्योंकि लोग लुटने को तैयार हैं. डरेसहमे और असुरक्षित लोग इन ज्योतिषियों को खासा भाते हैं. ये वही लोग भी हैं जो मेहनत की जगह 10-12 अंगूठियां पहनने से अमीर बनने में विश्वास रखते हैं. पंडों के इस तरह के धंधे सफल हैं, तभी लोग अच्छीखासी रकम फीस के तौर पर देने को तैयार रहते हैं.
जैसे कहा जा रहा है, मेष राशि वाले लग्न में द्वितीय भाव में मंगल, गुरु व शुक्र का संबंध व्यक्ति को श्रेष्ठ व्यापारी बना कर संघर्ष और उतारचढ़ाव के बाद धनपति बनाएगा. वृष को कहा जा रहा है लग्न-बुध-गुरु (लाभेश-धनेश) एकसाथ बैठे हों तथा मंगल से दृष्ट हों तो श्रेष्ठतम धनयोग होता है.
कोई छूट न जाए, इसलिए यह अमीर बनाने की पोटली सिंह, कन्या, तुला, धनु, मकर, कुंभ इत्यादि सभी के लिए खुली है. राशियों के खेल में सिर्फ अमीर बनाने के उपाय नहीं बताए जाते हैं, अमीर ससुराल और सुंदर बीवी मिलने के भी उपाय हैं. अगर घर में कोई क्लेश है तो उसे दूर करने के उपाय भी बताए जाते हैं. ये वे हैं जो गंजे को भी कंघा बेच दें.
हैरानी होती है कि इन लोगों का धंधा भी फलताफूलता है. लोग यह जानते हुए भी इन के पास जाते हैं कि ये खुद किसी फुटपाथ के किनारे हाथ की लकीरें और कुंडली देख कर पैसा बटोरते हैं. अगर अमीर बनने का ऐसा शौर्टकट उपाय होता तो अंबानीअडानी की जगह यही ज्योतिषी सब से अमीर होते.
सवाल तो बनता है कि शनि पर रोज का 150 रुपए की कीमत का एक लिटर तेल चढ़ा कर कैसे किसी के जीवन में अमीरी आ सकती है? फकीरी की बात पूछो मत क्योंकि एक फकीर ढूंढ़ो तो हजार मिलते हैं. यह धोखेबाजी नहीं तो क्या है? लोगों को भाग्य, लकीरों और कुंडलियों में उल झाए रखना साजिश नहीं तो क्या है?
ज्योतिषी को प्रचारित किया जाता है कि यह वैज्ञानिक आधार पर काम करता है पर यह नहीं बताया जाता कि लोगों के जीवन में ग्रहों का प्रभाव होता है तो यह बात उन्होंने कैसे खोजी? इस खोज पर कितना खर्चा आया? पद्धति क्या थी? सिर्फ 9 ग्रहों के प्रभाव की ही चर्चा क्यों? बाकी ग्रहों को फलादेश से बाहर क्यों रखा गया? –